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Assembly Election 2019: विधानसभा चुनाव 2019: हरियाणा में सिर्फ एक बार ही छुआ 75 का आंकड़ा Panipat News

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में 1977 में जनता पार्टी ने 75 का चुनावी आंकड़ा छुआ था। जनता की नजर फिर इतिहास पर है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 05:45 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 05:45 PM (IST)
Assembly Election 2019: विधानसभा चुनाव 2019: हरियाणा में सिर्फ एक बार ही छुआ 75 का आंकड़ा Panipat News

पानीपत/जींद, [कर्मपाल गिल]। प्रदेश में 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भाजपा इस बार 75 प्लस का लक्ष्य लेकर चल रही है। हालांकि मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि हमने 75 के साथ प्लस भी जोड़ा है, इसलिए यह संख्या बढ़कर कितनी भी हो सकती है। इतिहास खंगालें तो अब तक सिर्फ 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ही 75 का आंकड़ा क्रॉस कर सकी है। तब प्रदेश में कांग्रेस सिर्फ तीन सीट ले पाई थी। सात सीट निर्दलीयों के खाते में गई थी। जबकि चार सीटों पर राव बिरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी के प्रत्याशी जीते थे।

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जिस तरह सभी दलों के नेताओं में भाजपा में जाने और टिकट लेने की होड़ लगी हुई है, वैसा ही नजारा 1977 में जनता पार्टी का था। तब इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस मात्र दो सीटों पर जीती थी, जिनमें जम्मू से डॉ. कर्ण सिंह व राजस्थान की नागौर से नाथूराम मिर्धा विजयी हुए थे। इसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के खिलाफ यही माहौल था। जनता पार्टी की टिकट के लिए मारामारी मची हुई थी। सभी नेताओं को यह विश्वास था कि जिसको भी जनता पार्टी की टिकट मिल गई, उसकी जीत पक्की है। इसलिए पूरे हरियाणा में राजनेताओं के अलावा सरकारी अधिकारी, मास्टर व सामाजिक कार्यकर्ता भी जनता पार्टी की टिकट के लिए जोड़-तोड़ बिठा रहे थे। जबकि कांग्रेस का यह हाल था कि जिसने भी कांग्रेस का टिकट मांगा, उसे मिल गया। यही कारण था कि जनता पार्टी को 90 में से 76 सीटों पर जीत नसीब हुई थी। जबकि कांग्रेस को सिर्फ उचाना, नरवाना व छछरौली की सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई थी।

रजाइयों के भुरट भी नहीं निकले
रिटायर्ड प्रोफेसर रामकुमार श्योकंद बताते हैं कि 1977 के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के लोगों को अजीब ताने सुनने को मिलते थे। कांग्रेस के नेता गांवों में जाकर जैसे ही वोट की अपील करते तो लोग कहते कि अभी रजाइयों के भुरट भी नहीं निकले हैं, लोग वोट कैसे देंगे। नेता लोग हंसते हुए इसका कारण पूछते तो लोग कहते कि परिवार नियोजन यानि नसबंदी ने खूब परेशान किया है। जिस गांव के आसपास से रात को रेलगाड़ी गुजरती तो लोग समझते कि तहसीलदार या बीडीओ की जीप आ गई। सभी लोग अपनी-अपनी रजाइयां लेकर गांव से बाहर भागकर जंगल में छिप जाते। यह तमाशा होने की वजह से लोगों की रजाइयां भुरूटों से लदी हुई हैं। इसी कारण तब कांग्रेस को वोट तो दूर, कांग्रेस नाम से ही लोगों को नफरत हो गई थी।

इन्होंने लहर के खिलाफ की जीत हासिल
1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद 14 विधायकों ने जीत हासिल की थी। इनमें बल्लभगढ़ से निर्दलीय राजेंद्र बिसला, फिरोजपुर ङिारका से निर्दलीय शकरूल्ला खान, जींद से निर्दलीय मांगेराम गुप्ता, गोहाना से निर्दलीय गंगाराम, बादली से निर्दलीय हरद्वारीलाल, तोशाम से निर्दलीय सुरेंद्र सिंह, दड़बा कलां से निर्दलीय जगदीश बैनीवाल ने जीत हासिल की। चार सीटों पर राव बिरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी ने जीत दर्ज की, जिनमें पटौदी से नारायण सिंह, अटेली से राव बिरेंद्र सिंह, महेंद्रगढ़ से राव दलीप सिंह व पाई से जगजीत सिंह पोहलू शामिल थे।

कांग्रेस दो सीट भी इसलिए जीत पाई
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि जनता पार्टी 1977 के चुनाव में सही तरीके से टिकटों का बंटवारा करती तो कांग्रेस को तीन सीट भी नसीब नहीं होनी थी। गुटबाजी के कारण देवीलाल ने 12 टिकट यह कहकर काट दी थी कि ये भगवतदयाल ग्रुप के हैं। इनमें जींद, उचाना व नरवाना की टिकट भी थी। उचाना से पहले सांसद इंद्र सिंह श्योकंद के बेटे जगरूप सिंह को टिकट दी थी। बाद में काट दी गई। जिससे जगरूप ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। जगरूप सिंह इमरजेंसी में 19 महीने जेल में रहे थे। वह तेजतर्रार युवा नेता थे और अपनी मेहनत के बूते पर टिकट मांग रहे थे। जगरूप की टिकट कटने का कारण यह था कि वे लोकसभा चुनाव में हिसार से मनीराम बागड़ी को टिकट दिलाना चाहते थे, लेकिन तब इंद्र सिंह श्योकंद हाईकमान से टिकट ले आए। इससे देवीलाल खफा थे। तब चरण सिंह ने मनीराम बागड़ी को मथुरा से टिकट दी थी। नरवाना की टिकट भी इंद्र सिंह अपने नजदीकी नेता को दिलाना चाहते थे। लेकिन देवीलाल ने इंद्र सिंह श्योकंद के कहने पर एक भी टिकट नहीं दी।


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