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Diwali special- हरियाणे के गांवों में यूं मनता है त्‍योहार, बेजुबानों को भी सजाते हैं

अमावस्या के दिन दिवाली मनाने की लोक परंपरा ग्रामीण अंचल का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गांव की चौपाल, कुंओं, शिवालय, मंदिर, दादाखेड़ा आदि पर सभी घरों एवं कूढ़ी की ओर से दीप जलाए जाते हैं।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 12:39 PM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 12:40 PM (IST)
Diwali special- हरियाणे के गांवों में यूं मनता है त्‍योहार, बेजुबानों को भी सजाते हैं
Diwali special- हरियाणे के गांवों में यूं मनता है त्‍योहार, बेजुबानों को भी सजाते हैं

जेएनएन, पानीपत - शहरों की दिवाली की धूम तो खूब सुनी और पढ़ी होगी आपने। आपको हरियाणे की देसी दिवाली के त्‍योहार से मिलवाते हैं। यहां कैसे त्‍योहार मनाते हैं, क्‍या हैं परंपराएं, इस विशेष रिपोर्ट से जानिये। इस त्‍योहार पर खास बात ये है कि गांवों में पशुओं को भी सजाया जाता है।

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किसानी संस्कृति में महिलाएं प्रात:कालीन बेला में उठकर घर की सफाई करती हैं। उसके पश्चात जहां पर कच्ची जगह एवं चूल्हा होता है, उसको गाय के गोबर के साथ लीप दिया जाता है। तत्पश्चात महिलाएं एवं परिवार के सदस्य दादाखेड़े, थान तथा अपने पित्तर आदि पर सपरिवार धोक मारकर उसकी पूजा करते हैं। दीपावली के लिए यजमानी कुम्हार से दीए, चुगड़े, कल्लो, कसोरे आदि प्रयोग हेतु पहले से ही लेकर रख लिए जाते हैं। इस दिन ग्रामीण महिलाएं चित्तण एवं मांड़णें भी घर की दीवारों पर बनाती हैं, जिनमें मां लक्ष्मी के प्रतीकात्मक चित्र अंकित होते हैं।

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पांच गन्‍नों को खेत से उखाड़ते हैं
इनके साथ सत्तिया तथा शुभ-लाभ बनाने एवं लिखने की परंपरा भी है। किसानी संस्कृति में दिवाली का त्योहार विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। इस अवसर पर गन्ने की नई फसल का आगमन भी माना जाता है। यही कारण है कि पांच गन्नों को खेत से उखाड़कर दिवाली पूजन के लिए घर पर लाया जाता है। जिसे पंचगंड़ा पूजन भी कहा जाता है। उधर दिन में पशुओं की देखभाल करने वाला पशुओं को नहला-धुलाकर तैयार करता है। उनके सींगों पर तेल लगाता है। उनके गले में मोर के पंख से बने हुए घांड़ली एवं पटुए बनाकर पहनाता है।

गाय को मेहंदी लगाते हैं
घांड़ली में रंग-बिरंगे कपड़ों के फूंदे लगाकर उसको आकर्षित बनाया जाता है। इसके साथ ही गाय एवं बैल को भी विशेष रूप से सजाया जाता है। गाय को तो मेहंदी लगाने की परंपरा भी है। इस प्रकार सांझ होते-होते गांव में घी के दीए जलाने की परंपरा शुरू हो जाती है। इसी परंपरा में दिवाली के दिन ही घर में सांझ को गोवर्धन की पूजा भी करने की परंपरा है। गोवर्धन की पूजा करते समय हल, जुआ, पंचगंड़ा गोवर्धन के कंधे पर रखकर पूरा परिवार गोवर्धन पर दीप जलाकर उसकी पूजा-अर्चना करता है।

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मां लक्ष्‍मी के सामने रखते हैं खीर - महा सिंह पूनिया
हरियाणा संग्रहालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय प्रस्तुति के प्रभारी  डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि खेती करने वाले एवं भैंसों की रखवाली करने वाले व्वक्ति को परिवार की ओर से नये कपड़े एवं रुपये आदि भेंट किए जाते हैं। साथ ही खाने के लिए खिलौने एवं मिठाई भी भेंट की जाती है। घर में दिवाली के दिन खीर एवं हलवे की कढ़ाई की जाती है। कढ़ाई से निकला हुआ पहली खीर एवं हलवा देवी-देवताओं के लिए धोक मारते एवं पूजा करते समय लक्ष्मी माता के सामने रखा जाता है।


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