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Kisan Andolan: कृषि कानून विरोधी आंदोलन के कारण रोजाना हो रही घटनाओं से आहत हरियाणा, औद्योगिक संभावनाओं पर असर

Kisan Andolan हरियाणा के किसान के हितों को मर्यादा में रहकर भी भली-भांति आगे बढ़ाया जा सकता है परंतु कृषि कानून विरोधी आंदोलन की आड़ में हिंसक उत्पात एवं मर्यादाहीनता अपने ही शरीर को स्वयं घायल करने जैसा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 13 Nov 2021 10:34 AM (IST)Updated: Sat, 13 Nov 2021 10:56 AM (IST)
Kisan Andolan: कृषि कानून विरोधी आंदोलन के कारण रोजाना हो रही घटनाओं से आहत हरियाणा, औद्योगिक संभावनाओं पर असर
आंदोलन के इस परिवेश में प्रदेश की आर्थिक स्थिति को कितना नुकसान पहुंच रहा है

डा. अभय सिंह यादव। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के कारण रोजाना हो रही घटनाओं के बीच हरियाणा प्रदेश एक अजीब स्थिति से गुजर रहा है। इस आंदोलन ने जिस रूप में पंजाब की सीमाओं से हरियाणा में प्रवेश किया था, उस स्वरूप की प्रकृति एवं प्रवृत्ति ने आंदोलन को अपने लक्ष्य एवं मर्यादाओं से कहीं दूर धकेल दिया है। बार-बार की हिंसक एवं अप्रिय घटनाओं ने न केवल आंदोलन की प्रतिबद्धता एवं विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, अपितु प्रदेश की सामाजिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था के लिए भी यह एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। जिस आंदोलन का आधार किसान हित एवं इससे जुड़ी संवेदनशीलता थी, उस आंदोलन के प्रति आम जनमानस में सहानुभूति की अपेक्षा अब माथे पर चिंता की लकीरें नजर आ रही हैं।

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किसी भी आंदोलन की आधारशक्ति जन सहानुभूति होती है जो इसके प्रति लोगों के दिलों में उत्पन्न हुई संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ती है। यह संवेदना और सहानुभूति स्व-अर्जित शक्ति होती है जो जनता के आत्मा को चीरकर बाहर आती है। इसे न तो प्रयत्नपूर्वक पैदा किया जा सकता है और न ही बलपूर्वक दबाया जा सकता है। ‘किसान’ शब्द एक ऐसे व्यापक समाज के स्वरूप की अभिव्यक्ति है जिसका आधार और उपस्थिति राष्ट्रव्यापी है। अत: किसान आंदोलन के प्रति संवेदना एवं जन समर्थन भी उसी अनुरूप अपेक्षित था। परंतु आंदोलन का स्वरूप और उसका अंदाज जिस तरह से नेताओं की व्यक्तिगत आकांक्षाओं, संकुचित सोच एवं उत्तेजित विचारधारा में सिकुड़ कर रह गया, उसने जनसमर्थन को जन चिंता में परिवर्तित कर दिया। आंदोलन के नीतिकारों ने भूल अथवा व्यक्तिगत अहंकारवश अपनी विचारधारा को जनचेतना पर थोपने की कोशिश में निरंतर जन मर्यादाओं का उल्लंघन किया। वह इस बात को भूल गए कि जनचेतना का स्वरूप और इसकी संरचना व्यक्तिगत विचारधारा से भिन्न होती है। अत: आंदोलन के प्रारंभ में जिस जन समर्थन की उम्मीद थी, वह निरंतर दूरियां बनाता चला गया।

आंदोलन के इस अंदाज ने वर्तमान की इस स्थिति से कहीं अधिक भविष्य के लिए अनेक चुनौतियों की आशंका को जन्म दिया है। कानून व्यवस्था का मूलाधार कानून के प्रति आस्था एवं सम्मान होता है और यही कानून की शक्ति नियंत्रक की भूमिका निभाती है। कानून की भूमिका परिवार के उस मुखिया की तरह होती है जिसके इशारे से परिवार संचालित होता है। इसी तरह कानून का आभास मात्र ही शासन व्यवस्था की शक्ति का स्रोत है जो इसे संचालित करता है। परंतु किसान आंदोलन में प्रदेश की कानून व्यवस्था की यह शक्ति घायल हुई है। रोजमर्रा की इन घटनाओं ने कानून के प्रति आस्था को गहरा घाव दिया है जिसे भरने की कोई समय सीमा दिखाई नहीं देती है। जिस तरह से बार-बार कानून व्यवस्था को तार-तार किया जा रहा है, वह एक गंभीर चुनौती है। कानून के प्रहरी पुलिस की स्थिति को वर्तमान में तो सरकार का धैर्य मात्र कहकर हम क्षणिक विराम दे सकते हैं, परंतु इस स्थिति के गर्भ में भविष्य की अराजकता की चुनौती झांक रही है। वास्तव में आंदोलन किसी भी मुद्दे पर असहमति की अभिव्यक्ति तक तो उचित है, परंतु यह असहमति जब अराजकता का रूप ले ले, तो ऐसी स्थिति आत्मघाती होती है। किसी को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वर्तमान माहौल मात्र किसी पार्टी विशेष या सरकार विशेष के विरुद्ध है।

यह भी सत्य है कि सामाजिक समरसता जो समाज की प्राणवायु है, वह भी समानता एवं आपसी भाईचारे के आधार पर विकसित होती है। समाज के हर वर्ग को अपनी इच्छा के अनुसार फैसले लेने एवं आजादी के साथ जीने का अधिकार है। परंतु जब समाज के लोगों पर अपनी सोच थोपने का दबाव बनाया जाता है तो मन में भ्रांति एवं असुरक्षा पैदा होती है। यह प्रवृत्ति सामाजिक दूरियों का कारण और समाज के विघटन का वाहक बनती है। इस तरह का माहौल सामाजिक ताने-बाने को क्षत विक्षत कर रहा है। यह अपने आप में चिंता का विषय है।

इसके साथ ही इस आंदोलन से उत्पन्न प्रदेश की आर्थिक पीड़ा से भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था कराह उठी है। इसने न केवल प्रदेश के बहुत बड़े हिस्से में औद्योगिक गतिविधियों को पंगु बना दिया है, अपितु प्रदेश के भविष्य की औद्योगिक संभावनाओं को भी धूमिल कर दिया है। कोई भी उद्योगपति अपनी पूंजी के निवेश के लिए सबसे पहले शांति और सद्भाव को पसंद करता है। आज के हालात में जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं वह प्रदेश में निवेश के दरवाजे बंद करने वाली हैं। इसका खमियाजा प्रदेश को आंदोलन के समाप्त होने के उपरांत भी भुगतना पड़ेगा। हरियाणा जैसे समर्थ व समृद्ध प्रदेश को बनाने में किसान समेत हर वर्ग की महती भूमिका रही है। प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद विभिन्न सरकारों ने अपने अपने तरीके से प्रदेश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परंतु आंदोलन के इस परिवेश में प्रदेश की आर्थिक स्थिति को कितना नुकसान पहुंच रहा है, इस बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।

[सदस्य, हरियाणा विधानसभा]


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