Navratri 2022: हरियाणा में मां दुर्गा के 5 बेहद रहस्यमयी मंदिर, रोचक तथ्य जानकार रह जाएंगे हैरान
Navratri 2022 मां दुर्गा के हरियाणा में ये पांच प्रसिद्ध मंदिर हैं। मान्यता है कि नवरात्र में इन मंदिरों में मां दुर्गा के दर्शन मात्र से ही विशेष कृपा होती है। इन मंदिरों का श्रीकृष्ण भगवान से भी जुड़ाव है। यहां पर शक्ति पीठ भी है।
पानीपत, [आनलाइन डेस्क]। Navratri 2022: शारदीय नवरात्र का पवित्र त्योहार चल रहा है। आज नवरात्र का पांचवां दिन है। दुर्गा के पंचम स्वरूप में स्कंदमाता पूजित हैं। हरियाणा में मां दुर्गा के कुछ रहस्यमयी मंदिर भी है। इनकी दूर-दूर तक मान्यता प्रसिद्ध है। महाभारत काल के दौरान इन मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ पूजा की थी। नवरात्र में इन मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगती है। आइए जानते हैं इन पांच मंदिरों के रोचक तथ्य।
पानीपत में गांव पाथरी का सुप्रसिद्ध शीतला माता मंदिर
पानीपत से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर गांव पाथरी स्थित सुप्रसिद्ध शीतला माता मंदिर हैं। शीतला माता मंदिर की दूर-दूर तक मान्यता है। माता के दर्शन के करने के लिए हजारों लोग आते हैं। पाथरी गांव में मौजूद यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है। जिसका संबंध महाभारत काल से भी बताया जाता है। माता पाथरी वाली को माता धूतनी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रों के दिनों में भी यहां श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। मान्यता अनुसार शादी के बाद नव विवाहित दंपत्ति जोड़े के साथ यहां पर माथा टेकने जरूर पहुंचते हैं। इसके अलावा बच्चे के जन्म उपरांत पहली बार यहां बालों का मुंडन भी कराया जाता है।
अंबाला का झावरियां मंदिर
यह मंदिर मुगल शासन से पहले चक साहणू जिला सरगोधा वेस्ट पंजाब पाकिस्तान में था। बाद में झावरियां शहर एक भव्य मंदिर बना और देश विभाजन के बाद यही प्रतिमा अब अंबाला शहर में इस मंदिर में विराजमान है। बाबा फुलू जंगल में भुलवाल से शाहपुर वाली कच्ची सड़क के किनारे एक कुटिया में ज्योति जलाकर दिन रात तपस्या करते थे। वह जली सती थे और आठ पहर बाद भोजन करते थे। कुटिया के पास एक कुआं खोदते समय खून की धारा निकली और आवाज आइ कि मेरे भक्त बाबा फुलू को बुलाओ। बाबा फुलू आए तक महाकाली जगत जननी जगदम्बा मां कन्या रूप में प्रकट हुई और वे मां को अपनी कुटिया में ले गए उनके सम्मुख पहुंचते ही मां कन्या रूप में चौकडी लगाकर बैठ गई और बोली, हे भक्त डरो नहीं मैं तो सिल पत्थर हो जाउंगी, मेरी सेवा करते रहना हरे भरे रहोगे। भक्त ने प्रश्न किया हे मां मै जब समा जाउंगा तो फिर तेरी सेवा कौन करेगा। मां ने तुरंत कहा कि बाबा बिहारी जो तुम्हारे भाई हैं और शिष्य भी हैं। सेवा करते रहेंगे। झावरियां वाला मंदिर अंबाला शहर के बांस चौक और रामबाग के बीच के क्षेत्र में है। इस मंदिर में लोगों की बड़ी आस्था है, क्योंकि इस मंदिर में देवी की प्रतिमा पाकिस्तान से आई हुई है।
कुरुक्षेत्र में प्राचीन शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की निंदा सुन देवी भगवती सती हो गई थी। उनके पवित्र मृत शरीर को अपने दिल में लपेटकर, परेशान शिव पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। यह देखकर, भगवान विष्णु ने मां भगवती के मृत शरीर को अपने सुदर्शन चक्र के साथ 52 भागों में काट दिया। जिस जगह शरीर के अंग गिरे वह पवित्र शक्तिपीठ के रूप में उभरे। कुरुक्षेत्र में शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर में माता सती का दाहिना घुटना (गुल्फ) गिरा था। इसी शक्तिपीठ में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन संस्कार हुआ था। प्रदेश का एकमात्र शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र में स्थापित है। मंदिर में पांडवों ने विजय कामना के लिए मां भद्रकाली का पूजन किया था और युद्ध के बाद मंदिर में मन्नत पूरी होने घोड़ा चढ़ाया था। उसके बाद से ही मंदिर में मन्नत पूरी होने पर सोने-चांदी व मिट़्टी के घोड़े चढ़ाने की परंपरा है। मां भद्रकाली यहां शांत रूप में विराजमान हैं।
कैथल का मन कामेश्वर मंदिर
माता गेट स्थित बाबा परम हंस पुरी डेरे में मन कामेश्वर मंदिर व सूरजकुंड की स्थापना राजा युधिष्ठिर ने की थी। ये स्थान महाभारत कालीन है। यहां माता काली और माता शीतला देवी का मंदिर भी यहां विराजमान है। पाकिस्तान में मुल्तान शहर में एक व्यक्ति के स्वप्न में मां कालका ने दर्शन दिए। इसके बाद व्यक्ति ने माता काली की पूजा अर्चना की। यहां भी माता काली का अत्यंत प्रचंड शक्ति पीठ है। प्राचीन काल से यहां माता की पूजा अर्चना हो रही है। नवविवाहिता दुल्हा-दुल्हन भी यहां पूजा के लिए पहुंचकर मन्नतें मांगते हैं।
जींद का जयंती देवी मंदिर
समुंद्र मंथन के समय देव सेनापति जन्नत ने दानवों से अमृत कलश पाने के लिए इसी स्थान पर पूजा कर विजय का आशीर्वाद मांगा था और अमृत कलश को देवताओं को पास पहुंचाया था। इसके अलावा पांडवों ने विजय के लिए भी इसी मंदिर में पूजा की थी। श्री जयंती देवी मंदिर काफी पुराना है। बताया जाता है कि इस मंदिर के नाम से ही जिले का नाम जींद पड़ा था। मंदिर का नाम प्रदेश के मानचित्र पर भी अंकित है।