सिविल अस्पताल में सुविधा नहीं होने से 20 फीसद गर्भवती नहीं करा पाती थॉयराइड टेस्ट
सरकार ने हर गर्भवती महिला का थॉयराइड टेस्ट अनिवार्य किया हुआ है। सिविल अस्पताल में सुविधा नहीं होने और प्राइवेट में जांच महंगी होने के कारण करीब बीस फीसद गर्भवती टेस्ट से वंचित रह जाती हैं।
जागरण संवाददाता, पानीपत : प्रदेश सरकार ने हर गर्भवती महिला का थॉयराइड टेस्ट अनिवार्य किया हुआ है। सिविल अस्पताल में सुविधा नहीं होने और प्राइवेट में जांच महंगी होने के कारण करीब बीस फीसद गर्भवती टेस्ट से वंचित रह जाती हैं। नतीजा, जेनेटिक बीमारी होने के कारण थॉयराइड पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ रही है। जिले में करीब 3 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी के लक्षणों से प्रभावित बताए गए हैं।
जिले में थॉयराइड से पीड़ितों की अनुमानित संख्या करीब 70 हजार है। अधिकतर मरीज हाइपोथायरॉइड स्टेज में हैं और हाईपरथॉयराइड की ओर बढ़ रहे हैं। जेनेटिक रोग होने से जिले के करीब 3 प्रतिशत बच्चे भी थॉयराइड से पीड़ित हैं। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के बड़े कारणों में थॉयराइड को भी गिना जाता है। ऐसी महिलाओं का टेस्ट होना जरूरी है ताकि गर्भ में पल रहे शिशु को बीमारी से बचाया जा सके। सिविल अस्पताल में मरीज जांच के लिए तो आते हैं, सुविधा नहीं होने के कारण उन्हें पीजीआइ रोहतक रेफर किया जाता है। निजी लैबों में थॉयराइड के टी3, टी4 और टी5एच टेस्ट 250-300 रुपए और थॉयराइड फंक्शन टेस्ट 400-500 रुपये का है। नतीजा, बीस फीसद से अधिक महिलाएं गर्भावस्था के दौरान टेस्ट नहीं करा पाती हैं।
थॉयराइड पीड़ित महिलाओं को गर्भपात का भी खतरा रहता है। इस बाबत अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आलोक जैन ने बताया कि थॉयराइड जांच का पूरा सेटअप और उसकी किट बहुत महंगी है। आउटसोर्स पर टेस्ट के लिए सरकार के दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं। अनुमति मिलने पर सुविधा शुरू करा दी जाएगी।
जेनेटिक बीमारी, बच्चों की जांच कराएं :
माता-पिता इस बीमारी से पीड़ित हैं तो बच्चे को यह रोग होना निश्चित है। ऐसे में प्रत्येक नवजात की जन्म के बाद बाद टीएसएच (थायराइड स्टिमुले¨टग हार्मोन) जांच जरूरी है। बच्चों की नाल के खून का सैंपल लेकर जांच करते हैं। खून में थॉयराइड हार्मोन 20 यूनिट प्रति मिली से ज्यादा होना चाहिए।