सरस्वती की पुकार...., मुझे भी जीवनधारा दो भागीरथ
पवित्र सरस्वती नदी हरियाण क्या पूरे देश के लोगों की भावनाओं से जुड़ी है। नासा और इसरो के शोध से पुष्टि हो गई है कि यह जमीन के नीचे बह रही है। उसे धरातल पर लाने की प्रतीक्षा है।
जेएनएन, पानीपत। भाजपा सरकार का नारा गाय, गीता और गंगा है। यही कारण था कि वर्ष 2014 मेें मनोहरलाल के नेतृत्व में हरियाणा सरकार बनी तो सरस्वती के उद्धार की उम्मीद जगी। बजट का निर्धारण हुआ, काम भी शुरू हुआ। यमुनानगर के आदिबद्री में कई बड़े आयोजन हुए। पहाड़ों से मैदानी उद्गम स्थल पर पूजा-अर्चना का दौर भी चला, लेकिन कुछ दिन बाद स्थिति फिर बदल गई। सरस्वती के धरा पर उतरने की उम्मीदें धूमिल हो गईं।
कुछ दिन खोदाई होने के बाद काम बंद हो गया और करीब 55 लाख बहा दिए गए, लेकिन सरस्वती की एक भी धारा नहीं फूटी। ऐसे में एेसा लगता है सरस्वती की धारा को धरा पर लाने के लिए किसी भागीरथ की जरूरत है। सरस्वती की अविरल धारा के लिए एक बांध बनाए जाने की कवायद है, लेकिन इस नदी के पुनर्जीवन पर अभी संशय ही है।
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मुस्लिम दंपती के फावड़े से फूटी थी धारा
यमुनानगर में खोदाई शुरू होने के ढाई वर्ष बीत जाने के बावजूद पवित्र सरस्वती नदी की कोख प्यासी है। मनरेगा परियोजना के तहत हुई खोदाई पर अब तक करीब 55 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल सहित प्रदेश के अन्य मंत्री खोदाई का जायजा लिया। 21 अप्रैल 2015 को नदी की खोदाई का कार्य बिलासपुर के रुलाहेड़ी गांव से शुरू हुआ। नदी खोदाई करने वाले मुस्लिम दंपती सलमा और रफीक के फावड़े से सात फीट पर पानी सरस्वती नदी की धारा फूट पड़ी तो लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। आज यहां पर कुंड बना हुआ है। इस जगह पर कई हस्तियां आ चुकी हैं आैर आजमन व पूजा-अर्चना कर चुके हैं। इस सबके बावजूद सरस्वती नदी की पवित्र धारा का आलज भी इंतजार है।
सरस्वती की धारा को धरातल पर लाने को खोदाई करते लोग।
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दर्शनलाल : एक भागीरथ यह भी
दर्शनलाल को अगर सरस्वती नदी का भागीरथ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्होंने न केवल पौराणिककालीन इस पवित्र नदी के उद्गम स्थल को ढूंढ़ निकाला, बल्कि उसे प्रवाहित करने के लिए जी-जान लगा दी। 85 वर्षीय दर्शनलाल जैन बताते हैं कि अक्सर विद्वान सरस्वती नदी को लेकर चर्चा करते थे। यमुनानगर के आदिबद्री क्षेत्र में इस पवित्र नदी का प्रवाह होने की बात करते थे।
उन्हाेंनेब बताया कि विद्वत चर्चा के दौरान उनके मन में भी ख्याल आता था कि सरस्वती नदी के लिए कुछ करें। इसी बीच एक वाकया हुआ कि जिसने इस विचार को दृढ़ निश्चय में बदल दिया। अब सरस्वती नदी के उद्गम स्थल को लेकर उनकी जिज्ञासा और बढ़ गई। उन्होंने पुराणों का शोध और अध्ययन शुरू कर दिया। पुराणों में वर्णित स्थानों पर उन्होंने उद्गम स्थल की तलाश शुरू की।
उन्होंने बताया कि आदिबद्री की पहाडिय़ों में उन्होंने कई दिन बिताए। जिसके बाद उन्हें पहाड़ी में से एक धारा निकलती दिखाई दी। इसके बाद उन्होंने पुरातत्वविदों के सहयोग से पाया कि यही सरस्वती की धारा है।
दर्शनलाल जैन (बाएं)। खोदाई के बाद बनाए गए सरस्वती कुंड में आचमन करते रामबिलास शर्मा।
जैन बताते हैं कि अमेरिका द्वारा उपग्रह से लिए चित्र में सरस्वती नदी का पैलियो चैनल आदिबद्री में ही मिलता है। इसके बाद उन्होंने 1999 में सरस्वती नदी शोध संस्थान का गठन किया और प्रथम अध्यक्ष चुने गए। उनके प्रयास से ही 24 अप्रैल 2000 को तत्कालीन राज्यपाल महावीर प्रसाद आए और उद्गम स्थल का विकास कार्य शुरू हुआ।
