मां-बाप ने दूसरी शादी की तो बेटों का ही कर दिया तिरस्कार, भाई ने भी किशोर से किया किनारा
पानीपत में अनोखा मामला सामने आया है। जहां दूसरी शादी कर चुके मां-बाप अपने बच्चे को अपनाने को तैयार नहीं। शादीशुदा भाई ने भी अपने छोटे भाई से कर लिया किनारा। किशोर की दशा पर बाल कल्याण समिति ने लिया संज्ञान।
पानीपत, [राज सिंह]। रिश्ता, पति-पत्नी का। इस पवित्र रिश्ते में खेल। नौबत तलाक की। दांपत्य की डोर टूटी तो दोनों ने अलग-अलग घर बसा लिए। घर बसे, फिर एक खेल। अबकी बार नया घर बसाने वाले दंपती ने संतान संग ही खेल कर दिया। दोनों में से कोई अपने दोनों बेटों को रखने के लिए तैयार नहीं। बड़ा बेटा तो अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गया, लेकिन उसने भी सगे भाई को अपनाने से इन्कार कर दिया।
यहां भी भाई-भाई का रिश्ता उपेक्षा व स्वार्थ के खेल में उलझ गया। आलम यह कि रिश्तों के खेल में कभी इस घर तो कभी उस घर के कारण किशोर शटल काक बन गया। कमजोर पड़ते पारिवारिक रिश्ते का यह मामला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) कार्यालय में आया है। हालांकि समिति ने संज्ञान लेते हुए किशोर की परवरिश की जिम्मेदारी तय करने की कोशिश शुरू कर दी है।
6 साल पहले हुआ दंपति का तलाक
बाल कल्याण समिति सदस्य डा. मुकेश आर्य बताते हैं कि रजापुर निवासी दंपती का करीब छह साल पहले तलाक हो चुका है। दोनों ने दूसरी शादी कर घर बसा लिए हैं। दंपती के दो पुत्र हैं, बड़ा बेटा शादीशुदा है। छोटा बेटा पिता के पास रहने जाता है तो सौतेली मां अपने दो बच्चों की दुहाई देकर साथ नहीं रखती। भाई के पास जाता है तो आर्थिक सहित दूसरे कारणों से उसे साथ नहीं रखता।
दो साल से मां के साथ रह रहा था
दो साल से अपनी मां के साथ पानीपत में रह रहा था। वहां भी तिरस्कार मिला तो घर छोड़कर शिवनगर स्थित बाल श्रमिक पुनर्वास केंद्र पहुंच गया। वहां की टीम किशोर को लेकर कार्यालय में पहुंची है। डा. आर्य के मुताबिक किशोर के भाई से पूछताछ हुई है। अब माता-पिता को तलब किया गया है। बालिग होने तक पालन-पोषण, शिक्षा और चिकित्सा की जिम्मेदारी माता-पिता की है। शपथ-पत्र लेकर किशोर को किसी एक के साथ भेजा जाएगा।
बेहतर परवरिश नहीं तो बिगड़ा किशोर
बेहतर परवरिश न होने का नतीजा देखें कि किशोर धूम्रपान करने लगा है। आवारा किशोरों के साथ दोस्ती हो गई है। झगड़ा भी करता है। भूख-प्यास मिटाने के लिए दो मोबाइल फोन भी बेच चुका है।
तिरस्कार से व्यवहार पर प्रभाव
सिविल अस्पताल की मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. मोना नागपाल कहती हैं कि स्वजनों के तिरस्कार मिलने पर बच्चे की मानसिक स्थिति और व्यवहार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वह तनाव का शिकार हो सकता है। गलत संगत में पड़कर व्यसनों की लत लग सकती है। ऐसे किशोर अपराध करना भी शुरू कर देते हैं।
माता-पिता व किशोर की हो काउंसिलिंग
नारायणा स्थित राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल और समाज शास्त्र के पूर्व प्रवक्ता सतवीर मलिक ने बताया कि बच्चों के हित में काम करने वाली सरकारी एजेंसियों, स्वयंसेवी संगठनों को किशोर की मदद के लिए आगे आना चाहिए। किशोर व उसके माता-पिता की काउंसिलिंग हो, ताकि वे अपने पुत्र को रख सकें।
माता-पिता दोनों पर है बच्चे की जिम्मेदारी
एडवोकेट अमित राठी ने हिंदू अल्पसंख्यक संरक्षकता अधिनियम 1956 का जिक्र करते हुए बताया कि तलाक के बाद भी बच्चों की देखभाल की कानूनी व नैतिक जिम्मेदारी माता और पिता दोनों की है। केस कोर्ट में पहुंच जाए तो पांच साल तक बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी अधिकांश मां को दी जाती है। पिता खर्च देता है। पांच साल से ज्यादा उम्र का बच्चा अपना विकल्प रख सकता है। कोर्ट भी बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर निर्णय लेती है। कस्टडी का अर्थ भरण-पोषण ही नहीं है। बच्चे की पढ़ाई व चिकित्सा इत्यादि का पूरा ध्यान रखना होगा। ऐसे मामलों में ज्यादातर बच्चे की कस्टडी पिता को दी जाती है।