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अहीरवाल में 'बड़े सारथी' की तलाश में हैं सैनी

महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी अपवादों को छोड़ दें तो गुरुग्राम से लेकर नांगल चौधरी तक फैले अहीरवाल क्षेत

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 08:06 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 08:06 PM (IST)
अहीरवाल में 'बड़े सारथी' की तलाश में हैं सैनी
अहीरवाल में 'बड़े सारथी' की तलाश में हैं सैनी

महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी

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अपवादों को छोड़ दें तो गुरुग्राम से लेकर नांगल चौधरी तक फैले अहीरवाल क्षेत्र में जिस दल ने भी परचम फहराया है, सत्ता उसी की रही है। अलग राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर चुके भाजपा के सांसद राजकुमार सैनी भी इस बात से अंजान नहीं है। इसी वजह से उन्होंने अहीरवाल में जड़े जमाने के लिए पूरी ताकत लगाई हुई है। सैनी पिछले एक माह में तीन बार अहीरवाल क्षेत्र में आ चुके हैं। शुक्रवार 22 जून को वे जिले के चार बड़े गांवों में सभाएं करेंगे। उनका इरादा जनाधार बढ़ाकर अहीरवाल में किसी बड़े सारथी की तलाश करना है।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि राजकुमार सैनी के लोकतंत्र सुरक्षा मंच की हर गांव-गली में चर्चा है, लेकिन अभी इस क्षेत्र में सैनी के मंच को मजबूत पंच नहीं मिले हैं। फिलहाल उन्हें कुछ 'भाजपाई' दोस्तों के कंधे का प्रत्यक्ष तो कुछ का अप्रत्यक्ष सहारा तो मिल रहा है, लेकिन उनकी असली उम्मीद चुनावों की घोषणा पर टिकी है। सूत्रों का कहना है कि इस बार थोड़ा बहुत जनाधार रखने वाले जिन नेताओं को भाजपा, कांग्रेस व इनेलो-बसपा से टिकट नहीं मिलेगी वे लोकतंत्र सुरक्षा मंच के सहारे चुनावी मैदान में उतरेंगे। सैनी के चहेतों को इसी वजह से चुनाव के समय उम्मीदों को पंख लगने की आस है। उन्हें लगता है कि चुनावी मैदान में उतरने के लिए कई ऐसे नए दोस्त उनके पास आएंगे जो सत्ता बेशक न दिला पाएं, लेकिन सत्ता की चाबी दिलाने का चमत्कार कर सकते हैं।

दूसरी ओर एक चर्चा यह भी बड़े जोरों से चल रही है कि राजकुमार सैनी को भाजपा आसानी से हाथ से जाने नहीं देगी। कुछ भाजपाई तो उन्हें रोहतक के मैदान में उतारने की पैरवी कर रहे हैं, लेकिन असलियत यह है कि इस समय कई नेता 'निर्णय नहीं लेने को ही' सबसे बड़ा निर्णय मान रहे हैं। भाजपा की 'उदारता' का प्रमाण इससे बड़ा और क्या होगा कि मधु सूदन यादव जिले में उनके कार्यक्रम करवाने में अग्रणी हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मधु सूदन भाजपा के जिला महामंत्री अमित यादव के पिता हैं। आरक्षण आंदोलन में मुखर होकर पैंतीस बिरादरी के हितों को सुरक्षित रखने के लिए संगठित होकर चलने की बात कर चुके कुछ अन्य राजनीतिज्ञों को भी राजकुमार से सहानुभूति है, लेकिन राजनीति में असली सवाल संख्या बल का है। देखना यह है कि सैनी को राजकुमार बनाने के लिए कब कितने साथी साथ जुड़ते हैं। सवाल का जवाब वक्त देगा, लेकिन फिलहाल गांवों की खाक छानना बुरा नहीं है। सहज पके सो मीठा होए।


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