Ratnawali Festival 2019: रत्नावली में नई पीढ़ी ने देखी बुजुर्गों की कला, देखने वाले दंग Panipat News
हमारे बुजुर्ग प्राचीन काल से ही वेस्ट के बेस्ट के माहिर और पर्यावरण फ्रेंडली थे। रत्नावली महोत्सव प्लास्टिक युग में युवा पीढ़ी को बहुत बड़ी सीख दे रहा।
पानीपत/कुरुक्षेत्र, जेएनएन। हरियाणवी प्राचीन काल से ही पर्यावरण मित्र और वेस्ट से बेस्ट के माहिर रहे हैं। इस प्लास्टिक युग में प्लास्टिक के खतरों में आकंठ डूबी युवा पीढ़ी को रत्नावली महोत्सव में आकर इसकी जानकारी मिल रही है। नई पीढ़ी भी उत्सुकता से इन कलाकारों को लाइव सामान तैयार करते हुए देख रही है और साथ ही इनकी जानकारी भी ले रही है। इस बार रत्नावली महोत्सव में प्राचीन काल से हरियाणा के गांव-गांव और गली-गली में महिलाओं की ओर से घरों की सजावट और घरेलू उपयोग में आने वाले सामान की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। इस मौके पर महिलाएं अखबार से बोहिये और ढलडिय़ां बनाकर दिखा रही हैं तो रंग-बिरंगे कागज के टुकड़ों से बंदरवाल बनाई जा रही हैं। युवा भी इस सामान की जानकारी लेने में पूरी उत्सुकता दिखा रहे हैं। महोत्सव में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे केंद्रीय जल शक्ति, सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ही इस प्रदर्शनी को देख गदगद हो गए।
महोत्सव में जहां रद्दी कागज को गलाकर उसे बोहिये, ठाठिया, ढलड़ी बनाई जा रही हैं। इनकी खासियत है पुराने समय में इन्हीं बोहियों में खाने-पीने के गर्म सामान को भी रख दिया जाता था, जबकि प्लास्टिक में गर्म सामान रखने से नुकसान होता है। खासकर शादी ब्याह के मौकों पर लड्डू और अन्य मिठाई रखने में इनका उपयोग होता था। वहीं दूसरी ओर पुराने कपड़े से चटाईनुमा दरी तैयार की जा रही है। इस दरी को आजकल की चटाई के रूप में भी इस्तेेमाल किया जाता है। इसके अलावा रंग बिरंगे कागज के टुकड़ों से फुलझडिय़ां तैयार की जा रही हैं।
भिवानी जिला के गांव पपोसा से आई 63 वर्षीय बुजुर्ग महिला प्रेमो देवी ने कहा कि वह बचपन से ही अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं को यह बनाते हुए देखती थी। पुराने समय में जब प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता था घरेलू और खासकर रसोई में उपयोग करने के लिए इसी तरह अलग-अलग सामान तैयार किया जाता था। उनके साथ ही एमएससी होम साइंस अनुराधा भी खड़ी हैं जो कपड़ों की छोटी-छोटी कतरनों और रंग-बिरंगे कागज के टुकड़ों से फुलझड़ी तैयार कर रही हैं। जींद से आए पाला राम पेड़ों की छंटाई से काटी गई लकड़ी की छडिय़ों से टोकरे तैयार कर रहे हैं। इसके साथ ही गांव जजवान से बलवान पुरानी कपड़ों से दरी तैयार कर रहे हैं। इन कलाकारों का कहना है उन्होंने यह काम अपने बुजुर्गों से सीखा है और यह पूरी तरह पर्यावरण के लिए लाभदायक है।