आठ साल की उम्र में शादी, 17 की उम्र में लड़की की ना, कोर्ट की मुहर
पानीपत में उम्र मात्र आठ वर्ष थी। वह बचपन की अठखेलियों में मस्त थी।
विजय गाहल्याण, पानीपत
उम्र मात्र आठ वर्ष थी। वह बचपन की अठखेलियों में मस्त थी। उसे पता ही नहीं चला कब मंडप में बैठाकर किसी और के पल्ले बांध दी गई। होश संभाला तो पता चला कि वह बचपन में ही बाल विवाह की शिकार हो चुकी है। हम बात कर रहे हैं सरस्वती विहार खादी कॉलोनी की शशि की। 17 वर्ष की उम्र में पति लेने आया तो शादी के बंधन को मानने से इन्कार कर दिया। भविष्य बचाने की जद्दोजहद करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधीश के सामने टीचर बनने का लक्ष्य रखा। अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश वेद प्रकाश सिरोही ने बाल विवाह को रद कर दिया।
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18 महीने लड़ी लड़ाई
भविष्य को सुधारने और समाज की कुरीति के खिलाफ लड़ाई में शशि को पिता बलकार सिंह और मां बंती देवी का भी साथ मिला। 17 मार्च 2017 में उसने बाल विवाह के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। 18 महीने कोर्ट में लड़ाई लड़ी। अब कोर्ट ने पक्ष में फैसला सुनाया और नौ साल पहले के बाल विवाह को रद कर दिया है। इससे शशि खुश है। वह पढ़ाई कर शिक्षिका बनना चाहती है। उसने 12वीं कामर्स संकाय से पास कर ली है। बीकॉम प्रथम वर्ष में है।
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नहीं हो रही थी चाचा की शादी, 2008 में बना दी थी बालिका वधू
18 वर्षीय शशि ने बताया कि उसके चाचा दिलेर की शादी नहीं हो रही थी। परिवार के दवाब में 11 जुलाई 2008 को उसकी शादी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के गांव डोला माजरा के मोनू (10) के साथ कर दी गई थी। मोनू की बहन बेबी की शादी दिलेर से करा दी गई थी। आठ साल की उम्र में अट्टा-सट्टा में उसका विवाह कर दिया गया।
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रजनी गुप्ता से मिला सबल
शशि ने बताया कि जब वह 11वीं कक्षा में थी कि तब महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता उनके स्कूल आई थीं। तब उनको अपने बाल विवाह के बारे में बताया था और विरोध करने की इच्छा जताई थी। रजनी गुप्ता ने बल दिया। तभी ठान लिया था कि किसी सूरत में ससुराल नहीं जाऊंगी। मार्च 2017 में मोनू उनके घर आया और बोला कि वह उसका पति है। साथ चलो। उसने शादी मानने से इन्कार कर दिया। मोनू लौट गया।
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अपनों ने ही पिता का हुक्का-पानी कर दिया था बंद, छीन ली जमीन
बलकार ¨सह ने बताया कि शशि उनकी इकलौती बेटी है। इससे दो छोटे बेटे हैं। बेटी की जिद थी कि वह ससुराल नहीं जाएगी, पढ़-लिखकर आपका सहारा बनूंगी। बेटी के भविष्य को देखते हुए वह भी उसके साथ खड़ा हो गया। इस पर उनके पिता, भाई और रिश्तेदारों ने हुक्का-पानी बंद कर दिया। करनाल के बसताड़ा गांव में उसकी जमीन और प्लॉट भी छीन लिया गया। बेटी के अपहरण की धमकी भी दी गई, लेकिन वह टूटा नहीं और बेटी के साथ खड़ा रहा। इसमें जीत मिली है। वह दूध बेचकर परिवार का गुजारा कर रहा है।
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जागरूक हो रहीं लड़कियां
महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता ने बताया कि लड़कियां जागरूक हो रही हैं। बाल विवाह का विरोध कर रही हैं। दो साल में जिले में 60 लड़कियों ने अपने बाल विवाह की सूचना दी, जिन्हें रुकवाया गया। शशि व उसके माता-पिता ने बाल विवाह के खिलाफ कोर्ट की लड़ाई लड़ी है। यह बाल विवाह की शिकार होने वाली लड़कियों के लिए एक नजीर है।