World Earth Day 2020: बदलना होगा खेती का रवैया, वरना बंजर हो जाएगी भूमि
अधिक उपज लेने की होड़ से धरती की तासीर बिगड़ रही है। अगर किसानों का ये रवैया नहीं बदला तो वह दिन दूर नहीं जब जमीन बंजर हो जाएगी।
पानीपत/कैथल, जेएनएन। घटती उर्वरता और किसान की ज्यादा से ज्यादा पैदावार लेने की होड़ ने धरा की तासीर को बिगाड़ दिया है। कृषि विज्ञानी रासायनों के अत्याधिक प्रयोग को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। किसान वैज्ञानिक ईश्वर कुंडू इसे लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं। कुंडू का तैयार किया जैविक कीटनाशक राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में इस्तेमाल होते हैं। राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं।
वर्तमान हालातों ने यह साबित कर दिया है कि अगर विश्व के समक्ष कोई विपत्ति आती है तो बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्था भी डांवाडोल हो सकती है। कोई भी विज्ञान या तकनीक ठहर नहीं पाती, लेकिन हर विपरीत स्थिति में कृषि ही ऐसी अर्थव्यवस्था है जो सबका सामना करते हुए भी टिकी रहती है। आज सबका विश्वास और उम्मीद कृषि पर ही है। खासकर भारत में कृषि ऐसा क्षेत्र है जो देश को संभाल सकता है। लेकिन कृषि का अर्थ ही पृथ्वी और मृदा है। जब भूमि सुरक्षित रहेगी, उपजाऊ रहेगी तभी कृषि टिकी रहेगी।
आधुनिक तरीकों, अत्यधिक रसायनों, अधिकतम उपज लेने के फेर में भूमि को बिल्कुल निचोड़ लिया गया है। आर्गेनिक कार्बन, पोषक तत्व न्यूनतम स्तर पर आ चुके हैं। अब किसान भी समझ रहे हैं कि अगर इसी तरह व्यवहार किया गया तो भूमि को बंजर होने से कोई नहीं रोक सकता। फिर इस बढ़ती हुई जनसंख्या का पेट कैसे भरेगा। मृदा की सेहत सुधारने हेतु सबको एकजुट होना होगा। पुराने तौर तरीकों, प्राकृतिक प्रदत्त उत्पादों का प्रयोग बढ़ाना होगा। जहरीले रसायनों से तौबा करनी पड़ेगी। तभी मृदा की उपजाऊ शक्ति बच पाएगी।
25 साल में खोजा समाधान
मैंने इस दिशा में 25 साल पहले सोचना करना शुरू किया था। समाधान यही पाया कि सिर्फ भूमि को मरने से बचाना है, क्योंकि जहरीले रसायनों ने भूमि के भीतर निरंतर चलने वाली श्वास प्रक्रिया को खत्म कर दिया है। बस भूमि में जीवन संचार करना था। प्राकृतिक जड़ी बूटियों, वनस्पतियों आदि से ऐसे उत्पाद बनाए, जिससे जमीन में कुदरती क्रिया बढ़े, मित्र किट, बैक्टीरिया आदि की संख्या बढ़े। सफलता मिली। खराब से खराब भूमि को भी हम एक साल में पुनर्जीवित कर सकते हैं। यह खोज पूरी तरह आयुर्वेद की विधि, सिद्धांत पर आधारित है। मेरी नजर में कोई कीड़ा या बीमारी के नाम पर जहर डालने की जरूरत नहीं है। बस भूमि में संतुलन कायम करना है। पौधों में हर समस्या से लडऩे की ताकत पैदा करना है।
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