वर्ष 2004 में केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोहन के प्रयास से सरस्वती सरोवर के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए। केंद्र के सहयोग से प्रदेश सरकार सरस्वती को फिर नदी के रूप में प्रवाहित करने के कार्य में जुट गई। आदिबद्री से लेकर पिहोवा तक खुदाई की योजना बनी जो पिपली में आकर ठप हो गई। जैन बताते हैं कि राज्य सरकार व ओएनजीसी के साथ वर्ष 2008 में बैठक हुई थी, जिसमें निर्णय हुआ था कि इस पर शीघ्र कार्य शुरू किया जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। वे ओएनजीसी अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं। उम्मीद है कि मेहनत खाली नहीं जाएगी।
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ऋग्वेद में सबसे श्रेष्ठ नदी का जिक्र
ऋग्वेद में सरस्वती को नदियों में श्रेष्ठ, माताओं में श्रेष्ठ व देवियों में श्रेष्ठ कहा गया है। वैदिक कालीन सभ्यताएं इस नदी के किनारे ही पनपी व विकसित हुई। मान्यता है कि ऋग्वेद व अन्य तीनों वेद और महाग्रंथ महाभारत की रचना भी इसी नदी के तट पर हुई। देवासुर संग्राम तथा भारत का प्रथम दासराग्य युद्ध भी इसी नदी के किनारे हुआ। यहीं पर ऋषि दधिचि ने अपनी अस्थियां वज्र निर्माण के लिए इन्द्र को प्रदान कीं।
यह भी माना जाता है कि सरस्वती नदी व इसकी सहायक दृहषावती नदी के किनारे हड़प्पाकालीन सभ्यताओं का उदय, विकास व विनाश हुआ। आदिबद्री नामक स्थान पर यह नदी पर्वतों से निकलकर मैदानों में प्रवेश करती थी और इसी नदी के किनारे दसवीं से बारहवीं सदी के बौद्ध स्मारक उत्खनन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खोज निकाले।
जानकारों का कहना है कि बाद में हिमालय और शिवालिक के ऊपर उठने के कारण इसका बर्फ से प्राप्त होने वाला जल रुक गया और महाभारत काल तक आते-आते इसमें बहुत कम जल रह गया। इसकी पुष्टि बलराम के तीर्थाटन से होती है। महाभारत काल के बाद धीरे-धीरे यह नदी सूखती चली गई और सरस्वती नदी में बहुत कम जल शेष रह गया।
सरस्वती, उसकी सहायक नदी दृषदवती व अन्य सहायक नदियों के लुप्त होने के कारण यह क्षेत्र शुष्क हो गया। लहलहाती फसलें समाप्त हो गईं। इसके किनारे रहने वाली सभ्यताएं नष्ट हो गईं। इसका स्पष्ट प्रमाण इलाहाबाद में प्रचलित त्रिवेणी गंगा, यमुना, सरस्वती की पौराणिक अवधारणा से होता है। इलाहाबाद में सरस्वती नदी को अंत:सलिला कहा जाता है जबकि वह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती।
पद्मश्री वीएस वाकणकर और सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन के नेतृत्व में सरस्वती के पुन: उद्धार का प्रयास किया जा रहा है। यह नदी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र के पर्वतीय भाग से निकलकर यमुनानगर, अंबाला व कुरुक्षेत्र, कैथल व जींद जिले से होते हुए जाती थी।
यमुनानगर की बात की जाए तो 47 गांवों से होकर निकलेगी और इसकी लंबाई करीब 35 किलोमीटर है। यहां आदिबद्री में उद्गम स्थल पर सरस्वती बूंद-बूंद के रूप में बह रही है, लेकिन संधाय, आंबवाला, भीलछप्पर, ककड़ौनी, पीरुवाला, मुस्तफाबाद, साढौरा सहित अन्य कई स्थानों पर सरस्वती प्रकट रूप में है। पानी का बहाव न होने के कारण कई जगह तो गंदे नाले में तब्दील होकर रह गई हैं।
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सेटेलाइट से हुआ था सर्वे
वर्ष 1980 में नासा ने सर्वे किया था और कुछ सेटेलाइट तस्वीरें जारी की। इसमें यह दिखाया गया कि जमीन के नीचे सरस्वती नदी बह रही है। इसके बाद 1990 में नासा ने फिर से इस प्रोजेक्ट पर काम किया। नासा का जो मैप आया, उसमें जमीन के नीचे आदिबद्री से लेकर राजस्थान तक में सरस्वती नदी व इसके चैनल को दर्शाया गया। वर्ष 1993 में इसरो ने इस पर काम किया। रिपोर्ट में कहा कि सरस्वती है। सर्वे ऑफ इंडिया के 1965 के नक्शे में भी सरस्वती नदी का जिक्र है। हरियाणा के राजस्व रिकॉर्ड में भी सरस्वती नदी मौजूद है।
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अतिक्रमण के दर्द से कराह रही
