पद्मावती से ही नहीं बू अली शाह कलंदर से भी खिलजी को मिली थी मायूसी
इतिहास में क्रूर शासक के रूप में जाना जाने वाला अलाउद्दीन खिलजी बू अली शाह कलंदर से निकटता चाहता था, लेकिन कलंदर कभी उसके आगे नहीं झुके।
पानीपत [रवि धवन]। अलाउद्दीन खिलजी। सात सौ साल पहले क्रूर शासक के रूप में विलेन था। इतिहास के पन्नों में सिमट गया, लेकिन आज फिर निकल आया है। पहले से भी बड़ा विलेन बनकर। पद्मावती फिल्म पर हुए विवाद के कारण। 14वीं सदी में साम्राज्यवाद प्रवृत्ति का ऐसा शासक, जिसकी वजह से 21वीं सदी में उसके जीवन की एक घटना पर बनी फिल्म रिलीज नहीं हो पा रही है।
वैसे खिलजी को सिर्फ पद्मावती से मायूसी हाथ लगी थी, ऐसा नहीं है। मायूसी तो उसे पानीपत के बू अली शाह कलंदर ने भी दी थी। क्या आप यकीन करेंगे, अपने चाचा की हत्या कर गद्दी पर बैठा ये क्रूर शासक कभी अपनी छवि बदलने के लिए भी लालायित था। बू अली शाह कलंदर की चौखट पर उसने अपने सबसे खास दरबारी कवि, संगीतकार अमीर खुसरो को उपहारों के साथ भेजा था।
उसने ये समझ लिया था कि अगर जनता में अपनी छवि बनानी है तो सूफी-संतों, जनकवियों को अपने साथ लेकर चलना होगा। ये सूफी ही जनता के बीच उसकी छवि ठीक कर सकते थे। यही वजह थी कि अमीर खुसरो जैसे कवि, गायक और संगीतकार उसके दरबार के प्रमुख हिस्सा था। आइये, पढ़ते हैं, खिलजी, बू अली शाह कलंदर और अमीर खुसरो से जुड़े कुछ किस्से और कहानियां, जो शायद संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत न हों।
फिर भी खिलजी ने नहीं मानी मौलानाओं की बात
खिलजी वंश का दूसरा शासक था अलाउद्दीन। राज करने की चाह में उसने ऐसी कई व्यवस्थाएं की, जिसकी वजह से आने वाले तीन सौ साल तक किसी का इतना बड़ा साम्राज्य नहीं हुआ। उसने अपना राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला लिया था। एक बार कुछ कट्टर मौलानाओं ने खिलजी से कहा कि पानीपत का बू अली शाह कलंदर इस्लाम के विरोध में बात कहता है। वह शरीयत को नहीं मानता। उसका सिर धड़ से अलग कर देना चाहिए, लेकिन खिलजी ने उनकी बात नहीं मानी। उसे पता था कि बू अली शाह जैसे संत का अपमान उसके लिए अच्छा नहीं होगा। बू अली शाह कलंदर जनता के दिलों में तो बसे ही थे, उनकी ख्याति अन्य समकालीन विदेशी शासकों के बीच भी थी। उनकी एक कविता है...
सजन सकारे जाएंगे
नयन भरेंगे रोये
विधना ऐसी रैन करे
भोर कदी न होये।
अर्थात : सुबह होते ही महबूब चले जाएंगे। आंखों से आंसू ही आंसू बहेंगे। भगवान, ऐसा कुछ करे कि सुबह ही न हो।
इस सूफी के पास मुस्लिम ही नहीं, हिंदू भी अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते। उनके प्रति बढ़ती आस्था से कट्टर मौलाना परेशान थे। खिलजी ने सोचा कि कलंदर के माध्यम से अपनी छवि को विनम्र किया जा सकता है। तब उसने अपने सबसे खास शायर अमीर खुसरो को पानीपत भेजा।
खुसरो ने समझ लिया खिलजी से ज्यादा अमीर हैं शाह
जिस खिलजी से सब थर्राते हों। जो छोटी सी बात पर सिर धड़ से अलग करने का फरमान जारी कर देता हो। उस क्रूर शासक से बू अली शाह कलंदर बिल्कुल नहीं घबराए। ये जानते हुए भी इस्लाम का मुखौटा पहनकर खिलजी हिंदुस्तान में हिंदुओं को काफिर बोलकर मरवा देता है। जब कट्टर मौलाना संगीत को इस्लाम विरोधी कहते थे, तब कलंदर अपने पड़ोसी को बुलाकर गजल सुनते। कलंदर को जब ये पता चला कि खिलजी ने उनके लिए उपहार भेजे हैं, तब वह छत पर थे। उसी समय नीचे अमीर खुसरो खड़ा था। उस समय कलंदर साहब गा रहे थे वहीम खुसरवां वराआं फेले अस्तरस्त, खुसरो कसे के खल अत एतजरीद दर बरस्त।
अर्थात जिसने अकिंचनता का राज पा लिया है. उसके लिए बादशाहों के ताज जूतियों के तले के नीचे हैं। बुजुर्गाने पानीपत के लेखक के अनुसार इसे सुनकर खुसरो रोने लगा था। दरअसल, कलंदर साहब तो सुल्तानों और बादशाहों के ताज को अपनी जूती के नीचे समझते थे। खुसरो तो खुद सुल्तान के दरबारी थे। जब उन्होंने अपनी हैसियत जूती से भी नीचे समझी तो बहुत देर तक रोते रहे। कलंदर साहब ने उन उपहारों को जनता में बंटवा दिया। खिलजी को अपनी प्रशंसा की उम्मीद थी, पर ये उपहार काम नहीं आए।
