यहां पर भगवान श्रीराम के वंशों ने किया था राजसूर्य यज्ञ, श्रीकृष्ण भी आ चुके इस पवित्र स्थल पर
Surya Kund Temple यमुनानगर के गांव अमादलपुर में सूर्यकुंड मंदिर है। यहां पर श्रीराम भगवान के वंशों ने राजसूर्य यज्ञ किया था। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण भी आए थे। यहां पर लगातार रामायण का पाठ होता रहता है।
यमुनानगर, [पोपीन पंवार]। यमुनानगर मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर गांव अमादलपुर स्थित सूर्यकुंड मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। यहां पर दूर दराज के श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में सूर्य ग्रहण का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता। भारत में उड़ीसा के कोणार्क व जिले के गांव अमादलपुर में इस तरह के दो ही मंदिर हैं।
मंदिर की दीवारों पर रामायण लिखी हुई। श्रीराम चरित मानस मंदिर की दीवारों पर संपूर्ण श्रीराम चरित मानस एल्युमीनियम की प्लेटों पर लिखी हुई। यह हस्त लिखित है। खास बात यह है कि इसको लिखने के लिए बनाई गई स्याही भी औषधियों से तैयार की गई थी।
लगातार होता है रामायण पाठ
वर्ष-2009 में इसका उद्धाटन हुआ था। आज भी इसकी चमक बरकरार है। 25 वर्ष से लगातार चल रहा रामायण का पाठ इसके महत्व को और भी बढ़ा रहा है। न केवल हरियाणा के विभिन्न जिलों बल्कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड व दिल्ली से श्रद्धालु पहुंचकर नतमस्तक होते हैं। पुरातत्व विभाग की टीम यहां का दौरा कर चुके हैं। यहां खोदाई में यज्ञशाला, शिवलिग व सूर्यकुंड मिले थे।
सूर्य कुंड में नहीं ग्रहण का कोई असर
भारत के गौरवमयी इतिहास को संजोए सूर्य मंदिर अमादलपुर है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि सूर्यग्रहण के समय मंदिर के प्रांगण में आने-वाले किसी भी प्राणी पर ग्रहण का कोई असर नहीं पड़ता। मंदिर के प्रांगण में सूर्य कुंड इस प्रकार से बना है कि सूर्य की किरणें इस प्रकार पड़ती हैं कि वो कुंड मे ही समा जाती हैं। इसलिए सूर्य ग्रहण के दिन साधु-संत और श्रद्धालु दूर-दूर से यहां दर्शनों के लिए आते हैं। चौमासा में यहां पर दूर दराज के संत आकर रूकते हैं। क्योंकि जब तक चौमासा चलता है कि संत किसी भी दरया को पार नहीं करते।
सूर्यकुंड मंदिर का इतिहास
पुजारी सुरेश पंडित के मुताबिक त्रेता युग में मध्य से पूर्व भगवान श्रीराम से 43 पीढ़ी पूर्व सूर्यवंश में राजा मांधाता सूर्यवंश राजा सोभरी ऋषि को आचार्य बनाकर यमुना जी के किनारे राजसूर्य यज्ञ किया। यज्ञ में बहुत सारे देवता शामिल हुए। यज्ञ के पश्चात ऋषियों ने यज्ञ के कुंड में जलभरवा दिया और उसे सूर्य कुंड की संज्ञा दी।
इसी प्रकार के 68 कुंड भारत देश में हैं, लेकिन सूर्यकुंड के मंदिर केवल दो ही हैं। एक जिला यमुनानगर के गांव अमादलपुर में और दूसरा उडीसा के कोर्णांक में हैं। द्वापर के अंत में सूर्य वंश के अंतिम राजा सुमत्र ने अपनी कुल समृद्धाि के लिए यज्ञ पूर्वजों द्वारा प्रतिष्ठित सूर्यकुंड पर अपने कुल इष्ट देवता सूर्य नारायण को तपस्या से प्रसन्न किया। उनकी आज्ञा से सूर्य नारायण जी का भव्य मंदिर बनवाया।
सूर्यकुंड का पुननिर्माण किया गया। सूर्य की कृपा से जल गर्म व दिन में तीन रंग लाल, हरा व पीला में बदलता रहता है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से चर्मराग ठीक हो जाते हैं। अमावस्या सक्रांति व पितृ पक्ष में पिंड दान करने से पितरों को विशेष तृप्ति होती है। वनवास के समय यहां पांडव भी आए। विशेषज्ञों का मानना है कि युधिष्ठर संवाद इसी कुंड पर हुआ। इस दौरान अर्जुन भगवान शिव से पाशुपथ लेने कैलाश गए और शिव को प्रसन्न कर अस्त्र प्राप्त किए। पूजा के लिए उन्होंने चिन्ह मांगा और भगवान शिव ने उन्हें स्वेरुषश्वर लिंग दिया। अर्जुन ने शिव मंदिर निर्माण व इसमें लिंग स्थापना की।
एक बार श्री कृष्ण व अर्जुन वन विहार करते हुए यमुना के किनारे आए। यहां तपस्या में लीन कन्या को देखा। श्री कृष्ण जी की प्रेरणा से अर्जुन ने कन्या से तपस्या का कारण पूछा। कन्या ने बताया कि वह सूर्य नारायण की पुत्री कालिंदी हूं। भगवान श्री हरि को पति बनाने के लिए तपस्या कर रही हूं। इससे श्री कृष्ण जी ने उन्हें इंद्रप्रथ ले आए। श्री कृष्ण जी की आठवीं पटरानी हैं।
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने यमुनोत्री से प्रयाग जाते हुए यहां विश्राम किया। औरंगजेब के समय में हिंदू संस्कृति का विध्वंश किया गया। इसकी चपेट में यह ऐहितासिक स्थान भी आया। आक्रमण करने वालों ने मंदिर तोड़ा और सूर्य नारायाण व अन्य प्रतिमांए अपने साथ ले गए। 15 मार्च 1983 से श्री श्री स्वामी 1008 अखिलानंद महाराज व श्रद्धालुओं की मदद से सूरज कुंड मंदिर का निर्माण दनोतर हो रहा है। पूजारी बताते है कि पहला उड़ीसा स्थित कोर्णाक का सूर्य मंदिर जिसे चंद्रवंशी राजा व भगवान श्री कृष्ण व जामवंती के सुपुत्र शाम ने बनवाया था।
बस स्टैंड से बूडिया चौक
मुख्यालय से सूर्यकुंड मंदिर में पहुंचने के लिए बूड़िया चौक जाना होगा। बूड़िया चौक से अमादलपुर रोड पर करीब पांच किलोमीटर दूर है। गांव सुघ व अमादलपुर के बीच सड़क किनारे ही मंदिर का मुख्य द्वार है। यहां से आटो व अन्य वाहन उपलब्ध हो जाता है।