सरस्वती नदी लड़े भी तो किससे? जिन लोगों के ऊपर इसे बचाने का जिम्मा है वही इससे पल्ला झाड़ रहे हैं। यह स्थिति हो रहे अवैध निर्माण व कट रही कॉलोनियां बयां कर रही हैं। लोगों ने हद पार करते हुए सरस्वती नदी के बीचोंबीच कब्जा कर लिया जैसा कि कुरुक्षेत्र के झांसा रोड पर भद्रकाली मंदिर के आगे सरस्वती पुल के पास देखा जा सकता है। सरस्वती भले ही विलुप्त हो चुकी है लेकिन जिस भूभाग से वह होकर बहती थी आज भी रेवेन्यू रिकॉर्ड में उसके नाम हैं।
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हाई कोर्ट ने दिया था कब्जा हटाने का आदेश
सरस्वती नदी के भूभाग पर हो रहे कब्जे के खिलाफ वर्षों पहले पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर 1996 में फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि नदी की जमीन से कब्जा हटाया जाए। पिहोवा में कुछ जगह कब्जा हटाया भी गया, लेकिन कुरुक्षेत्र व पिपली में कार्रवाई नहीं हुई।
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बांध बनाए जाने की योजना
सरस्वती नदी में पानी के निरंतर बहाव के लिए सरस्वती हेरिटेज बोर्ड की ओर से उद्गम स्थल पर बांध बनाए जाने की योजना है। इस पर करीब 110 करोड़ रुपये खर्च होंगे और करीब 88 एकड़ में बनाया जाएगा। बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक इस परियोजना पर हरियाणा व हिमाचल दोनों राज्यों की सरकारें मिलकर काम कर रही हैं।
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यहां बह रही मीठे जल की धारा
कलायत के कपिलमुनि मंदिर में यह मीठे जल की धारा बनकर जमीन से फूट रही है। कलायत के प्राचीन श्री कपिल मुनि सरोवर में वर्ष 2006 में सूखे सरोवर में सरस्वती विभिन्न स्थानों से अचानक फूटी थी। उस दौरान कुछ समय ही में सरोवर स्वच्छ जल से लबालब हो गया था। 20 दिन से सरोवर के पानी की निकासी में लगे सिंचाई विभाग को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार दिन-रात निकासी के बाद भी जलस्तर घट क्यों नहीं हो रहा है।
सुबह श्रद्धालुओं के साथ सरोवर की परिक्रमा कर रहे मुख्य पुजारी वेद प्रकाश गौतम को अचानक तेज बहाव से पानी बहने की आवाज सुनी। जब उन्होंने जंगली वनस्पति के पास जाकर देखा तो वे हैरान रह गए। श्मशान घाट के साथ लगते सरोवर के हिस्से से पानी निकल रहा था। प्राकृतिक स्रोत के उद्गम से श्रद्धालु उत्साहित नजर आए और पूजा अर्चना शुरू कर दी।
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छह साल तक संरक्षित रखा जल
नित सरोवर तट पर पूजा अर्चना के लिए आने वाले विपिन गर्ग ने बताया कि वर्ष 2006 में उन्होंने सरस्वती का जल एक बर्तन में जमा किया था। छह साल तक जल स्वच्छ रहा। इसमें सुनहरी रेत के कण विद्यमान थे।
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इस कारण लुप्त हुई सरस्वती नदी
सरस्वती नदी के लुप्पत होने के लिए पानी की कमी और भूकंपों को ही प्रमुख जिम्मेवार माना जा सकता है। कुछ भूगर्भीय शोध ऐसा संकेत करते हैं। कैथल पटियाला मार्ग पर सीवन से तीन किलोमीटर दूर सरस्वती नदी के तट पर बसा पोलड़ गांव अतीत की धरोहर छिपाए है। ऐतिहासिक सरस्वती नदी के किनारे पर बने मंदिर, शिवालयों के नाम पर निशान बचे थे अब वे भी समाप्त हो चुके हैं।
अब मेले भी नहीं लगते
सीवन से तीन किलोमीटर दूर रावण के वंशज पौलिस्त मुनि की तपोस्थली होने के कारण इस गांव का नाम पोलड़ पड़ा। सरस्वती नदी के किनारे पर बने सरस्वती मंदिर के तट पर कभी भारी रौनक होती थी। साल में दो बार मेला लगता था। धीरे धीरे मेले भी बंद हो गए।
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'' सरस्वती नदी में निरंतर बहाव को सुनिश्चित करने के लिए सरकार प्रयासरत है। खोदाई से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर कार्य किया जा रहा है। खोदाई पर कितना खर्च हुआ, इसका रिकॉर्ड सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के पास नहीं है।
- हंसराज शर्मा, एक्सईएन, सरस्वती हेरिटेज बोर्ड।
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