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यमुनानगर में पंचायतें हुई भंग, अधर में लटके विकास कार्य, 675 गांवों की हालत हुई खस्ता

यमुनानगर के कई गांवों में विकास कार्याें को लेकर कई तरह की दिक्कतें हैं। यदि बड़ा काम कराना है तो उसके लिए जिला परिषद के सीईओ से अनुमति लेनी होती है। उसके लिए पहले प्रस्ताव डालना होता है। इसको मंजूरी के लिए ईओ के पास भेजा जाता है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 09:12 PM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 09:12 PM (IST)
यमुनानगर में पंचायतें हुई भंग, अधर में लटके विकास कार्य, 675 गांवों की हालत हुई खस्ता
यमुनानगर जिले में पंचायत भंग हुए हो चुके हैं आठ महीने।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। 23 फरवरी को ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो गया। बीडीपीओ को प्रशासक बना दिया गया। इसके बाद से ही गांव में विकास कार्य रूके पड़े हैं। कई गांवों में तो स्थिति बहुत अधिक बिगड़ गई है। सबसे ज्यादा दिक्कत उन गांव में हैं, यहां पर निर्माण कार्य अधर में लटके हुए हैं।  ऐसे हालत हो गए है कि गांव में पानी की लीकेज का पाइप भी ठीक नहीं हो पा रहा है। ग्रामीणों की मांग है कि सरकार जल्द से चुनाव का समय तय करें, तभी गांवों में विकास कार्य हो सकते हैं। पंचायत भंग हुए आठ माह हो चुके हैं। तभी से जिले के 675 गांवों में इसी तरह के हालात हैं।

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बड़ा काम है तो अप्रूवल में फंस गया

गांवों में विकास कार्याें को लेकर कई तरह की दिक्कतें हैं। यदि बड़ा काम कराना है, तो उसके लिए जिला परिषद के सीईओ से अनुमति लेनी होती है। उसके लिए पहले प्रस्ताव डालना होता है।  इसको मंजूरी के लिए ईओ के पास भेजा जाता है। यहां पर अनुमति मिलना आसान काम नहीं है। पहले बैठक होती है। उसके बाद दौरा किया जाता। तब तकनीकि विभाग इसका एस्टीमेट तैयार करते हैं। यह प्रक्रिया काफी लंबी होती है। यदि जरा भी अड़चन आ जाए तो अधिकारी तुंरत इसको रद कर देते हैं। जिससे कार्य लंबे समय तक नहीं हो पाता।

छोटे काम इसलिए नहीं होते

गांव में नाली की मरम्मत, गली की मरम्मत व अन्य कार्य के लिए ग्रामीण सरपंच के पास पहुंचते हैं, लेकिन अब उनके पास कार्यभार नहीं है। जिस वजह से सरपंच कार्य नहीं कर पाते। ग्रामीण सचिव व बीडीपीओ तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसी का नतीजा है कि गांव में छोटे कार्य भी नहीं हो रहे हैं। वहीं डीडीपीओ शंकर लाल गोयल का कहना है कि यदि गांव में कही भी विकास कार्य को लेकर दिक्कत आ रही है, तो ग्रामीण या निवर्तमान सरपंच उनसे मिल सकते हैं।

चुनाव लड़ने वाले भी हुए शांत

सरपंचों का कार्यकाल खत्म होने पर चुनाव लड़ने वाले सक्रिय हुए थे। लेकिन चुनाव का समय तय नहीं हाेने पर चुनाव लड़ने वाले भी शांत हो गए। क्योंकि उनका हर रोज खर्च हो रहा है। उनका कहना है कि पता नहीं चुनाव कब होगा। यदि इसी तरह से कार्य करते रहे तो काफी आर्थिक नुकसान हो जाएगा। जब सरकार चुनाव का समय तय करेंगे। उसके बाद वह भी प्रचार में जुट जाएंगे।

केस नंबर एक: बहरामपुरा की गली नहीं बनी काफी समय से

निवर्तामान सरपंच परजेश का कहना है कि गांव में गली नव निर्माण के लिए उखाड़ी गई थी। उसके बाद पंचायत भंग हो गई। तभी यह गली अधर में लटकी हुई है। इसके बारे में कई दफा बीडीपीओ से मिल चुके हैं, लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं हो रही है। गली न बनने से ग्रामीणों को दिक्कत का सामान करना पड़ रहा है। बरसात के मौसम में ज्यादा परेशानी होती है।

केस नंबर दो: नहीं सुन रहे अधिकारी :

फतेहपुर में सार्वजनिक हाल का निर्माण होना था। हाल के लिए सभी दस्तावेज पूरे हो गए थे। इसी दौरान 23 फरवरी को पंचायत भंग करने की सूचना आ गई। पावर अधिकािरियों के पास चल गई। निवर्तमान सरपंच छोटू राम का कहना है कि यदि हाल का निर्माण हो जाता तो ग्रामीणों का काफी लाभ मिल जाता। पहले फंड के कारण कार्य नहीं हुआ। अब पंचायती भंग होने के कारण रूक गया।

केस नंबर तीन: गली नहीं बन पा रही है

बाकरपुर गांव में मुख्य सड़क से हनुमान मंदिर तक गली का निर्माण होना था। इसके लिए वार्षिक प्लान तैयार कर लिया गया था। उसके बाद पंचायत भंग हो गई। निवर्तमान सरपंच प्रवीण कुमार का कहना है कि कुछ समय और मिल जाता तो गली का निर्माण हो जाता। अब अधिकारी के चक्कर लगाने से भी काम नहीं हो रहा है।


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