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कुरुक्षेत्र का सरस्वती तीर्थ, पितरोंं की शांति के लिए सर्वोत्तम तीर्थ, महाभारत से जुड़ा है इतिहास

कुरुक्षेत्र के पिहोवा में स्थित सरस्वती तीर्थ को महाभारत सहित कई पुराणों ग्रंथों में हरिद्वार पुष्कर गया से भी अधिक महत्व दिया है। महाराजा युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में अपने परिजनों व मारे गए वीरों की आत्मिक शांति के लिए यहीं पर क्रियाकर्म गति पिंडदान किया था।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Fri, 09 Apr 2021 06:02 AM (IST)Updated: Fri, 09 Apr 2021 06:02 AM (IST)
कुरुक्षेत्र के सरस्वती तीर्थ पर शुक्रवार से चैत्र चौदल मेला शुरू होगा। इस बार यह चार दिन का होगा।

कुरुक्षेत्र [जगमहेंद्र सरोहा]। पितरोंं की शांति के लिए पुष्कर गया से पहले महाभारत की धरती कुरुक्षेत्र के पिहोवा में स्थित सरस्वती तीर्थ का नाम आता है। चैत्र चौदस पर हर साल यहां देश ही नहीं कई दूसरे देशों से लोग आते हैं। वे यहां पिंडदान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं। इस बार सरस्वती तीर्थ पर चैत्र चौदस मेला नौ अप्रैल यानी शुक्रवार को शुरू होगा। यह 12 अप्रैल तक होगा। इस बार सोमवती अमावस्या के चलते तीर्थ पर स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व है। इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। आइए जानें सरस्वती तीर्थ के बारे में कुछ रोचक बातें। 

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महाराज पृथु ने बसाया था प्राचीन शहर
पृथुदक अपने धार्मिक महत्व के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। महाभारत सहित कई पुराणों ग्रंथों में पिहोवा को कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, पुष्कर, गया से भी अधिक महत्व दिया गया है। भगवान कृष्ण के कथन पर महाराजा युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में अपने परिजनों व मारे गए वीरों की आत्मिक शांति के लिए यहीं पर क्रियाकर्म, गति पिंडदान किया था। यहां के पंडों पुरोहितों का भी महत्व है। मानव जीवन में पुरोहित का महत्व जन्म से मृत्यु व अंतिम संस्कार तक है। देवताओं ने भी बृहस्पति को व दानवों ने शुक्राचार्य को अपना पुरोहित माना है। 
ऐसे बनाते हैं रिकॉर्ड 
पुरोहितों के पास वंशावलियों से संबंधित पुराने रिकॉर्ड मिलते हैं। कई प्राचीन अभिलेख रिकॉर्ड के रूप में इनके पास सुरक्षित हैं। ये रिकॉर्ड बही या पोथी के नाम से सुरक्षित हैं। यहां 300 से 400 वर्ष पुराने रिकॉर्ड देखे जा सकते हैं। यहां पर यात्रियों को उसकी वंशावली बताई जाती है। उनके पूर्वजों के नाम हस्ताक्षर दिखाए जाते हैं। भविष्य के लिए उनके आने का प्रयोजन, परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिखकर हस्ताक्षर कराए जाते हैं। यह रिकॉर्ड का एक हिस्सा बन जाते हैं। इनके पास राजा महाराजाओं के दान का भी वर्णन है। पुरोहित को कई बार दान के रूप में पूरा गांव ही दे दिया जाता था। 
पटियाला के महाराजा ने दिया था एक पट्टा
राजा महाराजा कई बार विदेशी भाषा में भी दान पट्टा लिखकर दे जाते थे। 165 वर्ष पूर्व परशियन भाषा में एक पट्टा पटियाला के महाराजा ने अपने पुरोहित पंडित गोपाल स्वरूप लाल को दिया था। उस समय मोहम्मदपुरा गांव को दो कुएं दिए थे। इनकी वार्षिक आय 300 रुपये थी। किशनपुरा नामक पूरा गांव दान में पुरोहित को दिया गया। एक अन्य पुरोहित की बही में लिखा है कि भदोड़ शहर के रईस जब पिंजूपुरा गांव में कब्जा लेने जा रहे थे तो पिहोवा में अपने पुरोहित को मिले। उन्हें लिख दिया कि गांव का कब्जा मिलने पर वह अपने तीर्थ पुरोहित को छह मन अनाज हर फसल पर देंगे। यह लेख सम्वत् 1894 का है। 
कई अभिनेताओं का भी रिकॉर्ड 
पिहोवा तीर्थ के पुरोहितों के पास कई अभिनेताओं का भी रिकॉर्ड है। इनमें राजकपूर, सुनील दत्त, राजेश खन्ना, राज बब्बर प्रमुख हैं। पुरोहितों की बही में इनकी वंशावली दर्ज है। पंडे पुरोहितों के रिकॉर्ड के आधार पर भारत-पाक विभाजन के समय बिछड़े अनेक परिवारों को भी मिलाया गया। 
तेल का तिलक करने के लिए लंबी कतार 
कार्तिकेय मंदिर के प्रमुख महंत दीपक गिरी महाराज ने बताया कि भगवान कार्तिकेय का पिहोवा सरस्वती तीर्थ के तट पर एकमात्र मंदिर है। यहां नारी का प्रवेश वर्जित है। चैत्र चौदस पर भगवान कार्तिकेय का तेल से तिलक किया जाएगा। पुराणों में भगवान कार्तिकेय के मंदिर को इस तीर्थ की महत्ता से जोड़ा है। इसके पीछे भी एक कथा है। बताया जा रहा है कि भगवान शंकर अपने पुत्र कार्तिकेय का राजतिलक करने का विचार करने लगे। तब माता पार्वती ने अपने छोटे पुत्र गणेश का राजतिलक कराने की हठ की। ब्रह्मा, विष्णु व शंकर सहित सभी देवी देवता एकत्रित हो गए।
माता के कहने पर गणेश ने की त्रिलोकीनाथ की परिक्रमा
शर्त रखी गई कि समस्त पृथ्वी का चक्कर लगाकर पहले पहुंचेगा वाले का ही राजतिलक किया जाएगा। ग्रंथों में लिखा है कि भगवान कार्तिकेय अपने प्रिय वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल गए। गणेश अपने वाहन चूहे पर बैठकर जाने लगे तो माता पार्वती ने गणेश को कहा कि त्रिलोकी नाथ यहीं विद्यमान है। वे इनके यहीं चक्कर लगा लें। गणेश ने वहीं पर तीन चक्कर लगाकर परिक्रमा करने की बात कही। गणेश का राजतिलक कर दिया और शुभ अशुभ कार्यों में पूजा का अधिकार दे दिया गया।
भगवान कार्तिकेय ने दिया श्राप 
इस पर कार्तिकेय भगवान नाराज हो गए। उन्होंने अपनी चमड़ी और हड्डी अलग-अलग कर अपनी मां के चरणों में अर्पित कर दी। देवताओं ने उनके घावों को शांत करने के लिए तेल का अभिषेक किया और सरस्वती के किनारे पिहोवा में उनको स्थापित किया। उन्होंने माता पार्वती को श्राप दिया था कि उनके (कार्तिकेय के) दर्शन करने वाली नारी सात जन्म तक विधवा रहेगी। तबसे कार्तिकेय मंदिर में नारी का प्रवेश वर्जित है। 

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