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राव के एक इशारे पर राजनीति में आता था मोड़

जागरण संवाददाता रेवाड़ी: अहीरवाल नाम को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री राव बि

By Edited By: Published: Sun, 19 Feb 2017 07:19 PM (IST)Updated: Sun, 19 Feb 2017 07:19 PM (IST)
राव के एक इशारे पर राजनीति में आता था मोड़

जागरण संवाददाता रेवाड़ी: अहीरवाल नाम को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र ¨सह की सोमवार को जयंती है। उनका आवास 'रामपुरा हाउस' वर्षों तक अहीरवाल की राजनीतिक का केंद्र रहा। राव जहां पर खड़े होते थे, वहीं से राजनीति की कक्षा शुरू हो जाती थी। आज का राजनीति परिवेश बदलता जा रहा है। परंतु अहीरवाल में एक समय ऐसा था, जब यहां की राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री स्व. राव बिरेंद्र ¨सह के इशारे पर चलती थी। उनके एक इशारे पर राजनीति के गलियारों में नया मोड़ आ जाता था।

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1952 में लड़ा था पहला चुनाव

20 फरवरी 1921 को जन्मे राव बिरेंद्र ¨सह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज से स्नातक की उपाधि हासिल की। इसके बाद वे सेना में कैप्टन बन गये, परंतु कुछ समय बाद इस्तीफा देकर वे सक्रिय राजनीति में आ गये। वर्ष 1952 में पहली बार विस चुनाव लड़ा। पहले चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन बाद में उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1954 में राव मात्र 30 वर्ष की उम्र में ही संयुक्त पंजाब के एमएलसी बने। सरदार प्रताप ¨सह कैंरों मंत्रिमंडल में उन्हें परिवहन व राजस्व मंत्री का जिम्मा दिया गया, परंतु कैरों से पटरी अधिक समय तक नहीं बैठी। हरियाणा गठन के बाद वर्ष 1967 में हुए पहले आम चुनावों में राव बिरेंद्र अपनी ही विशाल हरियाणा पार्टी से पटौदी से चुनाव जीतकर विधायक बने। उन्हें प्रदेश का प्रथम निर्वाचित विधानसभा अध्यक्ष बनने का गौरव मिला, परंतु राव की निगाह सीएम की कुर्सी पर थी।

1967 में बने प्रदेश के मुख्यमंत्री

24 मार्च 1967 को राव संयुक्त विधायक दल के बल पर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने, लेकिन 20 नवंबर 1967 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राष्ट्रपति शासन के बाद वर्ष 1968 में हुए मध्यावधि चुनावों में राव बिरेंद्र की विशाल हरियाणा पार्टी 22 सीटें हासिल कर प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वर्ष 1971 में राव ने विशाल हरियाणा पार्टी से महेंद्रगढ़ लोस का चुनाव जीता। वर्ष 1977 में अटेली से विधायक बने। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी के आग्रह पर राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। वर्ष 1980 में केंद्र में कांग्रेस सरकार बनने पर इंदिरा गांधी ने राव को कृषि, ¨सचाई, ग्रामीण विकास, खाद्य एवं आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा सौंपा। कृषि मंत्री रहते राव ने काम के बदले अनाज जैसे कार्यक्रम लागू किये। राव के बारे में एक कहावत प्रचलित रही है-राव आया भाव आया। ये कहावत फसलों के उचित मूल्य दिलाने के कारण प्रचलित हुई थी। राव बिरेन्द्र ¨सह का निधन 30 सितंबर 2009 को गुड़गांव में हुआ। निधन से कई वर्ष पहले ही वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गये थे, लेकिन अहम मुद्दों पर उनकी टिप्पणी राजनीति में गर्मी पैदा करती रही।

दी जाएगी श्रद्धांजलि

पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र ¨सह की जयंती पर नारनौल रोड स्थित उनके समाधि स्थल पर 20 फरवरी, सोमवार को सुबह साढ़े आठ बजे हवन-यज्ञ व श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। उनके बड़े बेटे एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत ¨सह सुबह उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की ओर से भी राव को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।


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