हरियाणा में यूं बनते हैं खिलाड़ी, पिता ने बेटे को भाला दिलाने के लिए लोन लिया, उसे बताया भी नहीं
हरियाणा के रहने वाले नवदीप टोक्यो पैरालिंपिक में दम दिखाएंगे। जैवलिन थ्रोअर नवदीप का कद महज चार फीट का है लेकिन हौसले किसी से कम नहीं। नवदीप को राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया है। नवदीप का चार सितंबर कोमुकाबला है।
पानीपत, जागरण संवाददाता। हरियाणा में खिलाड़ी कोई यूं ही नहीं बन जाता है। खिलाड़ी को तपना पड़ता है। लगन से, मेहनत से। दिन रात एक करना पड़ता है। कुछ ऐसा ही हाल है पानीपत के जैवलिन थ्रोअर नवदीप का। इसराना के नवदीप। उम्र 20 साल, कद चार फीट। टोक्यो पैरालिंपिक में भाला फेंकेंगे। 28 अगस्त को रवाना होंगे। चार सितंबर को इनका मुकाबला है। नवदीप पहले कुश्ती खेलते थे। राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित भी किया था। कमर दर्द होने पर कुश्ती को छोड़ना पड़ा लेकिन खेल से अलग नहीं हो सके। उन्होंने भाला उठा लिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीत चुके नवदीप का टोक्यो पैरालिंपिक में चयन हो गया है। इसके पीछे परिवार के संघर्ष की कहानी भी है। बेटे को जैवलिन दिलानी थी। तब पिता दलबीर ने अपनी तीन एलआइसी पर लोन लिया। बेटे को बताया भी नहीं। मेरठ से 60 हजार की और इंदौर से 85 हजार की जैवलिन मंगाई। किसान पिता दलबीर का कहना है कि नवदीप की तैयारी अच्छी चल रही है। देश के लिए पदक जीत सकते हैं।
11 नवंबर 2001 को जन्म नवदीप के बारे में डाक्टरों ने पहले ही बता दिया था कि शारीरिक रूप से इनका कद ज्यादा नहीं बढ़ पाएगा। सातवें महीने डिलवरी हुई थी। रोहतक पीजीआइ के डाक्टरों ने कहा था कि अगर एम्स दिल्ली में कुछ इलाज हो सकता है। तब पिता दलबीर छह साल तक नवदीप को एम्स ले जाते रहे। इसका असर भी हुआ। कुछ कद बढ़ने लगा।
स्वस्थ रहने के लिए खेलने लगे, आगे बढ़ गए
डाक्टरों ने कहा था कि अगर स्वस्थ रहना है तो शारीरिक अभ्यास कराना होगा। दलबीर उन्हें अपने साथ खेत में ले जाते। दौड़ लगवाते। दलबीर खुद कुश्ती के खिलाड़ी रह चुके हैं। उन्होंने नवदीप को अखाड़े में भेज दिया। नवदीप इतने फुर्तीले थे कि सामने वाले पहलवान को धोबी पछाड़ से हरा देते। कोच भी देखकर दंग रह जाते थे। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया था। कमर में चोट लगने के कारण उन्हें कुश्ती को छोड़ना पड़ा। अगर कुश्ती में रहते तो और बड़े खिलाड़ी होते।
दस साल से भाला फेंक रहे
नवदीप के पिता दलबीर ने जागरण को बताया कि कुश्ती छोड़ने के बाद बेटे ने जैवलिन थ्रो खेल को अपना लिया। अपने पहले ही मुकाबले में नवदीप ने पंचकूल में स्वर्ण पदक जीत लिया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। बीए फाइनल कर चुके नवदीप अब दिल्ली में हैं। वहीं पर प्रैक्टिस कर रहे हैं।
नीरज चोपड़ा के बाद नवदीप पर नजरें
पानीपत के ही नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता है। अब पानीपत के ही नवदीप पर नजरें हैं। जैवलिन थ्रो टेक्नीक का गेम है। उनसे ज्यादा दूरी तक भाला फेंकने वाले खिलाड़ी भी हैं। लेकिन नीरज के साथ भी ऐसा ही थ। उनसे ज्यादा दूर तक भाला फेंकने वाले खिलाड़ी थे लेकिन उस दिन कोई भी नीरज से आगे नहीं निकल सका।