बाक्स : 27 वर्ष बाद फिर पुराने ठिकाने पर लौटे रघु यादव
फोटो - 19 जानर: वोट कटवा -------------- -पहली बार वर्ष 1987 में रेवाड़ी विस सीट से लड़कर बने थे
फोटो - 19
जानर: वोट कटवा
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-पहली बार वर्ष 1987 में रेवाड़ी विस सीट से लड़कर बने थे विधायक, आधे कार्यकाल में ही दे दिया था इस्तीफा
-इसके बाद कई बार लड़े लोकसभा चुनाव, नहीं दिया किस्मत ने कभी भी साथ, इस बार दूसरी बार लड़ेंगे विस चुनाव
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे पूर्व विधायक रघु यादव 27 वर्ष बाद फिर पुराने ठिकाने पर लौट आये हैं। रेवाड़ी विधानसभा सीट से वर्ष 1987 में राजनीति की शुरूआत करके विधायक बने रघु तब बाद में 5 लोकसभा व तीन विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इस दौरान वे महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से लगातार पांच बार चुनाव लड़कर हर बार तीसरे स्थान पर रहने का रिकार्ड भी अपने नाम कर चुके हैं।
रघु ने वर्ष 1987 में अपना पहला विस चुनाव रेवाड़ी सीट से चौ. देवीलाल की अगुवाई में लोकदल से लड़ा था, लेकिन मुद्दों की राजनीति में बनी मूंछ की लड़ाई के चलते रघु की चौ. देवीलाल से अधिक समय तक पटरी नहीं बैठ पाई। हरियाणा के नायक बनने के इरादे के साथ उन्होंने वर्ष 1989 में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। इस बीच रघु कांग्रेस में शामिल हो गये। उन्हें उपचुनाव में रेवाड़ी से ही टिकट की पेशकश की गई, लेकिन रघु ने ये पेशकश इसलिए ठुकरा दी, क्योंकि वे कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व से लोकसभा टिकट की हां करवा चुके थे। जब वर्ष 1991 में लोकसभा चुनाव का अवसर आया तो रघु को कांग्रेस से लोकसभा की टिकट नहीं मिली। नाराज रघु परिसीमन से पूर्व अस्तित्व में रही महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में कूद पड़े, लेकिन अन्यान्य कारणों से जनता ने उन्हें सिर माथे पर नहीं बैठाया। रघु ने लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार उन्हें तीसरा स्थान मिला। खुद जीतने की बजाय किसी दूसरे को हराने वाले नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई। अब लंबे अंतराल के बाद रघु फिर रेवाड़ी आये हैं। उनका इरादा जीत का है। कामों की सूची भी लंबी है। रेवाड़ी को जिला बनाने से लेकर रीजनल सेंटर दिलाने तथा यहां पर नहरी पानी पर आधारित परियोजना लाने का श्रेय रघु को ही है, लेकिन ये भी सच है कि रघु के उठाये मुद्दों को आगे बढ़ाने में उनकी टिकट की ना पर रेवाड़ी से मैदान में उतरे कैप्टन अजय सिंह यादव ने ही आगे बढ़ाया है। यदि रघु वर्ष 1987 में कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरते तो आज शायद राजनीतिक समीकरण दूसरा होता। हो सकता है आज जहां के नायक कैप्टन बने हुए हैं, वहां के 'कैप्टन' रघु होते। देखना ये है कि रघु इस बार पुराना इतिहास दोहराते हैं या वोट कटवा के रूप में किसी की राह कठिन बनाने का काम करते हैं।