Parali Problem: यमुनानगर में फसल अवशेष प्रबंधन में मिसाल बनेंगे दो गांव, किसानों को मिलेंगे ये सुझाव
यमुनानगर के रतनगढ़ व दामला गांव में किसानों को 240 एकड़ में गेहूं बिजाई के लिए किसानों को बीज उपलब्ध कराया गया। इसकी बिजाई हैप्पी सीडर सुपर सीडर व जीरो टिलेज मशीन से ही की जाएगी। ताकि फसल अवशेषों का खेतों में ही प्रबंधन हो सके।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर। यमुनानगर में फसल अवशेष प्रबंधन में गांव रतनगढ़ व बकाना मिसाल बनेंगे। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र ने दोनों गांवों को गोद लिया है। लक्ष्य जीरो बर्निंग का है। इसके लिए किसानों को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से जागरूक भी किया जाएगा और फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र भी मुहैया करवाए जाएंगे। इन गांवों में धान व गेहूं की फसल अवशेष न जलाने के लिए किसानों को विशेष रूप से जागरूक किया जाएगा।
ये हैं प्रयास
रतनगढ़ व दामला गांव में किसानों को 240 एकड़ में गेहूं बिजाई के लिए किसानों को बीज उपलब्ध कराया गया। इसकी बिजाई हैप्पी सीडर, सुपर सीडर व जीरो टिलेज मशीन से ही की जाएगी। ताकि फसल अवशेषों का खेतों में ही प्रबंधन हो सके। बिजाई के लिए किसानों को कृषि यंत्र भी मुहैया करवाए जा रहे हैं। गेहूं के बीज के साथ-साथ मंडूसी की दवाई भी मुहैया करवाई जाएगी। बता दें कि इन दो गांवों से पहले अमलोहा, नगला जागीर, धोली व बकाना गांव को भी गोद लेकर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रेरित किया जा चुका है।
दीवारें देंगी फसल अवशेष प्रबंधन का संदेश
इन दोनों गांवों में किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन बारे किसानों को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करवाए जाएंगे। किसान संगोष्ठियों के साथ-साथ दीवारों पर संदेश लिखे जाएंगे कि फसल अवशेषों को जलाएं नहीं बल्कि प्रबंधन करें। अवशेषों को जलाने के नुकसान बारे भी बताया जाएगा। साथ ही फसल अवशेषों को खेत में ही गलाने के लिए पूसा-कैप्सूल (जीवाणु) उपलब्ध करवाए जाएंगे। ताकि पराली पर छिड़काव कर प्रबंधन किया जा सके।
फसल अवशेष न जलाएं किसान
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र दामला के वरिष्ठ संयोजक डा. एनके गोयल ने बताया कि दोनों गांवों में किसानों को जागरूक करने के लिए गतिविधियां शुरू कर दी हैं। हमारा प्रयास है कि उक्त गांवों में एक भी किसान खेतों में पराली न जलाएं। हर किसान इसका प्रबंधन करें। क्योंकि खेतों में फसल अवशेषों को जलाने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति पर भी असर देखा जा रहा है।