दुनिया प्लास्टिक की बोतलें फेंकती है, ये शहर उन्हीं के कारपेट बना US को बेचता है
पानीपत में पानी की वेस्ट बोतलों से सालाना 500 करोड़ का बनता है धागा। इस धागे से आउटडोर कारपेट बनते हैं। दरी, मेट, रजाई में होता है पेटयार्न का इस्तेमाल। पढ़ें ये खास खबर।
पानीपत [महावीर गोयल] : प्लास्टिक की वजह से परेशान पूरी दुनिया को ये शहर एक नई राह दिखा रहा है। प्लास्टिक वेस्ट का ऐसा उपयोग कि आप पढ़ेंगे तो दंग रह जाएंगे। इस्तेमाल भी ऐसा कि देश भी तरक्की की दिशा की तरफ चल पड़ा है। विदेशी मुद्रा कमाई जा रही है। ये सब हुआ है पानीपत के उद्यमियों की सोच की बदोलत। दरअसल, प्लास्टिक की पुरानी बोतलों से यहां पेटयार्न बनता है। इसी से मखमली कारपेट बनाकर दुनियाभर में निर्यात करते हैं। पढ़ें कैसे कर रहे ये प्रयोग।
पानीपत में बोतल के चूरे से पेट यार्न ( धागा ) बनाया जाता है। पूरे देश में सबसे अधिक पेटयार्न पानीपत में बनता है। यहां सैकड़ों कार्ड लगे हुए हैं। इनमें कारपेट, दरी मेट बनाने में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होने वाला पेट यार्न बनता है। यहां बनने वाले पेट यार्न से दरी, दरी मेट, कारपेट तो बनते ही हैं, साथ में अन्य राज्यों में भी धागा निर्यात होता है। विदेशी मार्केट के साथ-साथ घरेलू मार्केट में भी यहां बनने वाला पेट यार्न प्रयोग किया जाता है।
500 करोड़ से ज्यादा का धागा
पानीपत में सैकड़ों कार्ड लगे हुए हैं। 500 करोड़ से अधिक का धागा यहां बनता है। इस धागे से बना एक हजार करोड़ से अधिक का कारपेट, दरी, मेट विदेशों में निर्यात किया जा रहा है। अमेरिका सहित यूरोपियन देशों के फाइव स्टार होटल में पानीपत का बना कारपेट बिछाया जाता है।
रि-साइकिल इंडस्ट्री हब बना पानीपत
पानीपत रि-साइकिल इंडस्ट्री का हब बन चुका है। यहां पुराने कपड़ों से लेकर वेस्ट प्लास्टिक तक से प्रॉडक्ट बनाए जाते हैं। पर्यावरण के हित में यहां के उद्योग काम कर रहे हैं।
कारपेट में लगता है बोतल से बना धागा
वेस्ट बोतल से बनने वाला धागा कारपेट बनाने में लगता है। इससे आउट डोर कारपेट बनाए जाते हैं। पेट यार्न से बना कारपेट खुले में धूप और बारिश में खराब नहीं होता। वूलन का बना कारपेट अंदर ही बिछाया जा सकता है।
पानीपत से इन शहरों में होता है निर्यात
पानीपत में वेस्ट बोतल से बनने वाला पेट यार्न भदोई, मिर्जापुर, बनारस, जयपुर में भेजा जाता है। जहां अनेक उत्पाद इस धागे से बनाए जा रहे हैं।
दो हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा कमा रहे
पेट फाइबर, फोलो फाइबर का कारोबार बढ़ता जा रहा है। यहां लगी मिलों में कार्ड पर धागा बनाया जा रहा है। 500 करोड़ से अधिक का धागा यहां बनता है। इससे 2000 करोड़ से अधिक की विदेशी मुद्रा यहां के निर्यातक कमा रहे हैं।
ये है धागे का हिसाब-किताब
बोतल 60 से 65 रुपये प्रतिकिलो ग्राम तक बिकती है। इसी से फाइबर चूरा बनता है, जो 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है। इस फाइबर से पेट यार्न बनाया जाता है, जिसका भाव अलग-अलग क्वालिटी के मुताबिक 130 से 160 रुपये प्रति किलोग्राम तक चल रहा है। कारपेट में लगने वाले काउंट 60,30, दो प्लाई धागे बनाए जाते हैं।
हिमाचल, सूरत से मंगवा रहे फाइबर
बोतल की वेस्ट से बने फाइबर को पानीपत में गजरौला (मुरादाबाद) तथा हिमाचल प्रदेश से मंगवाया जाता है। इसके अलावा सूरत से भी बड़ी मात्रा में फाइबर मंगाया जाता है। रोटरी क्लब से जुड़े धागा व्यापारी धीरज मिगलानी ने बताया कि पानीपत में पहले इतनी बड़ी मात्रा में कारोबार नहीं होता था। धागा प्रयोग से व्यापार भी बढ़ा है।
उद्यमियों को मिलना चाहिए प्रोत्साहन : भूपेंद्र जैन
काबड़ी रोड पर स्पिनिंग मिल चला रहे उद्योगपति भूपेंद्र जैन का कहना है कि पानीपत रि-साइकिल इंडस्ट्री का हब बन चुका है। यहां वेस्ट से निर्यात योग्य उत्पाद बनाए जाते हैं। रि-साइकिल इंडस्ट्री को यदि सरकार प्रोत्साहन दे तो कारोबार दोगुना हो सकता है। निर्यातकों को तो सरकार प्रोत्साहन देती है, लेकिन मैन्युफैक्चर्स को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा। पानीपत में पूरे देश में सबसे अधिक खाली बोतलों की वेस्ट से पेट यार्न बनाया जा रहा है।
रि-साइकिल इंडस्ट्री का हब बना पानीपत : खंडेलवाल
चैंबर आॅफ काॅमर्स के चेयरमैन विनोद खंडेलवाल का कहना है कि पानीपत रि-साइकिल इंडस्ट्री का हब बन चुका है। यहां वेस्ट की खपत होती है, जिससे पर्यावरण को संरक्षण मिलता है। वेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। विदेशों से आने वाले पुराने कपड़े से नया कपड़ा बनाकर विदेशों में भेजा जाता है। सरकार को यहां उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए इंसेंटिव देना चाहिए।