न हार-न जीत, राष्ट्रीय लोक अदालतों के भाईचारे में फैसले
राष्ट्रीय लोक अदालतों में आने वाले अधिकतर केसों में न किसी की हार होती है न जीत। यहां एक अजब भाईचारे की मिशाल देखने को मिलती है।
पानीपत, [राज सिंह]। राष्ट्रीय लोक अदालतों से जहां कोर्ट का वर्क लोड कम हो रहा है, वहीं न्याय भी जल्द होता है। दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौता कर लेते हैं। भाईचारे के माहौल में केसों की सुनवाई होती है। न किसी की जीत न किसी की हार, थीम पर निर्णय लिया जाता है। यही कारण है कि वर्ष 2019 में चार आयोजनों में 4367 (प्री-लिटिगेशन और पेडिंग ट्रायल) केसों का निस्तारण हुआ। इनमें 10 करोड़ 72 लाख 14 हजार 470 रुपये सेटलमेंट राशि वसूली गई।
चार वर्ष बाद हुआ समझौता
लोक अदालत में पहुंचे राजेंद्र ने बताया कि उनका चेक संबंधित केस चल रहा था। हर बार तारीख पड़ती । वह चाहते थे कि किसी तरह मामला सुलझ जाए। लोक अदालत में समझौता हो गया। अगर वह पहले ही यहां आ जाते तो परेशानी न ङोलनी पड़ती। मिला बीमा क्लेम एक युवक को बाइक का बीमा क्लेम नहीं मिल रहा था। उसने कंपनी पर केस किया। समाधान हो नहीं रहा था। आखिरकार इस मामले को लोक अदालत में लाया गया। जहां दोनों ही पक्षों को सामने बैठाया गया। युवक को क्लेम मिला और बीमा कंपनी को भी केस से छुटकारा मिला।
09 मार्च 2019 3271 1021 28397716
13 जुलाई 2019 2530 769 27939708
14 सितंबर 2019 4352 1526 28599500
14 दिसंबर 2019 2789 1051 22277546
- 11 अप्रैल को अब अगली लोक अदालत का आयोजन होगा
- 08 फरवरी 2020 को इस वर्ष की पहली नेशनल लोक अदालत लगाई जा चुकी है
- 2624 केस तब इसमें शामिल किए गए थे।
- 799 केसों का इस दौरान निस्तारण किया गया
- 02 करोड़ 91 लाख तीन हजार 133 रुपये निपटान राशि वसूली गई।
- 01 साल में चार बार जिला लोक अदालतें लगी वर्ष 2019 में
- 10.72 करोड़ से अधिक समझौता राशि वसूली गई इस दौरान
मुख्य रूप से ये केस किए जाते हैं शामिल :
स्थायी लोक अदालत के केस, श्रमिकों से संबंधित विवाद, बिजली-पानी बिल, भरण-पोषण संबंधी, फौजदारी, सिविल वाद, चेक बाउंस, मोटर दुर्घटना बीमा, वैवाहिक मामले, भूमि अधिग्रहण, वेतन-भत्ते विवाद, किराया विवाद, टेलीफोन बिल, बैंक ऋण रिकवरी आदि।
राष्ट्रीय विधिक सेवाएं प्राधिकरण के निर्देश पर हर तिमाही सभी जिला अदालतों में नेशनल लोक अदालतों का आयोजन होता है। शिकायतकर्ता और आरोपित का पक्ष सुनकर केस का निस्तारण किया जाता है। यहां केस का निस्तारण होने के बाद कोई भी पक्ष किसी भी अदालत में केस री-ओपन नहीं करा सकता।
अमित शर्मा, सीजेएम एवं सचिव-जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण