घोड़ी की शान-ओ-शौकत देख रह जाएंगे हैरान, साबुन शैंपू से नहाती, छह बार राष्ट्रीय चैंपियन
राज्य पशु धन प्रदर्शनी में नुकरा नस्ल की घोड़ी लोगों के लिए आकर्षण का केंंद्र है। वह साबुन और शैंपू से नहाती है और उसके बच्चे लाखों में बिकते हैं।
पानीपत/करनाल, [पवन शर्मा]। हर रोज साबुन और शैंपू से पूरे शरीर की धुलाई। चकाचक मालिश। खाने-पीने से लेकर सोने तक तमाम जरूरी इंतजाम। खुराक पर भी बेहद बारीकी से ध्यान। पूरी कवायद इतनी चाक-चौबंद कि नाक पर मक्खी भी न बैठने पाए। जी हां, यह सब कुछ नुकरा नस्ल की घोड़ी रेशमा के लिए किया गया है, जिसकी शान-ओ-शौकत देखते ही बनती है।
एक दौर में सवारी के लिए राजा-महाराजाओं की पहली पसंद इस घोड़ी का आज भी यह जलवा है कि इसके बच्चे तक चार-पांच लाख रुपये की कीमत पर बिक जाते हैं।
यहां एनडीआरआइ ग्राउंड में शुरू हुई राज्य पशुधन प्रदर्शनी में करनाल के गालिबखेड़ी गांव से रेशमा नाम की घोड़ी को लेकर पहुंचे पशुपालक कर्मजीत सिंह ने इसकी खूबियों के बारे में बताया। कर्मजीत ने बताया कि यह घोड़ी कई मायनों में खास है।
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से लेकर तमाम नामी हस्तियों ने नुकरा नस्ल की घोड़ी को अपने शाही अस्तबल में जगह दी। इसकी सबसे बड़ी वजह कि शानदार कद-काठी के साथ इसकी बेजोड़ सुंदरता भी है। जो घोड़ी कर्मजीत के पास है, वह भी इन तमाम कसौटियों पर खरी उतरती है। पूरी तरह बेदाग और झकाझक सफेद इस घोड़ी को कर्मजीत अनमोल बताते हैं।
वह कहते हैं कि आज रेशमा की उम्र करीब 13 वर्ष हो चुकी है। बहुत छोटी उम्र में ही पंजाब से वह इसे खरीदकर लाए थे। तब से अब तक इसने चार बार बच्चों को जन्म दिया है। इसके एक बच्चे की कीमत चार से पांच लाख रुपये तक होती है। जहां तक इसे बेचने की बात है तो वह कभी ऐसा सोचते तक नहीं क्योंकि, इससे उनका और उनके पूरे परिवार का गहरा जुड़ाव है।
कर्मजीत बताते हैं कि रेशमा की देखभाल में वह किसी किस्म का समझौता नहीं करते। सबसे ज्यादा ध्यान इसकी सुंदरता और चमक बरकरार रखने पर दिया जाता है। इसके लिए रेशमा को हर रोज बिला नागा शव साबुन और शैंपू से नहलाया जाता है। इसके बाद अच्छे किस्म के ऑयल या विशेष लेप से इसकी मालिश की जाती है।
खुराक में इसे भरपूर मात्रा में चना, कनक, जई व जौ आदि दिए जाते हैं। रेशमा को हल्के हाथों से मसाज बहुत पसंद है। इसी तरह रेशमा के आराम और गर्मी-सर्दी के प्रभाव से बचाने के लिए हर किस्म की व्यवस्था की गई है। सफाई के लिए भी तमाम जरूरी इंतजाम रहते हैं। इस पर हर माह करीब 25-30 हजार रुपये खर्च आता है।
छह बार रह चुकी राष्ट्रीय चैंपियन
रेशमा अब तक अपनी बेमिसाल सुंदरता के बूते छह बार राष्ट्रीय पशु प्रतियोगिताओं में चैंपियन बनी है। हरियाणा में करनाल, हिसार, झज्जर और सोनीपत से लेकर पंजाब के मुक्तसर तथा फतेहगढ़ साहिब तक इसने कामयाबी का परचम लहराया है। अब कर्मजीत इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं में शिरकत के लिए तैयार कर रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान में जलवा
