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Water Crises: दिल्ली के बाद हरियाणा में गहराया जल संकट, अलर्ट जारी, करनाल डार्क जोन घोषित

Water Crises दिल्ली के बाद हरियाणा में भी जल संकट गहराता जा रहा है। करनाल को डार्क जोन घोषित कर दिया गया है। कृषि एवं कल्याण विभाग की सख्ती के बाद भी समय से पहले की जा रही है धान की रोपाई विभाग ने किए नोटिस जारी

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 18 May 2022 05:45 PM (IST)Updated: Wed, 18 May 2022 05:45 PM (IST)
Water Crises: दिल्ली के बाद हरियाणा में गहराया जल संकट, अलर्ट जारी, करनाल डार्क जोन घोषित
Water Crises: हरियाणा में गहराया जल संकट।

करनाल, जागरण संवाददाता। पानी बर्बादी की यह कैसी जिद है? जिससे आने वाली पीढ़ी के भविष्य को गर्त में धकेल रहे हैं। जिस धरोहर को संजोकर रखना चाहिए, उसको हम बर्बाद कर रहे हैं। बुजुर्गों ने जो पानी की विरासत हमें दी थी, उसको बढ़ाना तो दूर उतनी भी हम नहीं दे रहे हैं।

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बीते 18 साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वह हैरान कर देने वाले हैं। वर्ष 1999 से लेकर 2021 तक 18 साल में भू-जल स्तर 17.4 मीटर तक नीचे चला गया है। यानि 18 साल से हम नियमों को दरकिनार कर अपनी समय से पहले धान रोपाई, पानी की बर्बाद करने वाली आदतों में सुधार नहीं कर पाए, जिस कारण से हालात ऐसे हो गए हैं कि पानी पाताल में पहुंच चुका है, बावजूद इसके अभी तक इस संदर्भ में गंभीर नहीं हैं। करनाल को डार्क जोन घोषित किया गया है। क्याोकि पानी इतनी गहराई में जा चुका है कि सरकार को इस क्षेत्र में पानी के हो रहे दोहन को लेकर डार्क जोन घोषित करना पड़ा। जिस प्रकार की स्थिति बन रही है आगामी पीढ़ी पानी की बूंद-बूंद को तरसेगी।

हर साल गहराता भूजल स्तर दे रहा चेतावनी

जिले में हर साल गहराता भू-जल स्तर चेतावनी दे रहा है कि पानी को बचाओ, लेकिन नींद से जागने को तैयार नहीं हैं। जिले में फिलहाल 25 मीटर गहराई पर पानी उपलब्ध है। हर साल 0.7 से एक मीटर तक भू-जल का स्तर गहरा रहा है। अब यदि पानी को बचाने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए तो हालात बिगड़ना तय है। जिले के किसान खेती के लिए 90 प्रतिशत भू जल का प्रयोग करते हैं। बासमती की पैदावार अच्छी होने से अधिकतर किसान धान पर निर्भर है। जिले में जल संसाधन जनस्वास्थ्य विभाग के ट््यूबवेल हैं, लेकिन पिछले दो सालों में यह ट््यूबवेल घटते भूजल स्तर के कारण ठप हो गए हैं। करनाल की कई कालोनियों में विभाग को ट््यूबवेल की जगह सबमर्सीबल लगाने पड़े।

जिले में अलग-अलग जगहों पर भू-जल की स्थिति

क्षेत्र का नाम भू-जल की स्थिति

करनाल 25.00 मीटर

इंद्री 18.66 मीटर

नीलोखेड़ी 26.40 मीटर

निसिंग 23.00 मीटर

घरौंडा 22.56 मीटर

असंध 23.61 मीटर

18 साल में 17.4 मीटर गिरा जलस्तर

जिले में 18 सालों में भूजल स्तर के आंकड़ों पर नजर डालें तो भूजल आश्चर्यजनक रूप से नीचे खिसक गया है। हर साल पानी पाताल की ओर जा रहा है। पिछले सालों में जल स्तर के आंकड़ों से इस स्थिति का पता चलता है।

वर्ष         जलस्तर

1999       7.6 मीटर

2005      13.7 मीटर

2006      14.4 मीटर

2007      15.4 मीटर

2008      15.7 मीटर

2009      16.3 मीटर

2010      17.0 मीटर

2011      17.8 मीटर

2012      18.8 मीटर

2013      19.0 मीटर

2014      19.4 मीटर

2015      19.9 मीटर

2016      20.6 मीटर

2017      21.0 मीटर

2018      22.2 मीटर

2019      23.5 मीटर

2020      24.0 मीटर

2021      25.0 मीटर

पानी बर्बादी के यह हैं मुख्य कारण

1. एक किलो धान उत्पादन में करीब तीन हजार लीटर पानी खर्च होता है, यह भूजल पर ही निर्भर है। किसान मानसून सीजन से पहले ही धान रोपाई करते हैं, जिससे पानी का खर्च बहुत अधिक बढ़ जाता है। जब तक मानसून आता है, भूजल स्तर का काफी दोहन हो जाता है।

2. सार्वजनिक स्थानों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पार्कों आदि में खुले में नल चलते रहते हैं, लोग इस ओर ध्यान नहीं देते।

3. सर्विस स्टेशन पर गाड़ियों की वाशिंग में बहुत अधिक पानी खर्च होता है, लोग यदि आदत बदलें तो काफी पानी बचाया जा सकता है।

4. रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम मजबूत हो तो बरसात के पानी का संचय कर रिचार्ज किया जा सकता है, लेकिन यह सिस्टम ठीक नहीं होते, जिससे बरसात का पानी वेस्ट चला जाता है।

5. जिले में करीब 1.75 लाख हैक्टेयर जमीन में से 90 प्रतिशत सिंचाई भूजल-स्तर पर ही निर्भर है।

शहर में जल इकाईयों की स्थिति

करनाल शहर की में जल इकाईयों की स्थिति पर गौर किया जाए तो वह भी ज्यादा ठीक नहीं है। जनस्वास्थ्य विभाग के ट्यूबवेल से पानी की सप्लाई होती है। आसपास के एरिया में लोगों ने सबमर्सीबल लगाए हुए हैं, उनकी अनुमति तक नहीं ली गई है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें यहां पर जगह-जगह पर नलकूप लगे हैं, हालांकि जनस्वास्थ्य विभाग की पानी की सप्लाई है, लेकिन लोग नलकूपों को इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। कुछ समय से स्थिति में बदलाव आया है। भू-जल नीचे जाने के कारण ट्यूबवेलों की जगह लोग स्वयं के सबसर्मीबल लगाना शुरू हो गए हैं।

जागरूकता के लिए बजट अलाट, लेकिन नहीं नजर आता असर

गिरते भू-जल से चिंतित सरकार ने जागरूकता अभियान के लिए 35 लाख रुपये बजट तक अलॉट कर दिया, लेकिन जागरूकता का असर धरातल पर दिखाई नहीं देता है। कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने भी कहा कि महज सरकार के भरोसे यह जंग नहीं जीती जा सकती। हमारे जल संसाधनों को फिर से जिंदा करने के लिए सभी को जागरूक होने की जरूरत है। यह पहल स्वयं से ही करनी होगी। उसके बाद हम दूसरों को जल बचाव के लिए जागरूक कर सकेंगे।


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