राजनीतिक इच्छाशक्ति और अफसरशाही हिंदी की राह में रोड़ा : डॉ. बालकिशन शर्मा
हिंदी मातृभाषा है। नेता वोट तो हिंदी में मांगता है। संसद में पहुंचते ही अपनी बात अंग्रेजी में रखता और हिंदी की उपेक्षा करता है।
पानीपत, जेएनएन। हिंदी मातृभाषा है। नेता वोट तो हिंदी में मांगता है। संसद में पहुंचते ही अपनी बात अंग्रेजी में रखता और हिंदी की उपेक्षा करता है। आम आदमी को अंतर्मन से हिंदी को अपनाना होगा, तभी हिंदी का राजनीतिक विरोध बंद हो सकेगा। राजभाषा आयोग और शब्दावली बनाई गई, लेकिन हिंदी भाषा सिर्फ 14 सितंबर या फिर एक पखवाड़े तक ही सिमटकर रह गई। यह बातें एसडी पीजी कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. बालकिशन शर्मा ने कही। वह सोमवार को सेक्टर 29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'कैसे खत्म हो हिंदी विरोध की राजनीति' विषय पर बोल रहे थे।
डॉ. शर्मा ने कहा कि हिंदी का विरोध बाहर कहीं नहीं है। यह हर व्यक्ति के अंतर्मन में ही है। टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलकर खुद को पढ़ा-लिखा दर्शाने का प्रयास किया जाता है। आज अनपढ़ व्यक्ति शादी के कार्ड भी अंग्रेजी भाषा में छपवाता है। उसके घर के बाहर प्लेट भी अंग्रेजी में मिलेगी। हीन मानसिकता ही हिंदी को यहां तक पहुंचाने का बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि दसवीं कक्षा के बाद स्नातकोत्तर तक हिंदी व्याकरण नहीं है। व्याकरण के बिना मात्राओं का ज्ञान नहीं हो सकता। आज भी कबीर के दोहे और मीरा की पंक्तियां पढ़ने को मिल रही हैं। हिंदी पर्यायवाची तक ही सीमित है। बच्चे को उसकी प्राथमिक कक्षाओं में ही हिंदी सिखानी होगी। संविधान की धाराओं और राजनेताओं के कहने से नहीं बनेगी। हिंदी और हिंदी बोलने वालों को आदर और सम्मान देना होगा।
भावी पीढ़ी को करना होगा तैयार
हिंदी को सम्मान और आजीविका से जोड़ना होगा। हर व्यक्ति को हिंदी बनना होगा। केवल कहने से हिंदी नहीं बन सकते। जब तक हम अगली पीढ़ी को हिंदी के लिए तैयार नहीं करेंगे तो हिंदी को सम्मान नहीं मिल सकता। राजभाषा आयोग की शब्दावली को अलमारी से बाहर निकालना होगा। यह सब सरकार और अफसरशाह ही करेंगे। हिंदी के गूढ़ शब्दों को रोजमर्रा की बोलचाल में लाना होगा। सामाजिक आंदोलन और राजनीति तंत्र से बदलाव आ सकता है।