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दंडनीय अपराध है बटेर का शिकार

भारत में बटेर की लगभग दस प्रजातियां पाई जाती है। रेन कुवेल को ब्लैक ब्रिस्टीड कुवेल भी कहते है। बटेर की यह प्रजाति भारत के सभी हिस्सों में देखी जा सकती है। हिमालय में भी यह छह से सात हजार फीट तक की ऊंचाई पर देखे जा सकते है। वर्षा ऋतु में यह प्रजाति ज्यादा दिखती है, जिस कारण इसका नाम भी रेन कुवेल पड़ा है। भारत में ये स्थनीय भाषा में इसे छीन बटेर, चानक या चीना बटेर के नाम से भी जाना जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान ये पक्षी स्थानीय प्रवास करते है। जैसे ही वर्षा ऋतु आती है तथा चारों ओर हरियाली की चादर बनती है तो यह बटेर की खास आवाज उसकी मौजूदगी बताती है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 09:14 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 09:14 PM (IST)
दंडनीय अपराध है बटेर का शिकार
दंडनीय अपराध है बटेर का शिकार

प¨रदो की दुनिया: बेटर (रेन कुवेल)

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परिवार: फसीयनीडी

जाति: कॉटुनिक्श

प्रजाति: कोरोमंडलिका

लेख संकलन: सुंदर सांभरिया, ईडेन गार्डन रेवाड़ी। ------

भारत में बटेर की लगभग दस प्रजातियां पाई जाती है। रेन कुवेल को ब्लैक ब्रिस्टीड कुवेल भी कहते है। बटेर की यह प्रजाति भारत के सभी हिस्सों में देखी जा सकती है। हिमालय में भी यह छह से सात हजार फीट तक की ऊंचाई पर देखे जा सकते हैं। वर्षा ऋतु में यह प्रजाति ज्यादा दिखती है, जिस कारण इसका नाम भी रेन कुवेल पड़ा है। भारत में ये स्थनीय भाषा में इसे छीन बटेर, चानक या चीना बटेर के नाम से भी जाना जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान ये पक्षी स्थानीय प्रवास करते हैं। जैसे ही वर्षा ऋतु आती है और चारों ओर हरियाली की चादर बनती है तो यह बटेर की खास आवाज उसकी मौजूदगी बताती है। भिन्न होती है नर व मादा की धारियां

नर पक्षी के गले पर काले रंग की धारियां होती है तथा इसकी छाती व पंख धुंधले तथा इस पर काली पट्टियां होती हैं। मादा पक्षी का रंग हल्का तथा उस पर ज्यादा काली धारियां नहीं होती। नर व मादा एक दूसरे से रंग व धारियों में भिन्न होते हैं। इस पक्षी का मुख्य भोजन घास, घास के बीज, वर्षा में उगी वनस्पति के पत्ते, छोटे कीट व लारवा होता है। ये पक्षी आमतौर पर चारागाह, खेतों, घास के मैदानों व झाड़ियों वाली जगहों पर रहना पसंद करते है। बड़ी घास या झुंडों आदि में इसकी आवाज सुनाई देती है। जब इन्हें किसी इंसान की मौजूदगी का पता चलता है तो ये घास के अंदर छुप कर तेजी से चलते है तथा कुछ ही समय में अपना स्थान बदल लेते है। ये पक्षी ज्यादातर समय जमीन पर ही चलते रहते हैं। खतरा होने पर एक छोटी उड़ान भर कर फिर से कुछ दूरी पर जमीन पर बैठ जाते है। कम हो रही संख्या

ये पक्षी साधारण बटेर की तरह ही दिखते हैं, लेकिन शरीर की कुछ धारियों से ही ये साधारण बटेर से थोड़ा अलग होते हैं। इस पक्षी का आकार 16 से 18 सेंटीमीटर होता है तथा इसका वजन 65 से 85 ग्राम तक होता है। इस पक्षी की आवाज शाम व सवेरे घास वाले मैदानी भागों में सुनाई देती है। प्रजनन के समय ये रात को भी आवाज निकालते हैं। इस पक्षी के प्रजनन का समय अप्रैल से अक्टूबर तक होता है। वर्षा ऋतु के दौरान ये जोड़ा ज्यादा बनाते है। एक बार जोड़ा बनने के बाद ये हमेशा साथ रहते है। ये अपना घोंसला जमीन पर बड़ी घास या अन्य झाड़ियों में छुप कर बनाते है। मादा 4 से 6 अंडे देती है। कभी-कभी एक ही घोंसले दो मादाएं भी अंडे देती है। नर व मादा दोनों मिल कर चूजों को पालते है। घोंसले की सुरक्षा में नर पक्षी ज्यादा आक्रामक हो जाता है। इस पक्षी की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण प्राकृतिकवास का सिकुड़ना, अवैध शिकार, आग या अन्य शिकारी जीवों से घोंसले का नष्ट होना है।


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