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हरिपुरधार मंदिर से माथा टेककर लौटा युवक, घर से 200 कदम दूर पिता के सामने मौत Panipat News

ऋषभ ढींगरा दोस्तों के संग हरिपुरधार मंदिर गया था। अंबाला-जगाधरी हाईवे स्थित साकेत अस्पताल के पास इंतजार में खड़े पिता के सामने हादसा हुआ।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 08 Jan 2020 09:53 AM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 04:33 PM (IST)
हरिपुरधार मंदिर से माथा टेककर लौटा युवक, घर से 200 कदम दूर पिता के सामने मौत Panipat News

पानीपत/अंबाला, जेएनएन। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर स्थित हरिपुरधार मंदिर से माथा टेककर लौट रहे छावनी के विश्वकर्मा नगर निवासी ऋषभ ढींगरा(24) की घर से मात्र 200 कदम की दूरी पर सड़क हादसे में मौत हो गई। 

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हादसा अंबाला-जगाधरी हाईवे स्थित साकेत अस्पताल के पास हुआ, जहां ऋषभ के पिता दलीप कुमार उसका इंतजार कर रहे थे। उनकी आंखों के सामने ही साहा की तरफ से आई तेज रफ्तार कार ने बाइक सवार ऋषभ को अपनी चपेट में ले लिया। हादसे के बाद कार चालक मौके से फरार हो गया। राहगीरों की मदद से दलीप बेटे ऋषभ को लेकर लछावनी के नागरिक अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

सड़क पार करते समय हुआ हादसा

दलीप कुमार का कहना था कि ऋषभ अपने दोस्तों के संग कार में हरिपुरधार गया था। अंबाला पहुंचने के बाद वह दोस्त के घर उतर गया। फोन पर उसने बताया कि उसके पास बाइक नहीं है। इस पर वह उसे लेने के लिए साकेत अस्पताल के बाहर खड़े हो गए। इतने में ऋषभ अपने दोस्त की बाइक लेकर आता दिखा। मगर अस्पताल के सामने से सड़क पार करते समय तेज रफ्तार कार ने टक्कर मार दी। जवान बेटे की मौत के बाद परिवार में कोहराम मच गया। जांच अधिकारी हेड कांस्टेबल सतीश कुमार ने बताया कि मृतक के पिता दलीप कुमार ने कार का नंबर दर्ज करवाया था। उसी के आधार पर अज्ञात चालक के खिलाफ केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। 

मौत के बाद भी बेटे की आंखें देख सके दुनिया, पिता ने करवाया नेत्रदान 

छावनी के विश्वकर्मा नगर निवासी दलीप कुमार के लिए उसके बेटे ऋषभ की सड़क हादसे में मौत एक सदमा थी। मगर उन्होंने पोस्टमार्टम के एक घंटा पहले बेटे के नेत्र दान करने का फैसला लेकर सबको अचंभित कर दिया। दोस्तों व रिश्तेदारों ने इस फैसले को खूब सराहा। फोन करने के एक घंटे बाद चंडीगढ़ पीजीआइ से तीन डॉक्टरों की टीम नागरिक अस्पताल पहुंची, जिन्होंने 20 मिनट की सर्जरी कर ऋषभ की आंखों को सुरक्षित अपने साथ ले गए। दलीप कुमार का कहना था कि वह अपने बेटे का गम भले ही न भूल सकें, लेकिन कम से कम एक दिलासा तो मिलेगा कि उनका बेटा जाते-जाते किसी को नई रोशनी दे गया। 


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