यहां दफन है देश का आखिरी सुल्तान, वहीं टूटे हैं सैनिकों के हाथ
शौर्य दिवस 14 को। इब्राहिम लोधी पार्क में बिखरी गंदगी। पुरातत्व विभाग इसे संजोने को तैयार नहीं है। विकास पर करोड़ों खर्च करने वाला निगम प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा।
जेएनएन, पानीपत। जिसने कभी देश पर राज किया था, आज वो ऐसी जगह पर दफन है, जहां पर गंदगी के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता। जिन सैनिकों की मूर्तियों को दिखाकर पानीपत की ऐतिहासिकता का जिक्र किया जाता है, उनके हाथ टूट चुके हैं। तोपें तहस-नहस हो चुकी हैं। पानीपत में 14 जनवरी को शौर्य दिवस मनाने की तैयारियां चल रही हैं। सिविल अस्पताल के पीछे बना इब्राहिम लोधी का पार्क ही बेहाल है। पार्क में लोधी के मकबरे की ईटें भरभरा कर गिर रही हैं। कोई उसे संभालने वाला नहीं है। गंदगी के चलते लोग यहां आने से कतराते हैं। पुरातत्व विभाग इसे संजोने को तैयार नहीं है। विकास पर करोड़ों खर्च करने वाला निगम प्रशासन भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा।
यह है इतिहास
इब्राहिम लोधी दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। 1517 से 1526 ई. तक उसने दिल्ली की गद्दी पर राज किया। पिता सिकंदर लोधी के मरने के बाद वह सुल्तान बना था। वह अफगानी था। पानीपत की पहली लड़ाई में मुगल सम्राट बाबर के साथ इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और मारा गया। इस युद्ध में पहली बार तोप, बारूद का इस्तेमाल हुआ था। 20 अप्रैल, 1526 को लोधी की मृत्यु हुई। लोधी का खुला मकबरा पानीपत में तहसील कैंप जाने वाले रास्ते में बना हुआ है। पुरातत्व विभाग के संरक्षण में इस ऐतिहासिक स्मारक को देखने के लिए देश भर से सैलानी आते हैं। इब्राहिम लोधी की मौत के साथ ही सुल्तान परंपरा खत्म हुई और मुगल राज की बादशाहत कायम हुई। लोधी की मौत के बाद देश में मुगल वंश स्थापित हुआ, जिसने यहां तीन शताब्दियों तक राज किया।
संरक्षित इमारत है लोधी का मकबरा
जीटी रोड से 500 मीटर की दूरी पर स्थित लोधी के इस मकबरे पर अरबी, ऊर्दू में आयतें लिखी है। नगर निगम ने इस धरोहर को संजोए रखने के उद्देश्य इसके चारों तरफ पार्क का निर्माण कराया। यहां देखरेख के लिए एक कर्मचारी को भी नियुक्त किया। पार्क के साथ आधुनिक शौचालय भी बनवाए गए। इसके बावजूद भी मकबरा बदहाली का शिकार है। पार्क तो बना दिया गया लेकिन सफाई व्यवस्था नहीं है। पार्क में प्रतिमाएं भी लगाई गई हैं। वे भी टूटती जा रही हैं। पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है। इस के 100 मीटर तक और इसके आगे 200 मीटर तक के समीप खनन व निर्माण कार्य वर्जित हैं। इसे बावजूद भी स्मारक के नजदीक ट्यूबवेल लगा हुआ है। नजदीक से नाला बहता है जहां कूड़ा डंप किया जा रहा है।
गंदा पानी रहता है जमा
बच्चे यहां क्रिकेट खेलते हैं। चारों तरफ गंदगी पड़ी है। लाखों रुपये खर्च करके पार्क बनाया गया। लेकिन सफाई तक नहीं की जा रही। लोधी स्मारक की बाउंड्री की जा चुकी है, लेकिन साथ बने मंदिर का गंदा पानी भी यहां जमा हो रहा है। दो-दो ट्यूबवेल यहां लगाए गए। पर्यटक यहां आने में जाम में फंस जाते हैं। रोड पर वर्कशाप बनी हुई। ऑटोमोबाइल की दुकानें यहां खुली हुई है। इसी रोड से ऐतिहासिक सलारजंग गेट, प्राचीन देवी मंदिर व काबूली बाग मस्जिद को रास्ता जाता है।
गंदगी देख मन खराब हो गया - डॉ. रामेश्वर दास
आइबी कॉलेज के इतिहास संकाय के विभागाध्यक्ष डॉ. रामेश्वर दास ने बताया कि इत्तफाक से एक रिश्तेदार को इब्राहिम लोधी को मजार दिखाने गया। उजड़े पार्क में गंदगी का अंबार देख कर मन खिन्न हो गया। कैसे लोग यहां देखने आते हैं। मजार की ईंटें भरभरा कर गिर रही हैं। पानीपत की ऐतिहासिक युद्ध का जीवंत उदाहरण है। ये सामाजिक ङ्क्षचता का विषय है कि पार्क को गंदगी से क्यों नहीं निजात मिली। इतिहास से कोई चीज खत्म हो जाने के बाद उसे पैदा नहीं किया जा सकता है। पुरातत्व विभाग ने इसे नहीं संभाला तो प्रमाण ही खत्म हो जाएगा।
निगम आयुक्त ने नहीं की सुनवाई - सीमा पाहवा
पूर्व डिप्टी मेयर सीमा पाहवा ने बताया कि तहसील कैंप वार्ड चार में लोधी स्मारक स्थित एतिहासिक धरोहर लोधी स्मारक की तरफ नगर निगम प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया। यहां कोई चौकीदार नहीं है। सफाई व्यवस्था नहीं है। पार्क में झूले आदि भी नहीं लगाए गए हैं। बार-बार मांग करने पर किसी भी आयुक्त ने सुनवाई नहीं की। एक साल पहले नगर निगम के तत्कालीन एसई ने लाखों रुपये खर्च कर दीवार, गेट, पार्क का विकास किया। उसके बाद से इसके मरम्मत की कोई व्यवस्था नहीं की गई। मरम्मत न होने के कारण यहां लगाए गए लाखों रुपये भी व्यर्थ जा रहे हैं। ऐतिहासिक धरोहर बेहाल है।