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आर्थिक आरक्षण - समाजशास्‍त्री क्‍या कहते हैं, पढ़ लिजिए उनके विचार

जागरण विमर्श में समीक्षा। सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य जगवीर राणा और समाजशास्त्र के प्राध्यापक सतवीर मलिक ने रखी बात। बोले- स्लैब बन जाए तो और भी अच्छा। जनसंख्या वृद्धि पर लगे लगाम

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 02:41 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 11:48 AM (IST)
आर्थिक आरक्षण - समाजशास्‍त्री क्‍या कहते हैं, पढ़ लिजिए उनके विचार

पानीपत, जेएनएन। आर्थिक आधार पर आरक्षण कितना सही, कितना गलत। समाज पर इसका क्‍या असर पड़ेगा। क्‍या ये फैसला राजनीतिक हित साधने के लिए किया गया या सामाजिक हित भी है कारण। इस तरह के सवालों के जवाब और आरक्षण की समीक्षा के लिए दैनिक जागरण ने जागरण विमर्श कार्यक्रम किया। सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं एडवोकेट जगवीर राणा और समाजशास्त्र के प्राध्यापक सतवीर मलिक ने रखी अपनी बात। इनका कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देकर सरकार ने राजनीतिक हित साधने का भरसक प्रयास किया है। सामाजिक रूप से एकरूपता लाने में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। वैमनस्यता की भावना कम होगी। भाईचारा बढ़ेगा। 

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भाजपा को 2019 का चुनाव दिख रहा
जगवीर राणा ने कहा कि विभिन्न वर्गों को 50 फीसद आरक्षण तो पहले से दिया हुआ है। 10 फीसद अतिरिक्त आरक्षण के लिए सरकार को आधे राज्यों की विधानसभा में इसे पास कराना चाहिए था। इसके बाद लोकसभा और राज्यसभा में लाना चाहिए था। भाजपा को वर्ष 2019 का चुनाव दिख रहा है। सरकार ने आर्थिक आरक्षण में वार्षिक आय 8 लाख रुपये निर्धारित कर दी है। यानि, जिसकी आय 66 हजार रुपये मासिक से अधिक है, वह भी इसका लाभ लेगा। सीधा अर्थ, एक क्रीमीलेयर तबका पहले से बन गया है। इस बात की शंका है कि जिसकी वार्षिक आय 1 से 5 लाख रुपये तक है वे तो इसके लाभ से वंचित ही रह जाएं।

जातिगत आरक्षण खत्‍म हो
राणा ने कहा कि सामान्य वर्ग को आरक्षण देने से पहले स्लैब बनाने चाहिए थे या पूरे देश में जातिगत आरक्षण खत्म कर, आर्थिक आधार पर लागू कर देना चाहिए। सतवीर मलिक ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने 10 साल के लिए आरक्षण इसलिए लागू कराया था ताकि वर्ग विशेष इसका लाभ लेकर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो सके। इसके बाद सरकार आई, निजी हित के चलते इसे आगे बढ़ाती चली गई। समानता के लिए आरक्षण लागू किया गया था। बाद में यह जातीय असमानता की सबसे बड़ी वजह बन गई।

जल्‍दबाजी न हो
भारत को विश्व गुरु बनाना है तो जाति-धर्म के नाम पर आरक्षण एक दिन खत्म करना होगा। हालांकि इसके लिए जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग लंबे समय से होती रही है। यह पहली सरकार है जिसने सामान्य वर्ग उस तबके को ऊपर उठाने का निर्णय लिया, जिसके मन में टीस रहती थी। 10 फीसद आरक्षण से समाज में समरसता और भाईचारा बढ़ेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि देश के किसी भी राज्य से विरोध में आवाज नहीं उठी है। सरकार को उस मजूदर और किसान के बारे में भी सोचना होगा, जिसकी वार्षिक आय 2-3 लाख रुपये है। कहीं उनके हक का आरक्षण 7-8 लाख वार्षिक कमाने वाले न ले जाएं।

इन प्रश्नों के विशेषज्ञों ने दिए जवाब

  • प्रश्न : आर्थिक आरक्षण से राजनीतिक हित के साथ सामाजिक हित भी सधेंगे?
  • उत्तर : जी बिल्कुल, सामान्य वर्ग इस आरक्षण से खुश है कि उन्हें भी कुछ मिला।
  • प्रश्न : आर्थिक आरक्षण के औचित्य पर उठे सवाल कितने जायज हैं?
  • उत्तर : इस आरक्षण से एससी-बीसी का कुछ छिना ही नहीं, सवाल नहीं होंगे।
  • प्रश्न : जरूरत नौकरियां बढ़ाने की या आर्थिक आरक्षण लागू करने की है?
  • उत्तर : जनसंख्या पर कंट्रोल की जरूरत है, रोजगार स्वत: मिलने लगेंगे।
  • प्रश्न : अंतिम व्यक्ति तक आर्थिक आरक्षण का लाभ कैसे पहुंचे?
  • उत्तर : जिसे सबसे अधिक जरूरत है, उसे पहले मिले, स्लैब बना सकते हैं।
  • प्रश्न : आर्थिक आरक्षण से जातीय आरक्षण पर संकट है क्या?
  • उत्तर : यह कहना अभी जल्दबाजी है, खत्म हो तो बेहतर है।
  • प्रश्न : आर्थिक आधार पर आरक्षण देने में देर हुई क्या?
  • उत्तर : पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने प्रयास किया था, पूरे देश में बवाल हुआ।

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