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बचपन से ही हम की भावना जागृत करने की जरूरत

कोई भी देश और समाज सामूहिक प्रयासों के बिना समृद्ध नहीं हो सकता। 'मै' की भावना से केवल व्यक्तिगत विकास हो सकता है लेकिन 'हम' की भावना पूरे समाज और राष्ट्र को समृद्ध करता है। हम की भावना ही सफलता की कुंजी है। बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों को सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा। यह कहना है भाड़ावास रोड स्थित सरस्वती विद्या निकेतन स्कूल में मैं नहीं हम विषय पर आयोजित कार्यशाला में स्कूल निदेशक राजेश कुमार का। प्रार्थना सभा में दैनिक जागरण के संस्कारशाला: अच्छाई की समझ के तहत 'मैं नहीं हम' विषय पर विद्यार्थियों को जागरूक कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अच्छाई की समझ तभी जागृत हो सकती है जब हम बच्चों को इसके बारे में जागरूक करेंगे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 05:36 PM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 05:36 PM (IST)
बचपन से ही हम की भावना जागृत करने की जरूरत

जागरण संवादददाता, रेवाड़ी : कोई भी देश और समाज सामूहिक प्रयासों के बिना समृद्ध नहीं हो सकता। 'मैं' की भावना से केवल व्यक्तिगत विकास हो सकता है लेकिन 'हम' की भावना पूरे समाज और राष्ट्र को समृद्ध करता है। हम की भावना ही सफलता की कुंजी है। बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों को सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा। यह कहना है भाड़ावास रोड स्थित सरस्वती विद्या निकेतन स्कूल में मैं नहीं हम विषय पर आयोजित कार्यशाला में स्कूल निदेशक राजेश कुमार का। प्रार्थना सभा में दैनिक जागरण की संस्कारशाला:

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अच्छाई की समझ के तहत 'मैं नहीं हम' विषय पर विद्यार्थियों को जागरूक कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अच्छाई की समझ तभी जागृत हो सकती है जब हम बच्चों को इसके बारे में जागरूक करेंगे। अपने आसपास के वातारण की साफ सफाई के साथ मन और मस्तिष्क को भी स्वच्छ विचारों से ओत-प्रोत होना जरूरी है। यह तभी सफल हो सकता है जब हम सामूहिकता की भावना विकसित करेंगे। सामूहिकता की भावना तभी जागृत होगी जब व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता देने के बजाय समाज और राष्ट्र के विकास के बारे में ¨चतन करेंगे। बच्चों में किताबी ज्ञान के साथ मैं और हम की महत्ता के बारे में भी जानकारी और प्रेरणा देना अभिभावकों और शिक्षकों का दायित्व बनता है। शिक्षकों की शिक्षा तभी सार्थक होगी जब बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करने के साथ समृद्ध राष्ट्र निर्माण में इनका योगदान होगा। शिक्षण संस्थानों में सामूहिक रूप से पढ़ाई करते हैं, लंच करते हैं, कार्यक्रम सामूहिक रूप से प्रस्तुत करते हैं इसकी सफलता सामूहिक प्रयास से होती है। इसमें हम की भावना दर्शाती है। 11वीं कक्षा की ऋतु कहती हैं कि जो काम सामूहिक प्रयास से होते हैं वह अकेला मैं से संभव नहीं है। नौवीं कक्षा की साक्षी संस्कारों को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक और अभिभावकों के साथ बच्चों के नैतिक कर्तव्य को बढ़ावा देने पर जोर देती हैं। चौथी कक्षा की शिल्पा ने अपनी काव्य रचना से हम की भावना को व्यक्त किया। वरिष्ठ शिक्षक राधेश्याम वशिष्ठ, ममता, संगीता, सूबे ¨सह, कृष्ण कुमार, संदीप कुमार आदि ने भी मैं के बजाय हम की भावना से किया गया कार्य अधिक शक्तिशाली बताया।

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¨प्रसिपलों के आलेख

'मै' अभिमान 'हम' स्वाभिमान मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मानव अधूरा है। कोई अकेला व्यक्ति समाज का निर्माण नहीं कर सकता, लेकिन हम सब मिलकर विश्व का निर्माण कर रहे हैं। आजकल वैश्विक दौर में हम एक दूसरे से जुड़े हैं। किसी भी मनुष्य की कला कौशल तब है जब उसका निर्णय हम देते हैं। यदि हम सबके हैं तो सब हमारे हैं कि नीति करके देखेंगे तो इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे। मैं अभिमान का परिचायक है तो हम स्वाभिमान को बढ़ावा देने वाला व्यवहार प्रदर्शित करता है। हम शब्द स्वयं ही परोपकार की भावना विकसित करता है। जिस प्रकार एक फूल माला नहीं बना सकता उसी प्रकार एक व्यक्ति भी कुछ नहीं कर सकता। सभी को साथ लेकर किसी भी कार्य को पूरा किया जा सकता है। जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छा उदाहरण बन सकते हैं।

