शहरनामा: अमित सैनी
सड़क पर दंगल कर न दे अमंगल अखाड़े में तो दंगल होता ही रहता है लेकिन शहरवासियों पर
सड़क पर दंगल, कर न दे अमंगल अखाड़े में तो दंगल होता ही रहता है लेकिन शहरवासियों पर नगर परिषद की विशेष कृपा है। इसका फल यह है कि आम आदमी को सड़क पर ही दंगल देखने को मिल रहा है, वो भी दिन में एक बार नहीं बल्कि कई-कई बार। दरअसल, यह दंगल होता है सड़क पर बेसहारा घूमने वाले उन गोवंशों के बीच जिनको शायद मालुम है कि यहां की सड़कें अब उनका स्थायी अखाड़ा बन चुकी है। बड़े-बड़े सींग वाले वजनी सांडों के बीच जब दंगल शुरू होता है तो वाहनों की रफ्तार और आसपास के दुकानदारों की सांसे थम जाती है। शिकायत करें भी तो किससे, प्रशासन व सरकार की नजरों में तो जिला पहले ही कैटल फ्री हो चुका है। डर यह भी है कि अगर अधिकारियों से शिकायत की तो कहीं वो उस रिपोर्ट को न दिखा दें जिसमें लिखा है बेसहारा पशु मुक्त शहर, अब तो राम ही करे खेर। ----
लो जी खिच गई फोटो पौधे लगाने का अंदाज आजकल कुछ बदल गया है। सात-आठ लोगों को इक्ट्ठा कीजिए, एक पौधा लगाइए और बढि़या सी फोटो खिचाकर उसे वायरल कर दीजिए। लो जी हो गया पौधारोपण, खिच गई फोटो और मिल गई वाहवाही। अब पौधा बड़ा होगा या नहीं इसकी जिम्मेदारी हमारी थोड़े ही है। सारा खेल इसी जिम्मेदारी का ही तो है। जिम्मेदारी ही ईमानदारी से निभाते तो हर साल लगाए जाने वाले लाखों पौधों में से गिने चुने ही पेड़ थोड़े ना बनते। हमने कुछ पर्यावरण प्रेमियों से यही सवाल कर दिया तो उनका जवाब भी बेहतरीन था। बोले भैय्या, पौधे भी हम लगाएं, फोटो भी हम खिचाए और बाद में उस पौधे को पेड़ बनाने की जिम्मेदारी भी हम ही निभाए। पौधारोपण करके कोई अपराध थोड़े ही ना कर दिया, जो इतनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। हम तो बस लोगों को जागरूक कर रहे हैं। अब भला जागरूक करना भी क्या गलत है।
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सड़क की शान बढ़ा रहा ढाई लाख का पोल जिदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का। बात सोलह आना सही है। लोक निर्माण विभाग की इलेक्ट्रिक विग के अधिकारी भी शहरभर में लगी आधुनिक लाइटों को लेकर ऐसी ही कुछ धारणा रखे हुए है। तत्कालीन लोकनिर्माण मंत्री राव नरबीर सिंह ने बड़े चाव से शहर में दो से ढाई लाख रुपये की एक-एक आधुनिक लाइट लगवाई थी। सोचा था शहर चमकेगा लेकिन भला अधिकारियों से समझदार कौन है। ढाई लाख की एक-एक लाइट को लोकनिर्माण विभाग ने भी संभालकर रखा हुआ है। ज्यादातर को तो जलाते भी नहीं। आंबेडकर चौक के निकट तो ढाई लाख की इस लाइट का एक पोल टूटकर बीते पंद्रह दिनों से सड़क पर ही पड़ा हुआ है लेकिन मजाल क्या विभागीय अधिकारी उसे सही करा दें या वहां से उठाकर ले जाएं। अधिकारी यही सोच रहे हैं कि ढाई लाख का पोल खड़ा हो या पड़ा हो, जनता को दिख तो रहा है। -----
कृपया गंदगी न करें, ये जिम्मेदारी हमारी है
जरूरी थोड़े ही है कि हर जिम्मेदारी आम आदमी ही निभाएगा, नगर परिषद क्या कुछ भी नहीं करेगी। यह बात गंदगी फैलाने पर भी लागू है। आवश्यक नहीं कि आम आदमी ही अपनी मनमानी करेगा और नप कर्मचारी हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे। वे अपनी जिम्मेदारी से कभी पीछे नहीं हटते। सड़क व चौराहे के बीचोंबीच हो या फिर अस्पताल व स्कूल के सामने, कचरा एकत्रित करने के लिए ऐसी-ऐसी जगह पर डंपिग स्टेशन बनाए गए हैं, जिससे कचरा फैला हुआ दिखाई देता रहे और उसकी दुर्गंध आसपास के लोगों को मिलती रहे। कई जगहों पर तो दीवारें स्वच्छता का संदेश दे रही हैं और नीचे कूड़े का अंबार लगा है। हालात को देखकर तो यही लगता है कि 'कृपया गंदगी न फैलाएं' का स्लोगन सिर्फ आम आदमी के लिए ही बनाया गया है, क्योंकि नगर परिषद तो अपनी इस जिम्मेदारी का बेहतर तरीके से निर्वहन कर ही रही है।