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आपदा में अवसर, लाकडाउन लगा तो वकालत छोड़ एडवोकेट भाई बने किसान, पहले ही साल कमाए 40 लाख

जींद के एडवोकेट यज्ञदीप और सज्जन बूरा की अनोखी पहल। 13 एकड़ जमीन में खेती कर रहे हैं। इससे पहले खेती का कोई अनुभव नहीं था। दोनों भाइयों से प्रेरित होकर गांव के दूसरे युवा भी आगे आए और खेती शुरू कर दी।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Fri, 20 Aug 2021 04:34 PM (IST)Updated: Fri, 20 Aug 2021 04:34 PM (IST)
आपदा में अवसर, लाकडाउन लगा तो वकालत छोड़ एडवोकेट भाई बने किसान, पहले ही साल कमाए 40 लाख
जींद के एडवोकेट यज्ञदीप और सज्जन बूरा अपने खेतों में फसल दिखाते हुए।

बिजेंद्र मलिक, जींद। एडवोकेट यज्ञदीप और सज्जन बूरा, दोनों चचेरे भाई हैं। लंबे समय से जींद शहर में रह रहे थे और वकालत करते हैं। पिछले साल जब लाकडाउन लगा, तो अपने पैतृक गांव घोघड़ियां में जाकर खेती शुरू की। बिना किसी अनुभव के खेती की और पहले ही साल 40 लाख रुपये की पैदावार हुई।

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दोनों भाइयों की गांव घोघड़ियां में कुल 13 एकड़ जमीन है। जिसमें तीन एकड़ में नेट हाउस लगाया। चार एकड़ में अमरूद और किन्नू का बाग लगाया। बाग में अमरूद और किन्नू के पौधों के बीच में इस साल फरवरी में तरबूज लगाया। जिससे आठ लाख रुपये की आमदनी हुई। वहीं नेट हाउस में मार्च में खीरा लगाया। जिसका उत्पादन अगस्त के पहले सप्ताह तक हुआ। इससे करीब 32 लाख रुपये की आमदनी हुई। दोनों भाइयों से प्रेरित होकर गांव के दूसरे युवा भी आगे आए। कई युवा यज्ञदीप और सज्जन से ट्रेनिंग लेकर सब्जी की खेती करने लगे। 

पिता ने भी नहीं खेती

यज्ञदीप के पिता दलबीर बूरा एयरफोर्स में थे और सज्जन के पिता राय सिंह आर्य हेडमास्टर थे। इन्होंने खेती नहीं की, यज्ञदीप और दलबीर की परवरिश शहर में ही हुई। उन्हें ये भी अच्छे से पता नहीं था कि गांव में उनके खेत कहां हैं। लेकिन लाकडाउन में कोर्ट बंद हुए, तो विचार आया कि क्यों न खेती करें। जिला बागवानी विभाग कार्यालय में डा. असीम जांगड़ा से मिलकर पूरी प्रक्रिया समझी। बागवानी के लिए ट्रेनिंग ली। उसके बाद काम शुरू किया।

ड्रिप सिस्टम से करते हैं सिंचाई

गांव घोघड़ियां में ज्यादा पानी की उपलब्धता नहीं है। इसलिए खेत में 21 लाख लीटर की क्षमता के दो तालाब बनाए। जिसमें नहरी और बरसाती पानी का संचय करते हैं। नेट हाउस, तालाब, बाग लगाने पर करीब 60 लाख रुपये खर्च आया। इसमें से करीब 20 लाख रुपये की मदद बागवानी विभाग की तरफ से मिली। पहले साल में ही लाखों रुपये की आमदनी हुई। पारंपरिक तरीके से खेती कर कई साल में भी इतना नहीं कमा सकते थे। 

मार्केटिंग की भी नहीं आई समस्या

यज्ञदीप ने बताया कि उन्होंने शुरू में अपने खेत के बाहर ही सब्जी और तरबूज स्टाल लगाकर बेचा। उसके बाद पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के दूसरे जिलों से आकर व्यापारी खुद आकर सब्जी खरीद कर ले जाने लगे। अगर कोई किसान सब्जी की खेती करना चाहता है, तो पारंपरिक तरीके की बजाय बागवानी विभाग से ट्रेनिंग लेकर शुरू करें। बड़े स्तर पर ही काम करना जरूरी नहीं है, एक या दो एकड़ से छोटे स्तर पर भी किसान ये काम शुरू कर सकते हैं।

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