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गेहूं में लग रहा है बेईमानी का डंक

पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मनोहर सरकार ने निश्चित रूप से कई प्रयास किए हैं मगर अनाज मंडियों में वर्षों से चले आ रहे काली कमाई के खेल में अब भी मलाई बंट रही है। गेहूं की एमएसपी पर खरीद शुरू हो चुकी है। अनुमान है कि प्रदेश में इस बार 50 किग्रा वजन के लगभग 15 करोड़ बैग न्यूनतम सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदे जाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 07:20 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 07:20 PM (IST)
गेहूं में लग रहा है बेईमानी का डंक

फोटो नंबर: 18 व 19

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-ईमानदारी से खाई जा रही है काली कमाई से मलाई

-खरीदा जा रहा गेहूं का हर बैग उगल रहा है 16 रुपये की काली कमाई महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी

पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मनोहर सरकार ने निश्चित रूप से कई प्रयास किए हैं, मगर अनाज मंडियों में वर्षों से चले आ रहे काली कमाई के खेल में अब भी मलाई बंट रही है। गेहूं की एमएसपी पर खरीद शुरू हो चुकी है। अनुमान है कि प्रदेश में इस बार 50 किग्रा वजन के लगभग 15 करोड़ बैग न्यूनतम सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदे जाएंगे। छन-छन कर बाहर आ रही सूचना के अनुसार हर बैग पर समय एवं परिस्थिति के अनुसार 8 से 16 रुपये तक का टांका लगाया जा रहा है। घुन का डंक स्पष्ट दिखाई भी दे जाता है, मगर यहां सहज भाव से बेईमानी का डंक लग रहा है।

दैनिक जागरण ने कई मंडियों से फीडबैक लिया तो चीजें शीशे की तरह स्पष्ट हो गई। आढ़तियों ने यह मानने में संकोच नहीं किया कि सिस्टम में सुधार हुआ है, मगर हैरत की बात यह है कि आठ-दस रुपये प्रति बोरी का टांका आढ़तियों को बेईमानी ही नहीं लग रहा है। यह उनके लिए रूटीन की बात है। किसान इसलिए शोर नहीं मचाते क्योंकि उन्हें कह दिया जाता है कि गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं होने के बावजूद उनका गेहूं एमएसपी पर खरीदा जा रहा है। आढ़ती इसलिए शोर नहीं मचाते, क्योंकि अधिकारियों को उनकी काली कमाई के तमाम रास्तों की जानकारी होती है। निरीक्षण सिस्टम से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी इसलिए चुप रहते हैं, क्योंकि बेईमानी की काली कमाई में ईमानदारी से मलाई की हिस्सेदारी मिल रही है। बूंद-बूंद से घट में जल नहीं, यहां अठन्नी-चवन्नी से पूरा मटका भर रहा है। सिस्टम से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी मालामाल हो रहे हैं।

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इस तरह होती है बंदरबांट केंद्रीय स्तर पर नैफेड के लिए राज्य की एजेंसी हैफेड गेहूं की खरीद करती है। हैफेड यह खरीद कोआपरेटिव मार्केटिग सोसायटीज के माध्यम से करती है। सोसायटी एक तरह से पक्की आढ़त है। सूत्रों के अनुसार कच्चे आढ़ती से इस एजेंसी व मार्केट कमेटी के कुछ अधिकारियों को क्रमश: ढाई व दो रुपये प्रति बैग नजराना पहुंचाते रहे हैं। किसी के हिस्से में अठन्नी आती है तो कोई चवन्नी से संतोष कर लेता है, मगर प्रत्येक बैग पर चवन्नी भी जेब को भारी कर देती है। काली कमाई के कुछ अन्य केंद्र भी हैं। समय पर उठान व भंडार गृह तक सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित करने, नमी युक्त गेहूं को चंद मिनटों में सूखा व गुणवत्ता युक्त बनाने में भी नजराना असर दिखाता है। समय और परिस्थितियों के अनुसार नजराना घटता-बढ़ता रहता है। मंडी में अधिक आवक के समय अधिक और कम आवक के समय कम नजराना देना होता है।

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मुझे यह मानने में कोई हिचक नहीं है कि खरीद सिस्टम में कुछ खामियां अभी भी है। जैसे-जैसे जानकारी मिलती है, वैसे ही हम भ्रष्टाचार का छेद बंद कर देते हैं। समस्या उस सूरत में होती है जब संबंधित सभी पक्ष मिलीभगत कर लेते हैं। हमारे पास सूचनाएं तो आती है, मगर सबूत नहीं पहुंचते। मैं लोगों से यह आह्वान करता हूं कि भ्रष्टाचार से जुड़े किसी भी मामले की सूचना सीधी उन तक पहुंचाएं। हम तुरंत कार्रवाई करेंगे। मनोहर राज में परसेंटेज का खेल नहीं चलने दिया जाएगा। जो भी किसान संगठन या किसान उन तक मंडी के भ्रष्टाचार से जुड़े सबूत या भ्रष्टाचार रोकने के सुझाव पहुंचाएंगे, उन पर अमल किया जाएगा।

-जेपी दलाल, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री


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