नुकरा नस्ल की घोड़ी पाकिस्तान के पंजाब में पाई जाती है। यही कारण है कि भारत और पाकिस्तान, दोनों के पंजाब में इसे बेहद पसंद किया जाता रहा है। फौज में भी बहुतायात से इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा फिल्मों, इवेंट और शादी समारोहों के लिए भी नुकरा नस्ल की घोडिय़ों की मांग रहती है।
पशुओं की खूबियां जानने के लिए झलका क्रेज
राज्य पशुधन प्रदर्शनी में इस बार कई आकर्षण शामिल हुए हैं। इनमें गाय, भैंसों के साथ ऊंट व अन्य पशु भी हैं, जिनकी खूबियां जानने के लिए प्रदर्शनी में पहुंचे लोगों में अलग ही उत्सुकता नजर आई।
साहीवाल सबसे बढिय़ा नस्ल
तरावड़ी के फार्म से दो साहीवाल गाय के अलावा दो सांड तथा तीन हरियाणा नस्ल की गाय लेकर आए नरेश कुमार व राम ङ्क्षसह ने बताया कि उनके पास मेघा नामक साहीवाल नस्ल की गाय है, जिसने हाल में पंजाब के बटाला में आयोजित प्रतियोगिता में दूध उत्पादन में पहला पुरस्कार जीता था। इस गाय को ढाई लाख रुपये का पुरस्कार हासिल हुआ है। इसी तरह श्रद्धा नामक उनकी एक अन्य गाय को सुंदरता में दूसरा पुरस्कार मिला। उन्होंने बताया कि साहीवाल सबसे विश्वसनीय और लोकप्रिय देसी नस्ल है, जिसे भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान समेत कई देशों में काफी पसंद किया जाता है। सुंदरता से लेकर दूध उत्पादन तक इसका कोई सानी नहीं है। इसीलिए वे लगातार इस समेत तमाम देसी नस्लों को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं।
ऊंटों की छटा ने मोहा मन
पशुधन प्रदर्शनी में करनाल के कौंड से खास तौर पर सजे धजे ऊंट लेकर आए पशुपालकों ने बताया कि ये ऊंट वे राजस्थान के पशु मेले से लाए हैं। वैसे तो इनका इस्तेमाल वे तूड़ी की बुग्गी में करते हैं लेकिन ये ऊंट जब सजधजकर ऐसे आयोजनों में शरीक होते हैं तो सभी में उन्हें देखने के लिए खासा उत्साह नजर आता है। पशुपालक संदीप ने बताया कि यहां भी उनके ऊंटों को काफी पसंद किया जा रहा है।
छोटी उम्र में लाड़ली ने जीते कई खिताब
हिसार के लक्ष्मी डेयरी फार्म से आए प्रमोद की दो दांत कटड़ी भैंस को देखने के लिए भी काफी क्रेज नजर आया। प्रमोद ने बताया कि सिर्फ दो दांत यानि करीब पौने तीन साल उम्र की उनकी भैंस का नाम लाड़ली है, जो लगातार आठ बार नेशनल चैंपियन बन चुकी है। इस भैंस की देखरेख पर वे खासा ध्यान देते हैं। देसी नस्ल की भैंस होने के बावजूद यह किसी भी संकर या विदेशी नस्ल की भैंस से कम नहीं है।
सीमू को भी किया गया पसंद
अंबाला के तंबड़ से आए विक्टर कुमार की देसी साहीवाल नस्ल की गाय सीमू भी काफी पसंद की गई। पानीपत में आयोजित मेले में सुंदरता के लिहाज से शानदार प्रदर्शन कर चुकी सीमू दूध उत्पादन में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। उन्होंने बताया कि साहीवाल नस्ल की गाय काफी अच्छी रहती है और इसकी तमाम खासियत हैं।