पत्थर फेंकते उग्राखेड़ी का विक्रांत बना जैवलिन थ्रोअर, रिकॉर्ड तोड़ा
कौन कहता है आसमा में सुराध नहीं होता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
विजय गाहल्याण, पानीपत : कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ये पंक्तियंा उग्राखेड़ी के विक्रांत मलिक पर सटीक बैठती हैं। ऐसा ही एक पत्थर विक्रांत (21) ने आठ साल पहले गांव के स्टेडियम में फेंका। एथलेटिक्स में नेशनल चैंपियन रहे सेवानिवृत्त फौजी पिता राजेंद्र सिंह मलिक की इस पर नजर पड़ी। तभी से उन्होंने बेटे को जैवलिन थ्रोअर बनाने की ठान ली। खेल विभाग से जैवलिन नहीं मिली तो तीन लाख रुपये खर्च करके आठ जैवलिन खरीदी और गांव में बेटे का अभ्यास कराया। विक्रांत ने पिता की उम्मीद पर खरा उतरते हुए 14 नवंबर को कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में आयोजित एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 73.85 मीटर जैवलिन थ्रो करके छह साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। पहले 69.12 मीटर का रिकॉर्ड राजकीय कॉलेज छछरौली (यमुनानगर) के गौरव नेहरा के नाम था।
कोहनी के दर्द की वजह से किए दो थ्रो, चार और करता तो रिकॉर्ड में इजाफा होता
एसडी पीजी कॉलेज के एमए अंग्रेजी के अंतिम वर्ष के छात्र विक्रांत ने बताया कि एक महीने से वह लगातार 70 मीटर से ज्यादा जैवलिन थ्रो कर रहा था। उसे उम्मीद थी कि यूनिवर्सिटी गेम्स में उसका थ्रो स्वर्ण पदक पर लगेगा। रिकॉर्ड तोड़ने का यकीन नहीं था। न ही उसे रिकॉर्ड के बारे में पता था। वह दो थ्रो ही कर पाया था कि दाहिनी कोहनी में असहनीय दर्द हो गया। थ्रो के बाद कोच ने बताया कि रिकॉर्ड उसके नाम हो गया है। इसके बाद वह थ्रो नहीं कर पाया। अगर चार थ्रो और करता तो रिकॉर्ड में और सुधार हो सकता था। हर रोज 110 थ्रो करता है जोहनस वैटर का मुरीद
विक्रांत ने कहा कि वह विश्व विख्यात जर्मनी के जैवलिन थ्रोअर जोहनस वैटर का मुरीद है। उन्हीं की तरह थ्रो करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना चाहता है। यह आसान तो नहीं, लेकिन असंभव भी नहीं। वह रोज तकनीक सुधार के लिए 110 थ्रो करता है। इसके लिए यू ट्यूब पर वैटर के थ्रो करने के स्टाइल को भी अपनाता है। अब उसका लक्ष्य 2 से 6 जनवरी 2020 में बंग्लुरु में होने वाली आल इंडिया यूनिवर्सिटी में स्वर्ण पदक जीतना है। इसके लिए प्रतिदिन सात घंटे अभ्यास कर रहा है। घर में खोल दिया जिम, बेटे को बनाना है सैनिक
नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 और 800 मीटर दौड़ में सात पदक जीत चुके जाट रेजिमेंट से हवलदार पद से सेवानिवृत्त राजेंद्र सिंह मलिक का कहना है कि गांव के स्टेडियम में जिम नहीं था। बेटे को अभ्यास करने में दिक्कत हो रही थी। इसी वजह से घर पर ही जिम बना दिया है। इससे बेटे के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। वह बेटे को सैनिक बनाना चाहता है। ये सपना भी बेटा पूरा करेगा।
ये है विक्रांत की सफलता
-ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक।
-जूनियर नेशनल एथलेटिक्स प्रतियोगिता में दो रजत पदक।
-कुरुक्षेत्र यूनवर्सिटी एथलेटिक्स स्पर्धा में दो स्वर्ण पदक।
-राज्य स्तरीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पांच स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक।