रत्नावली में सजा ऐसा मंच, जहां नाच रहे जर्मन और अफगानी
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में रत्नावली उत्सव अब अपने चरम पर है। विदेशी छात्रों को भी आमंत्रित किया गया है। कोई यहां पगड़ी बंधवा रहा है तो कोई ढोल की थाप पर नाच रहा है।
जेएनएन, पानीपत - कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के मंच पर हरियाणा ही नहीं, देशभर की संस्कृतियों के रंग भी देखने को मिल रहे है। अब तो इस मंच पर दुनियाभर की संस्कृतियों का संगम हो रहा है। ये है रत्नावली का मंच। यहां पहली बार विदेशी छात्रों ने प्रस्तुति दी। अफगान के छात्रों ने नेशनल डांस एंड करसाक के फ्यूजन के द्वारा सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वहीं जर्मनी के युवाओं ने हरियाणवी बीन व डमरू की धुनों पर जमकर डांस किया।
टीम के लीडर बहराम रमेश ने बताया कि अफगानिस्तान के नेशनल डांस को वहां के सैनिक तथा आम लोग खुशी के अवसर पर करते हैं। यह डांस मित्रता व भाईचारे का प्रतीक है। दोनों नृत्यों को विवाह व अन्य खुशी के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य के माध्यम से अफगानी संस्कृति को दिखाया गया। भारतीय संस्कृति भी एकता का संदेश देती है और अफगानिस्तान की संस्कृति भी एकता व मित्रता को बढ़ावा देती है। उन्होंने कहा कि दोनों देश एक है यही कारण है कि अफगानिस्तान को भारत हमेशा छोटा भाई मानता है। इंडियन कल्चर काउंसिल रिलेशन के तहत प्रति वर्ष एक हजार अफगानी छात्र भारत में शिक्षा लेने आते हैं। रत्नावली उत्सव में उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी है, लेकिन मंच पर प्रस्तुति देकर वे बहुत उत्साही है।
पगड़ी बांध कर बोली जर्मनी की लिजा, हरियाणा कल्चर इज अमेजिंग
जर्मनी से रत्नावली देखने पहुंचे युवा कलाकार हरियाणवी संस्कृति के मुरीद हो गए। सूत की रस्सी से बुने गए पिढ़े, इंडी के साथ-साथ हरियाणा की शान पगड़ी को देख उनके मुख से भी एंडी हरियाणा के बोल निकले। फ्रेक को पगड़ी और आवभगत इतनी भा गई है कि तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सकीं। वे बोली, हरियाणा कल्चर इज अमेजिंग। उन्होंने रत्नावली का निमंत्रण देने का आभार जताया। जर्मनी के कलाकारों को तिरंगी पगड़ी बांधी गई। उन्होंने हरियाणवी बीन व डमरू की धुनों पर जमकर डांस किया।