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सरकारी स्कूल से पढ़कर बना आइएएस, मकसद लोगों की सेवा करना, जानिए कैसे पाई सफलता

राजस्थान के हितेश मीणा सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर आइएएस बन गए। लोगों की सेवा भाव करने का इरादा लिए सफलता हासिल की। जागरण संवाददाता से बातचीत करते हुए हितेश मीणा ने बताया कि आखिर कैसे उन्होंने सफलता हासिल की।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 07:15 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 07:15 PM (IST)
हितेश मीणा से जागरण संवाददाता की खास बातचीत।

अंबाला शहर, जागरण संवाददाता। आइएएस में अपने फायदे के लिए नहीं आते हैं, बल्कि इसमें लोगों की सेवा के लिए ही आते हैं। इसके जरिये किसी की जिंदगी तक बदली जा सकती है। क्योंकि आइएएस बनकर ही लाभार्थी को उक्त योजनानुसार सीधा फायदा पहुंचाया जा सकता है। यह कहना है आइएएस हितेश कुमार मीणा का। उनसे दैनिक जागरण संवाददाता अवतार चहल ने उनके संघर्ष से लेकर लोगों को सुविधाओं तक पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि यदि किसी अन्य पद पर हो तो सेवाएं सीधे तौर सुविधा नहीं दी जा सकती। इस कारण उन्हें शुरू से था कि ऐसी नौकरी करनी है जिसमें लोगों की सीधे सेवा की जा सके।

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सरकारी स्कूल से आइएएस तक का तय किया सफर

उन्होंने बताया कि वह राजस्थान के जिला करौली के गाधौली गांव से रहने वाले हैं। वहीं के सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की है। इसके बाद मिडिल और सेकेंडरी शिक्षा प्राइवेट से की। बाद में बीएचयू वाराणसी से बीटेक की और आइआइटी दिल्ली से एमटैक की।

सिविल सर्विस परीक्षा के 2016, 2017 और 2018 में टेस्ट दिये थे। जिस पर उन्हें 2018 में हरियाणा कैडर मिला। इस कारण उनका 2019 का बैच है। पहले एक साल की एकेडमिक ट्रेनिंग होती है। इसके बाद कैडर अलाट होता है। पहली पोस्टिंग गुड़गांव में हुई थी और पिछले साल जुलाई में अंबाला ज्वाइन किया था। जबकि उनका पहले भारतीय वन सेवा में चयन हुआ था। उनकी पत्नी भी उनके बैच की आइएएस हैं। जिनकी अभी कलकत्ता पोस्टिंग है।

दादा से मिले जिंदगी के अनुभव तो किया संघर्ष

उन्होंने बताया कि वह किसान परिवार से हैं। उनके दादा खेती करते हैं। इस कारण वह भी घर जाकर खेती करते हैं। कालेज के दौरान फसल तक की कटाई की है। दादा से ही जीवन के अनुभव लिये हैं। उन्होंने जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना सिखाया। क्योंकि जब फसल खराब हो जाती है तो किसान उसे दोबारा से उगाता है। जो कमियां रह जाती हैं उन्हें दूर करने की तैयारी करनी पड़ती है। इसी कारण वह करौली से बनारस तक ट्रेन में जाता था।

परिवार में नहीं था कोई आइएएस, शिक्षा के बूते पाई मंजिल

आइएएस हितेश मीणा ने बताया कि उनके पिता शिक्षक हैं और माता गृहणी हैं। उनके परिवार से कोई भी आइएएस नहीं था। जिस कारण उन्हें यह भी नहीं पता था कि कैसे तैयारी की जाती है। दूसरा वह मध्यमवर्ग परिवार से हैं। ऐसे में शिक्षा से आगे बढ़ा जा सकता है। इस कारण बीटेक फाइनल में आइएएस बनने का मन बना लिया था।

सवाल - भ्रष्टाचार को राेकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

जवाब - भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कार्यालय के बाहर नोटिस लगा रखे हैं यदि कोई भी भ्रष्टाचार करता है तो उसकी शिकायत दी जाए ताकि आरोपित के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

सवाल - सरल केंद्र में काम लंबित रहते हैं, लोगों को इंतजार करना पड़ता है।

जवाब - जब बतौर एसडीएम का कार्यभार संभाला तो सरल केंद्र में फाइलाें की पेंडेंसी रहती थी, जिसे पहले के मुकाबले बेहद सुधार किया गया है। अगर स्टाफ पूरा हो तो काम में ओर तेजी लाई जा सकती है। कई बार स्टाफ की कमी के कारण फाइलें पेंडिंग रह जाती हैं।

सवाल - एसडीएम कार्यालय में दलालों देखने को मिलते हैं।

जवाब - उनके कार्यालय में पहले काफी एजेंट आते थे। यह नियमों के खिलाफ है। लेकिन इससे लोगों को घर बैठे ही सुविधा मिल जाती है। उन्हें फाइल चेक करने से पता चल जाता है। इसके चलते दलालों पर काफी हद तक शिकंजा कस दिया गया है।

सवाल - वाहन चालकों को परेशानी न हो इसके लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

जवाब - अब आवेदक को एक बार जरूर आना होता है। जबकि पहले गाड़ी खरीदने पर लोगों को फाइल लेकर आना पड़ता था। परंतु अब डीलर लेकर आते हैं।

सवाल - एसडीएम कार्यालय में दिव्यांगों के लिए क्या सुविधा है।

जवाब - जब उन्होंने अंबाला ज्वाइन किया तो कार्यालय में दिव्यांगों के लिए कोई बिल्डिंग प्लान नहीं था। उन्होंने आने के बाद दीवारों पर ब्रेन लिपी लिखवाई। नीचे फर्श पर पीले रंग की स्ट्रीप वाली टाइलों को लगवाया। इससे पता चल जाता है। इससे उन्हें आसानी से पता चल जाता है।

सवाल - आवेदक की फाइल में कोई कमी हो तो जमा होने के बाद कैसे पता चलेगा।

जवाब - यदि किसी आवेदक की फाइल पर आब्जेक्शन लगता है तो उसे फोन पर सूचित कर दिया जाता है।


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