खुसरो ने गुरु निजामुद़दीन से सुनी थी ख्याति
अमीर खुसरो, हजरत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे। उनका प्रथम उर्दू शायर तथा उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा ख्याल के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। हजरत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उर्स (मेले) होते हैं।
एसडी कॉलेज से हिंदी विभाग से रिटायर्ड प्रो.डॉ.राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी के अनुसार, निजामुद्दीन ने एक बार बू अली शाह कलंदर की बेहद प्रशंसा की। उनकी कविताओं के वह मुरीद हो गए। अपने गुरु से कलंदर साहब की तारीफ सुनी तो खुसरो एक बार कलंदर साहब से मिलना चाहते थे। बस एक अच्छे मौके की इंतजार में थे, जो खिलजी के माध्यम से उन्होंने हासिल किया।
बू अली शाह और कबीर
कबीर ने जल को प्रतीक बना कर ईश्वर का प्रतिपादन किया था। जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर-भीतर पानी। यह प्रतीक कबीर से बहुत पहले बू अली शाह कलंदर ने अपनाया था।
गश्त वासिल चूं ब दरिया आबे जू।
आबे जूरा बाज अज दरिया मजू।
अर्थात : नदी का पानी जब नद में मिल गया तो फिर नद में नदी के पानी को न ढूंढ।
आबे दरिया चूं जनद मौजे दिगर।
दर हकीकत आब बाशद जलवागर।
अर्थात : पानी की लहर पानी से अलग नहीं है। परमात्मा और जगत अभिन्न है।
यह वही विचारधारा है, जिसे हम अद्वैतवाद कहते हैं।
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचिद जगत्यां जगत।
एक जगह उन्होंने फरमाया है
आशिक अज ईमान खरा बस व हसा अज कुफ्र।
परवाना चिराग हरम हरमोदर नदान्द।
अर्थात : आशिक का आदर्श तो परवाना है, जो मन्दिर और मस्जिद की शमा में फर्क नहीं देखता।
अब तक हुआ पद़मावत पर विवाद
-- सारा विवाद रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के प्रसंगों को लेकर है। राजस्थान की करणी सेना समेत कुछ संगठनों ने आरोप लगाया है कि संजय लीला भंसाली अलाुद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के प्रेम प्रसंगों को फिल्म में दिखाकर राजपूत समुदाय का अपमान कर रहे हैं।
-- फिल्म की शूटिंग के दौरान भी करणी सेना ने संजय लीला भंसाली पर हमला कर दिया था और मारपिटाई भी की।
-- गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दौरान पद्मावती का जिन्न बाहर निकल आया। तब चुनाव होने तक रिलीज रोक दी गई थी। अब इस फिल्म की रिलीज डेट फिक्स हो गई है तो करणी सेना कह रही है कि फिल्म को किसी भी सूरत में रिलीज नहीं होने देंगे।
-- पहले यह फिल्म एक दिसंबर को सिनेमाघरों में प्रर्दिशत होने वाली थी। इसके साथ ही यह भी तय हो गया है कि फिल्म ‘पैडमैन’ के साथ इसकी टक्कर होगी।
-- राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने उदयपुर में कहा कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पहले ही केन्द्र सरकार को विवादित फिल्म पद्मावती को राजस्थान में रिलीज नहीं करने के लिए पत्र लिख चुकी हैं।
-- इधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने जयपुर में संवाददाताओं से कहा कि यदि फिल्म में विवादित अंश होंगे तो उसका विरोध जारी रहेगा और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
--सेंसर बोर्ड की ओर से संपादित होने के बाद भी राजपूत करणी सेना ने धमकी दी है कि अगर यह फिल्म रिलीज की जाएगी तो देश भर के सिनेमा घरों पर वह जनता कर्फ्यू लगाएगी।
--हरियाणा भाजपा के नेता सूरज पाल ने कहा था कि वे फिल्म की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का सिर काटने वाले को वे 10 करोड़ रुपये देंगे और उसके परिवार की जरूरतों का भी ख्याल रखेंगे।
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