जींद की बेटी ने मुश्किल रास्तों से हासिल की मंजिल, बनी स्कीइंग की चैंपियन
जींद की बेटी विकास राणा ने कश्मीर के गुलमर्ग में हुए विंटर गेम्स में पांच व दस किलोमीटर नोर्डिक स्कीइंग में दो गोल्ड मेडल जीते।
पानीपत/जींद, [कर्मपाल गिल]। ऐसा जिला जिसे अन्य जिलों के लोग परिहास में हरियाणा का सबसे बड़ा गांव बताते हैं। वहीं के एक गांव सदकैन खुर्द की लड़की विकास राणा। उसने खेल में अपना करियर चुना। वह भी कुश्ती और कबड्डी जैसे खेलों में नहीं। स्कीइंग में। पहाड़ों में बर्फ पर होने वाला ऐसा खेल, जिसका नाम भी हरियाणा के ज्यादातर लोग नहीं जानते।
हाल ही में कश्मीर के गुलमर्ग में हुए विंटर गेम्स में पांच व दस किलोमीटर नोर्डिक स्की में उसने दो गोल्ड मेडल जीते हैं। विपरीत परिस्थितियों से लड़कर, खुद का विकास कर चैंपियन बनने वाली राणा इतने से संतुष्ट नहीं है। उसकी आंकाक्षा है स्कीइंग के विंटर ओलंपिक में वह देश की झोली में गोल्ड मेडल डाले।
हरियाणा के ठेठ ग्रामीण माहौल में पली बढ़ी विकास राणा का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। पिता छोटे किसान हैं। स्कीइंग काफी महंगा खेल है। एक दिन का रहने-खाने का खर्च 1500 रुपये है। इसी कारण उसने विवशतावश 2019 ने इसे छोडऩे का मन बना लिया था।
कहते हैं कि जो सतत प्रयास करते हैं, उनकी सहायता करने के लिए कोई न कोई फरिश्ता आ जाता है। वर्ष 2020 में इंडियन ऑयल कंपनी लिमिटेड उसके लिए फरिश्ता बनकर आई। कंपनी ने विकास को स्पांसर किया। विकास ने भी कंपनी के भरोसे को नहीं तोड़ा और दो-दो गोल्ड मेडल जीत लिए।
फूफा-बुआ की मेहनत रंग लाई
विकास का स्कीइंग से जुडऩे का किस्सा भी प्रेरक है। वह बताती हैं कि वह बचपन से ही भिवानी के गांव खरक में बुआ व फूफा के पास रही है। फूफा खेम सिंह आर्मी में थे। उनके दो बेटे व एक बेटी है। वह चाहते थे कि उनके बच्चे भी कुछ बनें। दोनों बेटों को फौज में भर्ती कराना चाहते थे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसी तरह बेटी ने भी स्टाफ नर्स का कोर्स किया, लेकिन सरकारी नौकरी नहीं लगी। इससे फूफा जी के मन में टीस थी। वह मुझे अपना ही बच्चा समझते थे। कहते थे अब तूं ही मेरा नाम रोशन करेगी।
विकास बताती हैं, जब वह दसवीं में पढ़ती थी, तब फूफा जी खेतों के रास्ते में मेरी दौड़ करवाते। वह खुद मोटरसाइकिल चलाते और मैं पीछे-पीछे पैदल दौड़ती थी। सुबह-शाम पांच-पांच किलोमीटर की रनिंग करवाकर उन्होंने मुझे काफी मजबूत बना दिया था। बारहवीं करते ही फूफा ने उसका दाखिला पहलगाम में जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग विंटर स्पोट्र्स में करवा दिया। यहां से स्कीइंग का बेसिक व एडवांस कोर्स किया। यहीं रहकर प्रैक्टिस की।
वर्ष 2015 व 2016 में नेशनल गेम्स में भाग लिया, लेकिन पोजीशन नहीं मिली। वर्ष 2016 में चौथा स्थान आया और एशियन गेम्स के लिए चयन हो गया। फरवरी 2017 में जापान के स्पैरो में एशियन गेम्स खेलने गई, लेकिन कोई पदक नहीं मिला। भारत आते ही नेशनल गेम्स में सिल्वर मेडल जीता।
इंडिया बुक में रिकॉर्ड दर्ज
विकास राणा वर्ष 2018 में समाज व अन्य लोगों की आर्थिक मदद से दक्षिण अफ्रीका की किलिमंजारो चोटी पर चढ़ी और वर्ष 2018 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस को फतह किया। खास बात यह कि वह एल्ब्रुस पर्वत की 5895 मीटर की ऊंचाई से स्कीइंग करते हुए नीचे आई। ऐसा साहसिक कारनामा करने वाली वह देश की पहली खिलाड़ी बनी और उनका नाम इंडिया बुक रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। विकास कहती हैं कि इतनी ऊंचाई से नीचे आना काफी जोखिम भरा था। हार्ड स्नो के कारण गिरने के काफी चांस होते हैं, लेकिन ठान लिया था कि कुछ अलग करना है।
दिल्ली की तरफ से खेली
विकास ने बताया कि स्कीइंग करने वाली वह हरियाणा की इकलौती खिलाड़ी है। बावजूद इसके हरियाणा सरकार ने उसे अब तक न तो नौकरी दी है और न आर्थिक मदद। पिता इतने महंगे खेल का खर्च नहीं उठा सकते थे। इसलिए वह 2019 में प्रैक्टिस नहीं कर सकी और नेशनल गेम्स में छठी पोजीशन आई। अब 2020 में इंडियन ऑयल ने उसे नेशनल खेलो इंडिया विंटर गेम्स में स्पांसर किया और उसने दिल्ली टीम की कप्तानी की। खेल के जुनून के चलते ही उसने पांच व दस किलोमीटर नोर्डिक क्रास कंट्री में गोल्ड मेडल जीते। दिल्ली की तरफ से मेडल जीतने वाली वह अकेली खिलाड़ी है।
माइनस 15 डिग्री में स्कीइंग
गुलमर्ग में मौजूद विकास ने फोन पर दैनिक जागरण को बताया कि स्कीइंग विंटर ओलंपिक गेम है। स्नो बाइक, स्केटिंग, स्नो स्कीइंग ये बर्फ पर खेले जाते हैं। स्कीइंग करते समय दोनों पैरों के नीचे लकड़ी के स्कीज पहनकर बर्फ पर फिसलते हैं। हाथों में स्टिक होती है। चोट लगने का भी खतरा रहता है। अभी गुलमर्ग में माइनस 2 डिग्री तापमान है। कई बार माइनस 15 डिग्री तापमान में भी प्रैक्टिस करनी होती है।