प्रतिभा और मेहनत से गरीबी की बेडिय़ां तोड़ लिख दी ये इबारत, बन गए चैंपियन
जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार ने सहयोग नहीं किया और मजबूरी में उन्हें पलायन करना पड़ा। ये बात है उग्राखेड़ी के साहिल और आजाद की। उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वह चैंपियन बन बैठे।
पानीपत [विजय गाहल्याण]। गरीबी को जीवन की मजबूरी नहीं बनने दिया। बुलंद हौसलों से इसे मात देते हुए सफलता की इबारत लिख डाली। इस गरीबी और मजबूरी को पीछे छोड़ अपनी प्रतिभा को निखारा। इसके बाद अपनी पसीना बहाकर दिन रात एक करके दूसरे के लिए नजीर बन गए। आखिर कौन हैं ये प्रतिभावान, जानने के लिए पढ़ें दैनिक जागरण की विस्तृत रिपोर्ट।
उग्राखेड़ी गांव के साहिल और उनके दोस्त आजाद हैंडबॉल चैंपियन हैं। अपनी उम्र से कहीं ज्यादा पदक जीत चुके हैं। कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उनके पिता और खुद उनका संघर्ष काबिलेतारीफ है।
एक चाय वाले का तो दूसरा मजदूर का बेटा
साहिल के पिता नरेंद्र मलिक चाय बेचते हैं तो आजाद के पिता कर्मबीर मजदूर हैं। दोनों का खेलों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा। बेटा खेल में नाम कमाए यही एक हसरत पाले हुए हैं। बेटों ने भी निराश नहीं किया। साहिल नेशनल में स्वर्ण व रजत, स्टेट में चार स्वर्ण और पांच रजत, आजाद ने नेशनल में रजत, स्टेट में 12 स्वर्ण और 10 रजत पदक जीते। अब एशियन गेम्स में देश को सोना दिलाना ही दोनों का मकसद है।
दोस्तों की उधारी से चलता खाने का खर्च
आजाद ने बताया कि तीन साल पहले गांव में सीनियर खिलाड़ी नवनीत मलिक के पास हैंडबॉल खेलना शुरू किया था। यहां सुविधाएं नहीं मिली। नियमित कोच भी नहीं। वर्ष 2015 में जींद के अर्जुन स्टेडियम में कोच सुखबीर सिंह के पास पहुंचा। कोच ने रहने और खाने का खर्च दिया। कोच का देहांत हो गया तो खेल छोडऩे की नौबत आ गई। दोस्त पंकज साहू और चिराग ढांडा की उधार से खाने का खर्च चला। जूते और ड्रेस की भी व्यवस्था कराई। स्टेडियम में रहने को कमरा मिला। दो साल पहले कमर के दर्द की वजह से तीन महीने खेल नहीं पाया, लेकिन मैदान जाना नहीं छोड़ा। इलाज के बाद दर्द से राहत मिली और सफलता मिलती चली गई।
बहन बनीं प्रेरणास्रोत, सरकार ने नहीं नहीं दिया साथ
साहिल ने बताया कि बड़ी बहन निशा मलिक हैंडबॉल की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रही हैं। बहन ने खेल के दम पर एसएसबी में नौकरी हासिल की। बहन खेलती थी तब लोग तंज कसते थे। पिता ने बहन का साथ दिया था। बहन को देख उसने भी खेलना शुरू किया। पिता ने अपनी इच्छा का गला घोंट उसे खेलने के लिए मैदान में भेजा। नेशनल कंपीटीशन में उसने दो पदक जीते, लेकिन सरकार ने पांच लाख का अवॉर्ड नहीं दिया। जिले में हैंडबॉल कोच न होने पर जींद और नरवाना में अभ्यास किया। अच्छा खेला, लेकिन पक्षपात की वजह से प्रदेश की टीम में चुना नहीं गया। इसी वजह से वह दिल्ली में प्रीतमपुरा में कोच शिवाजी संधू के पास पहुंचा। गत दिनों स्कूल नेशनल में दिल्ली की ओर से रजत पदक जीता। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण दिल्ली में कमरा लेकर नहीं रह पाया। कई बार तो भूखे पेट अभ्यास करना पड़ा। वह हर रोज गांव से बस से दिल्ली आता-जाता है।
दोनों प्रतिभावान खिलाड़ी
आजाद 12वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं, जबकि साहिल 11वीं में है। उग्राखेड़ी के सीनियर हैंडबॉल खिलाड़ी नवनीत मलिक का कहना है कि साहिल और आजाद प्रतिभावान खिलाड़ी हैं। उन्हें खेल सुविधा और अच्छी कोङ्क्षचग मिले तो वे और भी बेहतर प्रदर्शन कर देश के लिए पदक जीत सकते हैं।