शिक्षकों को पढ़ाया नैतिकता का पाठ
मॉडल टाउन स्थित बाल भवन में विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों के लिए 'मैं कौन हूं, मैं क्या कर रहा हूं और मुझे क्या करना चाहिए' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। नगराधीश डॉ.वीरेंद्र ¨सह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अध्यापकों की प्रेरणा से समाज का निर्माण होता है और उनके पढ़ाने का तरीका विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रूचि पैदा करता है। यदि शिक्षकों का समझाने का तरीका अच्छा होगा तो सीखने वाले स्वयं उनके पास चलकर आते हैं। सामान्य बुद्धि, मध्यम बुद्धि और तीसरा कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थियों को अध्यापक अपने ढंग से पढ़ाते हैं। कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी बात को शीघ्र पकड़ जाते हैं, मध्यम के साथ थोडा अधिक समय लगाना पड़ता है और सामान्य बुद्धि के बच्चों को सबसे अधिक समय बात को समझाने में लगता है।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: मॉडल टाउन स्थित बाल भवन में विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों के लिए 'मैं कौन हूं, मैं क्या कर रहा हूं और मुझे क्या करना चाहिए' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। नगराधीश डॉ. वीरेंद्र ¨सह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अध्यापकों की प्रेरणा से समाज का निर्माण होता है और उनके पढ़ाने का तरीका विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रूचि पैदा करता है। यदि शिक्षकों का समझाने का तरीका अच्छा होगा तो सीखने वाले स्वयं उनके पास चलकर आते हैं। सामान्य बुद्धि, मध्यम बुद्धि और तीसरा कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थियों को अध्यापक अपने ढंग से पढ़ाते हैं। कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी बात को शीघ्र पकड़ जाते हैं, मध्यम के साथ थोडा अधिक समय लगाना पड़ता है और सामान्य बुद्धि के बच्चों को सबसे अधिक समय बात को समझाने में लगता है। उन्होंने कहा कि समय-समय पर शिक्षकों को रिफ्रेशन और ओरिएंटेशन कॉर्स करना चाहिए ताकि उन्हें नई दिशा मिल सके। उन्होंने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरू और शिष्य के बीच में जो आदरभाव कम हो गया है उसके क्या कारण है तथा स्कूलों में बढ़ रही छेड़खानी व पढ़ाई नहीं होने के कारणों से निपटने के लिए सौहार्द वातावरण निर्माण करना है। उन्होंने कहा कि बच्चे सबसे अधिक बात अपने अध्यापकों की मानते हैं। यदि अध्यापक बच्चे को सामाजिक संस्कार देंगे तो उससे बच्चे चरित्रवान होंगे जो आगे चलकर राष्ट्र के निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग देंगे।
कवि दिनेश रघुवंशी ने कविताओं के माध्यम से अच्छे समाज के निर्माण में माता-पिता, गुरूजनों के योगदान पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में अमंनगनी के निदेशक त्रिलोकचंद शर्मा ने कहा कि प्रत्येक बच्चा 10 से 12 वर्ष तक गुरू के पास रहता है। यदि एक गुरू यह संकल्प कर ले कि उसे अपने स्कूल को संस्कारवान बनाना है तो निश्चित रूप से वह स्कूल संस्कारवान बनेगा। उन्होंने बताया कि गुरू से विद्यार्थी, विद्यार्थी से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है। प्रमुख समाज सेवी एवं उद्योगपति एमपी गोयल ने अपने नाकारात्मक विचारों का त्याग करके साकारात्मक बात करते हुए सकारात्मक विचार पैदा करने का आह्वान किया। कार्यशाला में जिला मौलिक शिक्षाधिकारी सुरेश गोरिया, बीईओ जवान ¨सह, प्रवक्ता राजेश बंसल सहित जिले के अन्य शिक्षकगण उपस्थित रहे।