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पानीपत में एक नई लड़ाई, यहां एक परिवार कोने-कोने से ढूंढकर मारता है मच्छर

पानीपत में युवाओं की टोली गांवों और कॉलोनियों में पहुंच फॉगिंग करती है। इस टोली ने एक मशीन से शुरुआत की। अब तीन मशीनें इस टोली के पास है और यह टोली खुद पैसा भी जुटाते हैं।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Thu, 06 Dec 2018 03:16 PM (IST)Updated: Fri, 07 Dec 2018 11:34 AM (IST)
पानीपत में एक नई लड़ाई, यहां एक परिवार कोने-कोने से ढूंढकर मारता है मच्छर
पानीपत में एक नई लड़ाई, यहां एक परिवार कोने-कोने से ढूंढकर मारता है मच्छर

पानीपत [जगमहेंद्र सरोहा]। तीन ऐतिहासिक लड़ाइयों के गवाह बने पानीपत में एक नई लड़ाई लड़ी जा रही है। लड़ाई मच्छरों के खिलाफ। कोई सरकारी महकमा नहीं, बल्कि युवाओं की एक टीम कोने-कोने में जाकर मच्छरों को मारती है। 

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टीम में शामिल सभी साधारण युवा हैं। कोई दुकानदार है, कोई व्यापारी, तो कोई पेशेवर। इनके समूह का नाम है सहयोग परिवार। ये युवा पिछले साल से शहर ही नहीं गांवों में भी जाकर फॉगिंग कर रहे हैं। इस काम के लिए किसी से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लेते। सारा इंतजाम अपने बूते करते हैं।

दो युवकों की मौत से दिल दहल उठा था
सहयोग परिवार के संयोजक और पानीपत इंसार बाजार के प्रधान गौरव लीखा ने बताया कि 2017 में बारिश के बाद डेंगू और दूसरी मौसमी बीमारियां फैलने लगी थीं। हर घर में कोई न कोई बीमार हो गया। सरकारी ही नहीं, प्राइवेट अस्पतालों में भी मरीजों की लंबी लाइनें लगी थीं। स्वास्थ्य विभाग फॉगिंग करना तो दूर, बीमारों का ही ठीक से इलाज नहीं कर पा रहा था। दो युवकों की मौत हुई तो उनके परिवार का दुख देखकर दहल उठा। तब अपनी जेब से पैसे खर्च कर एक फॉगिंग मशीन खरीदी। बाहरी कॉलोनियों में फॉगिंग करने निकल पड़े। 

और भी युवा जुड़े इस मुहिम से
धीरे-धीरे अन्य युवा भी इस मुहिम से जुड़ते गए। आज गौरव के अलावा विक्की बतरा, रिक्की अरोड़ा, राजू मेहंदीरता, निखिल सोइन, जगदीश मेहता, ब्रह्म डुडेजा और मोहित बजाज लगातार दूसरे वर्ष भी फॉगिंग में सहयोग कर रहे हैं। सब लोगों ने मिलकर सहयोग परिवार बना लिया। पिछले वर्ष ही दो फॉगिंग मशीनें और खरीदी गईं। अब यह टीम तीन मशीनों से फॉगिंग कर रही है। मच्छरों का सीजन आते ही शहर की कॉलोनियों ही नहीं, आस-पास सटे 15 गांवों तक भी नियमित फॉगिंग करते हैं।

सरकारी मदद मिले तो रोज करे 10-10 घंटे फॉगिंग
राजू मेहंदीरता और निखिल सोइन ने बताया कि नगर निगम से उन्हें दवा अवश्य मिल जाती है। शेष इंतजाम वे स्वयं वहन करते हैं। फॉगिंग में हर रोज तीन से पांच हजार रुपये तक खर्च आता है। पैसा आपस में ही इकट्ठा करते हैं। गौरव लीखा ने बताया कि नगर निगम या सरकारी तंत्र उन्हें हर रोज लगने वाला पेट्रोल और डीजल ही उपलब्ध करा दे तो वे हर रोज 10-10 घंटे मशीन चला सकते हैं। 

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ये युवा टोली बनाकर कर रहे शहर में फॉगिंग।

चिह्नित जगहों पर जाते हैं तीन बार
फॉगिंग करने से मच्छर एक जगह से दूसरी जगह भाग जाता है। इस बार नालियों में स्प्रे करने के लिए दो मशीनें भी इन युवाओं ने खरीद ली हैं। नालियों में लार्वा पैदा होने से मच्छर लगातार पैदा हो रहे हैं, जिन पर लार्वारोधी रसायन का छिड़काव करते हैं। टीम के सदस्य बताते हैं कि वे चिन्हित जगहों पर सप्ताह में तीन बार तक जाते हैं, क्योंकि एक बार फॉगिंग करने से मच्छर पर किसी तरह का खास फर्क नहीं पड़ता है। इसको खत्म करने के लिए सप्ताह में तीन बार फॉगिंग जरूरी है। लिहाजा, अलग-अलग जगहों पर फॉगिंग का सिलसिला एक क्रम में चलता रहता है। 


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