Move to Jagran APP

अर्जुन अवॉर्डी ने बच्चों को सिखाए भाला फेंकने के गुर, कहा यूं ही नहीं नीरज बन जाते

भाला फेंकने में उस्‍ताद नीरज चोपड़़ा दुनियाभर में मेडल जीतने के बाद अपने गांव में वक्‍त बिता रहे हैं। दो दिन पहले राहगीरी में पहुंचे तो अब गांव के स्‍कूल में बच्‍चों के बीच पहुंचे।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 02 Oct 2018 01:10 PM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2018 05:32 PM (IST)
अर्जुन अवॉर्डी ने बच्चों को सिखाए भाला फेंकने के गुर, कहा यूं ही नहीं नीरज बन जाते
अर्जुन अवॉर्डी ने बच्चों को सिखाए भाला फेंकने के गुर, कहा यूं ही नहीं नीरज बन जाते

सुनील मराठा, थर्मल (पानीपत)। हाल ही में संपन्न हुए एशियन गेम्‍स के जैवलिन थ्रो ईवेंट में गोल्‍ड मेडल विजेता पानीपत के नीरज चोपड़ा अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। अर्जुन अवॉर्डी चोपड़ा मंगलवार को अपने गांव खंडरा में थे। जिस गांव से निकलकर उन्‍होंने दुनियाभर में अपनी भाला फेंक तकनीक से देश का नाम रोशन, उसी गांव के बच्‍चों को उन्‍होंने भाला फेंकना सिखाया। दरअसल, यहां के संस्‍कृति पब्लिक स्‍कूल में उन्‍हें आमंत्रित किया गया। नीरज का यहां फूलमाला पहनाकर स्‍वागत किया गया। भाला फेंकने का यह उस्‍ताद ज्‍यादा देर तक बच्‍चों से दूर नहीं रह सका। कुछ ही देर में स्‍कूल के मैदान में उन्‍होंने बच्‍चों से बात की। भाला मंगाया गया। किस तरह भाले को पकड़ा जाता है, किस तरह उसे हाथों में कसा जाता है, फि‍र कैसे दौड़ते हुए दूर हवा में उछाल देना होता है, यह सब बच्‍चों को समझाया।

loksabha election banner

आधे घंटे तक प्रैक्टिस
अपने पसंदीदा खेल जैवलिन थ्रो में हमेशा रमे रहने वाले नीरज चोपड़ा यहां बच्‍चों के बीच प्रैक्टिस कराने में भी पीछे नहीं हटे। करीब आधे घंटे तक उन्‍होंने मैदान पर बच्‍चों के साथ समय बिताया। उन्‍होंने बताया कि अभ्‍यास करना क्‍यों जरूरी है। खेल-खेल में भी हम अपनी तकनीक में सुधार ला सकते हैं। धीरे-धीरे जब सीख जाएंगे तो आगे भी निकल जाएंगे।

शिक्षकों से लेकर ग्रामीणों को गर्व
नीरज जब बच्‍चों को अभ्‍यास करा रहे थे, उस समय ग्रामीण और शिक्षक भी वहां मौजूद थे। गांव के बुजुर्गों ने कहा कि उन्‍हें अपने बेटे पर गर्व है। शिक्षकों ने कहा कि जिस तरह नीरज आज देशभर के बच्‍चों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। आज उनसे सीखकर ही बच्‍चे कल देश के लिए मेडल जीतकर लाएंगे।

बड़ी सीख, पसीना तो बहाना ही होगा
बच्‍चों ने जब नीरज से पूछा कि इतनी दूर तक भाला कैसे फेंक लेते हो, तब नीरज ने कहा कि मैदान पर पसीना तो बहाना ही होगा। अगर आप सोचें कि देर से उठेंगे, देर से अभ्‍यास करने जाएंगे, तब किसी भी हालत में कामयाब नहीं हो सकते। सुबह और शाम को एक समय पर अभ्‍यास करना जरूरी है। बड़ा खिलाड़ी कोई बाहर से नहीं आता। आपके बीच में से ही कोई नीरज या फि‍र नीरज से आगे निकलने वाला खिलाड़ी निकलेगा। आप अगर खेल में नहीं भी जाना चाहते, तब भी शरीर को फि‍ट रखने के लिए तो अभ्‍यास कर ही सकते हैं।

सफलता के शिखर पर यूं पहुंचे
नीरज ने बताया कि जब उन्‍होंने भाला फेंकना शुरू किया था, तब उसका वजन सात सौ ग्राम होता था। तब वह 35 से 40 मीटर तक फेंक पाते थे। स्‍थानीय स्‍तर पर प्रतियोगिता में भाग लिया। तब वहां पर यह दूरी 45 मीटर तक पहुंच गई। धीरे-धीरे अभ्‍यास से तकनीक बेहतर हुई तो नेशनल चैंपियनशिप में 68 मीटर तक भाला फेंका एशियाड मेंं उन्‍होंने 88 मीटर तक की दूरी नाप दी। अब उनका लक्ष्‍य ओलंपिक में देश को गोल्‍ड मेडल दिलाना है। वैसे बताते चलें कि ओलंपिक में 98.08 मीटर का रिकॉर्ड है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.