- कमलजीत ¨सह, ¨प्रसिपल,¨हदू वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय आरामनगर।

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मैं शब्द में छिपा है अहंकार

मैं शब्द के अहंकार, घमंड छिपा हुआ है, जबकि हम में स्वाभिमान, दक्षता व संस्कार को बढ़ावा मिलता है। जब कोई अपने आपको समृद्ध और विकसित होने की बात करता है तो वह व्यक्तिगत तरक्की को बढ़ावा दे रहा है। हम की भावना से जो शक्ति निर्माण होता है वह अकेले मैं से नहीं हो सकता। मैं में सोच तो व्यक्तिगत हो सकता है लेकिन फलीभूत हम की भावना से ही संभव हैं। मैं' का कोई अस्तित्व नहीं है। मैं से हम अति आत्मविश्वासी हो जाते हैं। जबकि हम से विश्वसनीय। हम में भाईचारा, टीम वर्क, स्नेह व दक्षता निहित है। जीवन में मैं शब्द का जीतना ज्यादा उपयोग होगा समझो उतनी ही आप स्वार्थी बनते जा रहे है। हम शब्द को व्यवहार में लागू करने मात्र से ही किसी घर, परिवार, समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

- सूमेर ¨सह, ¨प्रसिपल, सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नंगलीगोधा।

--------- मैं का नहीं होता कोई अस्तित्व

'मैं' नहीं 'हम' शब्दों की धारा अपने आप को कहीं न कहीं वसुधैव कुटुम्बकम से जोड़ती है। मैं स्वयं का प्रतीक है। हम सभी का साथ साथ चलने की प्रकिया है। 'मैं' को जब तक 'हम' में परिवर्तित नहीं किया जाता है तब तक परिवार, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, खेल, सुख व दुख सभी अधूरे हैं। एक शिक्षक भी जीवन में गुरु के बिना अधूरा होता है, वह अपने गुरु से मिली शिक्षानुसार अपने धर्म व कर्म को दूसरों के नए दिशा व दशा देने के लिए प्रेरित करता है। श्रीराम कृष्णन, परशुराम, आर्यभट्ट, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, भगत ¨सह व सुभाष चंद्र बोस सहित देश में कितनी विभूतियां हैं जिन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए सेवाएं दी है। इन महान विभूतियों ने 'मैं' को नहीं बल्कि 'हम' को सिरे चढ़ाया था। एक शिक्षक अपने छात्रों को मैं को त्याग कर हम को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।  

- राजीव शर्मा, प्राचार्य, संस्कार भारती स्कूल धारूहेड़ा

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हम में नीहित है सरसता व समरता  'मैं' व्यक्तिगतता को प्रकट करता है, जबकि 'हम' समग्रता को। मैं के अंदर अहंकार छुपा है। मैं की लंबे समय तक पहचान नहीं बनी रह सकती। कुछ समय बाद मैं का अस्तित्व ही हट जाता है, जबकि हम में सम्रगता, नीरसता के गुण भरे हैं। एक समय के बाद मैं कमजोर पड़ता जाता है, जबकि हम में निस्वार्थ भाव के साथ साथ ऊर्जा भरी होती है। हम के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मैं पतन का द्वार है, जबकि हम विकास का द्वार है। मैं स्वार्थ से भरा हुआ है तो मैं के चलते भाईचारा, समाज, पारिवारिक रिश्ते टूटने के आसार बने रहते है। अगर मानव सुखमय, शांतिपूर्ण और प्रसन्नतापूर्ण जीवन जीना चाहता है तो उसे मैं को छोड़कर हम भाव को आत्मसात करना होगा। हम के भाव से ही पृथ्वी पर मानव जीवन को लंबे समय तक बनाए रख सकते है। अगर हम सांसारिक गतिविधियों पर प्रकाश डाले जो जब जब मैं शब्द का प्रचार बढ़ा है, वहीं हमेशा विनाश ही हुआ है।

- दिनेश सैनी, चेयरमैन, संत कबीर पब्लिक स्कूल, धारूहेड़ा।


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