हरियाणा का एक ऐसा मंदिर, जहां महिलाएं खुद ही जाने से डरती हैं, प्रवेश भी वर्जित
पिहोवा के कार्तिकेय मंदिर में है महिलाओं का प्रवेश वर्जित। महिलाएं खुद ही डरती हैं मंदिर में प्रवेश करने से। जानिये क्या है इसकी कहानी। इस मान्यता की अब क्यों है जरूरत।
कुरुक्षेत्र [विनीश गौड़] : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री नहीं होने दी जा रही। लगातार तीन दिन से विवाद जारी है। हरियाणा में भी एक ऐसा मंदिर है, जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। सबरीमाला मंदिर में जहां महिलाएं प्रवेश करना चाहती हैं, वहीं हरियाणा के इस मंदिर में तो महिलाएं ही मंदिर में जाने से डरती हैं। ये है कुरुक्षेत्र के पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर स्थित कार्तिकेय मंदिर।
इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। महिलाएं इस मंदिर में जाना नहीं चाहती। इसका कारण इस मंदिर के देवता का श्राप है। मंदिर के बाहर फ्लैक्स बोर्ड पर हिंदी, पंजाबी और इग्लिश भाषा में साफ तौर पर महिलाओं के लिए चेतावनी लिखी भी हुई है। यूं तो पूरे भारत में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के अनेक मंदिर हैं। विशेषकर दक्षिण भारत में स्वामी कार्तिकेय के मंदिर है, जहां स्वामी कार्तिकेय की मुरुगन स्वामी के नाम से पूजा की जाती है। पिहोवा के सरस्वती तीर्थ पर स्वामी कार्तिकेय का मंदिर है।
कुरुक्षेत्र का कार्तिकेय मंदिर।
यह है कहानी
मंदिर के महंत राजतिलक गिरी ने बताया कि मान्यता के अनुसार जब भगवान शंकर देवताओं में प्रथम पूजित होने का अधिकार देने के लिए अपने पुत्र कार्तिकेय का राजतिलक करने का विचार करने लगे, तब माता पार्वती अपने छोटे पुत्र गणेश का राजतिलक करवाने के लिए हठ करने लगी। तभी ब्रह्मा, विष्णु व शंकर सहित सभी देवी देवता एकत्र हुए और सभा में यह निर्णय लिया गया कि दोनों भाइयों में से समस्त पृथ्वी का चक्कर लगा कर जो पहले बैकुंठ पहुंचेगा, वही राजतिलक का अधिकारी होगा।
भगवान कार्तिकेय अपने प्रिय वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल पड़े। गणेश जी अपने वाहन चूहे पर बैठकर चक्कर लगाने के लिए जाने लगे, तभी माता पार्वती ने गणेश जी को चुपके से कहा कि वत्स तुम यहीं पर इकट्ठे हुए समस्त देवगणों की परिक्रमा कर डालो क्योंकि त्रिलोकीनाथ यहीं विद्यमान हैं। माता पार्वती के ऐसा समझाने पर गणेश जी ने तीन चक्कर लगा कर भगवान शंकर जी को प्रणाम किया। भगवान शंकर विस्मित हुए और उन समेत सभी ने गणेश जी का राजतिलक कर दिया। उधर मार्ग में नारद ने कार्तिकेय को सारा वृतांत कह डाला।
कार्तिकेय पृथ्वी परिक्रमा पूरी करके सभा स्थल पर आ पहुचें और बोले, हे माता आपने मेरे साथ छल किया है। उन्होंने माता से कहा कि तुम्हारे दूध से मेरी त्वचा बनी हुई है, मैं इसको अभी उतार देता हूं। मांस उतार कर माता के चरणों में रख दिया और समस्त नारी जाति को श्राप दिया कि मेरे इस स्वरूप के जो स्त्री दर्शन करेगी, वह सात जन्म तक सुखी नहीं रहेगी। तभी देवताओं ने उनकी शारीरिक शांति के लिए तेल व सिंदूर का अभिषेक कराया। तब भगवान कार्तिकेय पृथुदक (पिहोवा) में सरस्वती तट पर पिंडी रूप में स्थित हो गए और कहा कि जो व्यक्ति मेरे शरीर पर तेल का अभिषेक करेगा, उसके पितर बैकुंठ में प्रतिष्ठित होकर मोक्ष के अधिकारी होंगे।
वर्तमान समय में प्रासंगिक नहीं हैं इस तरह के फैसले - गायत्री
संकल्पित फाउंडेशन की अध्यक्ष गायत्री कौशल ने कहा कि वर्तमान समय में महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित करना प्रासंगिक नहीं है। आज महिलाओं ने शिक्षा, नौकरी व अन्य सभी क्षेत्रों में अपने आपको पुरुषों के बराबर स्थापित कर दिया है। प्राचीन काल से ही भारत में महिलाओं को सम्मान मिलता रहा है और उनकी पूजा की जाती है। वेदों में भी महिलाओं का पूरा मान-सम्मान दिया गया है। बीच में कुछ लोगों द्वारा इस तरह की धारणाएं बना ली गई हैं जो अब प्रासंगिक नहीं हैं। अब महिलाओं को दूसरे और निम्न दर्जे का नहीं माना जा सकता। स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए इन बातों को दरकिनार करना होगा।