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डेयरी घोटाला पकड़ने गए थे अफसर, खुद ही घिर गए

पानीपत की मेयर अवनीत कौर डेयरियों का निरीक्षण करने पहुंची तो सामने आई समस्या। नगर निगम प्लॉट आवंटित कर सुविधा देना भूला। मेयर ने अधिकारियों से 24 घंटे में रिपोर्ट मांगी।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 02:38 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 02:38 PM (IST)
डेयरी घोटाला पकड़ने गए थे अफसर, खुद ही घिर गए

पानीपत, जेएनएन। पशु डेयरी प्लॉट आवंटन के 16 वर्ष बाद गड़बड़झाला पकड़वने गई शहर की सरकार के सामने उनके ही अधिकारी घिर आए। नगर निगम अधिकारियों ने आवंटन के बाद न तो डेयरियों को शिफ्ट करने का प्रयास किया और न ही मूलभूत सुविधा जुटाने की दिशा में काम किया। मेयर ने शिफ्टिंग पर लिए गए एक्‍शन पर सवाल पूछे तो संतोषजनक जवाब भी नहीं दे सके।

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डेयरी संचालकों का आरोप है कि अधिकारियों ने पशु अस्पताल और गोबर गैस प्लांट बनाने के सपने तो दिखा दिए, लेकिन उनको मूलभूत सुविधा तक नहीं दी। उन्होंने अब जब्त 36 प्लॉटों को दोबारा रिलीज करने की मांग भी उठाई। मेयर अवनीत कौर ने खाली प्लॉटों और मूलभूत सुविधाओं की 24 घंटे में रिपोर्ट तलब की है।

दो घंटे तक रहीं
मेयर अवनीत कौर डेयरियों को शहर से बाहर शिफ्ट कराना चाहती हैं। वे इसी सोच के साथ बिंझौल और शोंधापुर स्थित पशु डेयरियों का निरीक्षण करने पहुंची। वे यहां डेढ़ से दो घंटे रही। उन्होंने यहां पर घूमकर देखा और डेयरी संचालकों से बातचीत कर उनकी समस्याओं की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि डेयरियों में किसी तरह की समस्या नहीं आने दी जाएगी। वे यहां पर हर संभव सुविधा जुटाएंगी। 

मेयर ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित की
मेयर ने डेयरी प्लॉटों की जांच और सुविधा जुटाने के लिए एक्सईएन उमर फारुख की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित की। कमेटी को मंगलवार तक अपनी रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए हैं। निगम के जेई से लेकर एक्सइएन तक पुराने रिकॉर्ड को खंगालने में जुट गए हैं।

अधिकारियों से पहले जागरण की रिपोर्ट
नगर निगम ने वर्ष 2000 में डेयरियों को शहर से बाहर शिफ्ट करने का सर्वे किया था। 2003 में 198 प्लॉट आवंटित किए गए थे। पूर्व पार्षद हरीश शर्मा ने उस वक्त प्लॉट आवंटन में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। इसकी एसडीएम स्तर के अधिकारी ने दो बार जांच की। पहली जांच में आरोप निराधार पाए गए, जबकि दूसरी बार जांच में आरोप साबित होने पर 36 प्लॉट को रिज्यूम कर लिया गया था। अब यहां पर 50-60 की डेयरी हैं। बाकी प्लॉट खाली पड़े हैं।

प्लॉट बेचकर फायदा कमाने की तैयारी में लगे
कुछ लोग डेयरी को घाटे का सौदा मानते हैं। वे अब इन प्लॉटों को बेचकर इसमें फायदा कमाने की तैयारी में लगे हुए हैं। नगर निगम के अनुसार उस वक्त प्लॉट 600 रुपये प्रति वर्ग गज के हिसाब से लिए थे। वे अब इनको तीन से चार हजार रुपये प्रति वर्ग के हिसाब से बेचने की तैयारी में हैं।

डेयरी संचालकों के सामने ये पांच बड़ी समस्या
नंबर-एक
बिझौल में करीब 192 डेयरी प्लॉट आवंटित किए थे। इनकी रजिस्ट्री नहीं कराई गई। सरकार इनकी एक न्यूनतम फीस के आधार पर रजिस्ट्री कराएं। पशु डेयरी में इतनी बचत नहीं है। वे रजिस्ट्री होने पर पशुपालक विभाग से डेयरियों के लिए लोन ले सकते हैं। वे इसको धीरे-धीरे चुका सकते हैं।

नंबर-दो
डेयरियों में करीब 1500 पशु हैं, लेकिन यहां पर पशु अस्पताल नहीं है। ऐसे में मौसमी बीमारी लगने पर हर वर्ष पशुओं की मौत हो जाती हैं। एक डेयरी संचालक को कम से कम ढाई लाख रुपये का इस तरह से नुकसान हो जाता है। पिछली गर्मियों में क्षेत्र की डेयरियों में 20 गायों की अलग-अलग समय में मौत हो गई थी।

नंबर-तीन
डेयरियों के साथ तालाब नहीं है, जबकि यह जरूरी है। तालाब में नहाने से पशुओं की आधी बीमारी खुद दूर हो जाती हैं। उनकी आधी कमाई पशुओं की दवाई और देखभाल पर खर्च हो जाती है। तालाब में नहलाने से पशुओं में बीमारी कम आएंगी। उनकी बचत भी बढ़ेगी।

नंबर-चार
डेयरियों में गोबर का कोई प्रबंध नहीं है। उनको अपने स्तर पर प्लॉट लेकर गोबर डालने का प्रबंध करना पड़ता है। नगर निगम ने यहां पर बायोगैस प्लांट लगाने की बात कही थी, लेकिन आज तक प्लॉट नहीं लग पाया है। ऐसे में खुले में गोबर डालना पड़ता है। यह गर्मियों में एक बार ही उठ पाता है। डेयरियों में पानी निकासी का भी कोई प्रबंध नहीं है।

नंबर-पांच
पशु डेयरियों का काम अल सुबह से लेकर देर शाम तक चलता रहता है। कई बार पशुओं के खरीदने और नए लेने पर रुपयों का प्रबंध करना पड़ता है। यहां पर पुलिस चौकी या पोस्ट की कोई व्यवस्था नहीं है। इन हालातों में चोरी और लूट होने का खतरा बना रहता है। डेयरियों के नजदीक पुलिस चौकी बनाई जाएगी। 


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