जहां कभी थे तालाब, वहां अब हैं कूड़ेदान
हमारे लालच और लापरवाही ने तालाबों के अस्तित्व को ही मिटा दिया है। जिलाभर में ऐसे दर्जनों स्थान है जहां कभी तालाब होते थे लेकिन अब उनका नामोनिशान तक समाप्त हो गया है। तालाबों वाली जगह पर या तो अतिक्रमण हो चुका है या फिर वहां कचरे के ढेर लगे हुए हैं। इन तालाबों की सुध लेने की अब किसी को फुर्सत तक नहीं है। रामतलाई तालाब पर भू-माफियाओं की नजर शहर के वार्ड नंबर 29 व 25 के मध्य में कभी रामतलाई तालाब होता था। इस तालाब में बारिश का पानी जमा होता था जिससे फाटक पार के लोगों की जरूरतें पूरी होती थी।
अमित सैनी, रेवाड़ी
हमारे लालच और लापरवाही ने तालाबों के अस्तित्व को ही मिटा दिया है। जिलेभर में ऐसे दर्जनों स्थान हैं, जहां कभी तालाब होते थे लेकिन अब उनका नामोनिशान तक समाप्त हो गया है। तालाबों वाली जगह पर या तो अतिक्रमण हो चुका है या फिर वहां कचरे के ढेर लगे हुए हैं। इन तालाबों की सुध लेने की अब किसी को फुर्सत तक नहीं है। रामतलाई तालाब पर भूमाफियाओं की नजर
शहर के वार्ड नंबर 29 व 25 के मध्य में कभी रामतलाई तालाब होता था। इस तालाब में बारिश का पानी जमा होता था जिससे फाटक पार के लोगों की जरूरतें पूरी होती थी। तालाब अपने आप में एक बड़ा सहारा था लेकिन इस जलाश्य का अब अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। रामतलाई तालाब पर भू-माफियाओं व अतिक्रमणकारियों की ऐसी निगाह पड़ी कि यह सिमटता ही चला गया। रामतलाई तालाब की जमीन नगर परिषद के नाम पर है लेकिन नप भी इसकी कोई देखभाल नहीं कर पा रही है। तालाब की जमीन पर कई लोगों ने अपने आशियाने बसा लिए हैं। इसके साथ ही अब नगर परिषद ने इसको डंपिग यार्ड ही बनाकर रख दिया है। यहां पर आसपास के गली मोहल्लों का कूड़ा कचरा एकत्रित किया जाता है। इतना ही नहीं लोग तालाब की जमीन पर मलबा डालकर चले जाते हैं।
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महावाला तालाब के भी हालात बद से बदतर
ठीक इसी तरह वार्ड नंबर 30 में भी कभी एक तालाब हुआ करता था। इस तालाब को महावाला तालाब के नाम से जाना जाता था। अब महावाला तालाब का भी कोई अस्तित्व नहीं बचा है। रामतलाई की तरह ही महावाला तालाब पर भी कचरे के ढेर लगे रहते हैं लेकिन इनके जीर्णोद्वार को लेकर किसी को कोई चिता नहीं है। तालाबों के बंद होने से बारिश का कीमती पानी व्यर्थ बह जाता है। इसके साथ ही इन स्थानों पर जलभराव की समस्या भी बनी रहती है। तालाब थे तो लोगों को इन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता था।
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दो बड़े तालाबों की नगर परिषद ने कोई सुध नहीं ली जिसके चलते ही आज वहां अतिक्रमण हो रहा है तथा कचरे के ढेर लगे हुए हैं। तालाब होते तो जलसंरक्षण व जलसंचयन होता जिससे आसपास का जलस्तर ऊंचा उठता। मैंने तालाबों के जीर्णोद्वार के लिए सीएम विडो पर शिकायत भी दी है ताकि इनकी सुध ली जाए।
-शकुंतला यादव, मोहल्लावासी।
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तालाब थे तो फाटक पार के इलाके का जलस्तर भी खासा ऊंचा था तथा बहुत सी जरूरतें पूरी हो जाती थी। अब तालाबों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। लोग यहां कचरा तथा मलबा डालते हैं। इन तालाबों की फिर से सुध लेने की जरूरत है।
-प्रदीप भार्गव, पूर्व पार्षद।