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गोबर ढोती बेटी का बनाया था मजाक, भाई से जूडो सीख सीमा सुरक्षा बल में पाई नौकरी

गांव में मां के साथ गोबर के उपले बनाती और घर का कामकाज संभालती। गांव के परिचित ने एक दिन तंज कसा दिया- ये तो अनपढ़ रहेगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 19 Mar 2020 10:05 AM (IST)Updated: Thu, 19 Mar 2020 05:06 PM (IST)
गोबर ढोती बेटी का बनाया था मजाक, भाई से जूडो सीख सीमा सुरक्षा बल में पाई नौकरी

विजय गाहल्याण, पानीपत। हरियाणा के छाजपुर गांव की यह बिटिया सैन्य वर्दी पहनने वाली गांव की पहली बेटी है। जो कभी पढ़ाई छोड़कर पशुओं को चारा डालने और उपले बनाने में व्यस्त रहती थी, आज प्रेरणा बन गई है। आठवीं क्लास के बाद मिथलेश की पढ़ाई छूट गई। गांव में मां के साथ गोबर के उपले बनाती और घर का कामकाज संभालती। गांव के परिचित ने एक दिन तंज कसा दिया- ये तो अनपढ़ रहेगी।

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गोबर ही उठाएगी...। बात मन में घर कर गई। बड़ा भाई प्रमोद जूडो खेलता था। उसी से जूडो सीखने लगी। पढ़ाई भी शुरू कर दी। उस ताने का जवाब देना था। गांव की बेटी ने जूडो से तानों को धो डाला। राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते और अंतत: खेल कोटे से ही सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हो गई। वह अपने गांव की पहली ऐसी बेटी है, जो यहां तक पहुंची। मिथलेश की बदौलत पानीपत के इस गांव में माहौल बदल गया है। अभिभावक अपनी बेटियों को खेल के मैदान पर भेज रहे हैं।

लोग अब मिथलेश के भाई प्रमोद की भी तारीफ कर रहे हैं, जिसने बहन को कमतर नहीं आंका और हौसला बढ़ाया। मिथलेश रावल की राह आसान नहीं थी। छह भाई- बहनों में चौथे नंबर की इस बेटी ने आठवीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी। दरअसल, घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। लेकिन बेटी की जिद देख पिता पालेराम ने भी ठान लिया कि बेटी को आगे पढ़ाएंगे और खेलने भी भेजेंगे। इसके लिए उन्होंने एक एकड़ जमीन बेच दी। रिश्तेदार नाराज हो गए, कहते रहे कि बेटी पर धन लुटा रहे हो। पढ़ाई-लिखाई और खेल में कुछ नहीं रखा है। ये परिवार की शान के खिलाफ है। पालेराम ने उनसे बोलचाल बंद कर दिया। पिता और भाई ने किसी की नहीं सुनी और मिथलेश को हरसंभव साधन मुहैया कराए। मिथलेश ने भी निराश नहीं किया, जमकर पदक जीते।

2017 में सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हो गई। अब रिश्तेदारों ने भी आना-जाना शुरू कर दिया है। वही लोग तारीफ के पुल बांधते नहीं थकते। 24 वर्षीय मिथलेश ओगोशी दांव लगाने में माहिर है। ये दांव पीठ पकड़कर लगाया जाता है। कुश्ती में इस दांव को ढाक कहते हैं। वह हर रोज इसी दांव का 150 बार अभ्यास करती है। कोई खिलाड़ी इस दांव में फंस जाए तो उसे जमीन पर पटकने में देर नहीं लगाती। स्कूल स्टेट जूडो चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में तीन स्वर्ण पदक, ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में एक स्वर्ण, दो रजत और ऑल इंडिया पुलिस गेम्स में रजत पदक जीत चुकी हैं।

अब छाजपुर गांव की मोनी ने मिथलेश को देखकर ही खेलना शुरू किया। जूडो की राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में रजत पदक जीता है। इसी तरह आस्था भी जूडो खेलने लगी। गांव की मंजू और रेशमा ने भी खेलना शुरू किया है। मोनी के पिता राजेंद्र ने बताया कि अब मिथलेश से प्रेरित होकर माता-पिता अपनी बेटियों को खेल के मैदान में भेज रहे हैं। स्कूल भी नहीं छुड़वा रहे। छाजपुर से जूडो खिलाड़ी निकलने लगे तो इस गांव के पास ही एक स्कूल में सरकार की ओर से कोचिंग सेंटर बना दिया गया है। यहां पर छाजपुर खुर्द, छाजपुर कलां, निंबरी, सनौली व आसपास के 15 गांवों के खिलाड़ी जूडो का अभ्यास करते हैं।


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