कुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। Makar sankranti 2022: मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्‍व है। हालांकि काफी लोग इसके पौराणिक महत्‍व को नहीं जानते होंगे। मकर संक्रांति का महाभारत से गहरा संबंध हैं। मकर संक्रांति को सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। इस दिन स्नान-दान और सूर्य देव की पूजा की जाती है। जानें आखिर मकर संक्रांति का महाभारत काल और भीष्‍म पितामह से क्‍या संबंध है।

मकर संक्रांति और महाभारत काल से जुड़ी पौराणिक कथा

महाभारत का युद्धा पूरे 18 दिनों तक चला था। इस युद्ध में भीष्म पितामह ने 10 दिन तक कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा। रणभूमि में भीष्म पितामह के युद्ध कौशल से पांडव व्याकुल थे। पांडवों ने शिखंडी की मदद से भीष्म को धनुष छोड़ने पर मजबूर किया और फिर अर्जुन ने एक के बाद एक कई बाण मारकर पितामह को धरती पर गिरा दिया। अर्जुन के बाणों से बुरी तरह घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह की मौत नहीं हुई क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था। भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तारायण होने का इंतजार किया, क्योंकि इस दिन प्राण त्यागने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। भीष्म पितामाह 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर रहे। उन्होंने मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण त्याग दिए।

गंगाजल हाथ में लेकर ली थी शपथ

इसके साथ ही भीष्म पितामह ने प्रण लिया था कि जब तक हस्तिनापुर सभी की ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता है वे प्राण नहीं त्यागेंगे। सत्यनिष्ठा और पिता के प्रति अटूट प्रेम के कारण भीष्ण पितामह ये वरदान मिला था कि वे अपनी मृत्यु का समय खुद निश्चित कर सकते थे। भीष्म पितामह का नाम देवव्रत था। उन्होंने गंगाजल हाथ में लेकर शपथ ली थी कि आजीवन अविवाहित रहूंगा और इसी प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा और उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन किया।

शुभता का प्रतीक है मकर संक्रांति

गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के संचालक ज्योतिषाचार्य डा. रामराज कौशिक ने बताया कि महाभारत के अंतिम अध्याय का यह प्रसंग भारतीय सनातनी परंपरा प्राचीन उन्नत पद्धति की ओर इशारा करता है। मकर संक्रांति का पर्व शुभता का प्रतीक है। इसके साथ ही यह नवचेतना का पर्व है। भीष्म पितामह इसी शुभ काल में प्राण त्यागना चाहते थे, इसीलिए बाणों से बिंधे होने का बाद भी इस तिथि की प्रतीक्षा की थी। इस दिन से ही सूर्य उत्तरायण होते हैं। इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है। यह ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है। खिचड़ी का सेवन करना और दान करना श्रेयस्कर माना जाता है और इसीलिए उत्तर-मध्य भारत में यह पर्व खिचड़ी कहलाता है।

Edited By: Anurag Shukla