बढ़ती महंगाई ने खत्म किया ट्रांसपोर्ट व्यवसाय
ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को शुरू से ही पूंजीपतियों का कारोबार माना जाता है।
ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को शुरू से ही पूंजीपतियों का कारोबार माना जाता है, लेकिन बढ़ती महंगाई ट्रांसपोर्टरों की जेब पर इस कदर हावी हो गई है कि ट्रांसपोर्टर काम छोड़कर और धंधे तलाशने लगे हैं। बढ़ते डीजल के दामों और टोल टैक्स और मोटर व्हीकल टैक्स के कारण एक, दो ट्रक वाले छोटे ट्रांसपोर्टरों ने औने-पौने दामों में गाड़ियां बेच दी। वहीं, बचत में हुई घटोती से परेशान बड़े ट्रांसपोर्टर रोजाना ड्राइवरों से बहस करने लगे हैं। अप्रैल माह से बीएस-6 मानक की गाड़ियां शुरू होते ही शिक्षित ड्राइवरों को दोगुना वेतन देकर नौकरी पर रखना ट्रांसपोर्टरों की मजबूरी बन जाएगी, क्योंकि बीएस-6 मानक की गाड़ियों का डिजिटल सिस्टम समझना अनपढ़ चालकों की समझ से परे है। इधर, ट्रक निर्माता कंपनियों का भी हाल ट्रांसपोर्टरोंकी तरह ही है। एक ट्रक बेचने के लिए पूरी टीम ट्रांसपोर्टर की मनोबल करने लगती है। ट्रकों की बिक्री में 50 फीसद तक गिरावट आई है। पेट्रोल-डीजल वाहनों से सीएनजी आगे
सफर चाहे लंबा हो या छोटा, आज हर आदमी वाहन बिना सफर पर निकलना कतई पसंद नहीं करते। पेट्रोल, डीजल के बाद साल 2018 के अंत में शहर में सीएनजी पंप लगे तो लोगों ने सीएनजी फिट कार और छोटे कॉमर्शियल वाहन खरीदने शुरू किए। मध्यम वर्गीय परिवार भी सीएनजी फिट पुरानी गाड़ियां खरीदने निकल पड़े। लेकिन अब मार्केट में ईकोफ्रेंडली ई-वाहनों ने जबरदस्त एंट्री की है। टाटा, हुंडई, बजाज और हीरो कई मशहूर कंपनियां बैट्री से चलने वाले स्कूटी, बाइक और कार लांच कर चुकी हैं। कंपनियों में कम कीमत में अधिक सफर तय करने वाले वाहन बनाने की जैसे होड़ सी लगी है। वहीं, ग्राहक भी घर और चार्जिंग स्टेशन पर दुपहिया वाहन और कार चार्ज करके सफर करने के सपने संजोने लगे हैं। इस साल पेट्रोल डीजल की बिक्री में गिरावट आने का अनुमान है। नए ग्राहकों के लिए खरीदारी से पहले मार्केट घूमना बहुत जरूरी है। ओवरब्रिज पर कट का ख्वाब अधूरा
वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण जीटी रोड पर जाम लगना आम बात है। जाम में फंसने के वजह से रोजाना सैंकड़ों लोगों का कई घंटों का समय बर्बाद हो जाता है। एलएंडटी कंपनी ने ओवरब्रिज का निर्माण शुरू कराया तो शहरवासियों में जाम से राहत मिलने की आस जगी थी, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होते ही कंपनी ने ओवरब्रिज पर भी दोनों तरफ ग्रिल लगा दी। इससे शहरवासी कभी-कभार ही ओवरब्रिज का इस्तेमाल कर पाते। सामाजिक संस्थाओं ने ओवरब्रिज के कट खोलने का बीड़ा उठाया और मंत्रियों, सांसद, प्रशासनिक अधिकारियों को शिकायत दी, लेकिन शहरवासी ही मुहिम में शामिल नहीं हुए। कुछ दिन चले हंगामे के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब शहरवासियों ने सेक्टर 6 और सेक्टर 25 के पास दोनों और कट खोलने की मांग उठाई है, लेकिन आज तक लोगों का ख्वाब अधूरा है। अधिकारी और नेता भी इसमें खास रुचि नहीं दिखा रहे। रैली की सवारी, चालान काटने समय बेबस अधिकारी
शहर में सत्ताधारी पार्टी का कोई भी आयोजन हो, भीड़ को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सीधे वाहनों का आवागमन संभालने वाले अधिकारियों पर ही थोप दी जाती है। कर्मचारी सामाजिक संस्थाओं, स्कूल संचालकों की मान मनोअल में जुट जाते हैं। किसी को सीट का रौब दिखाकर तो किसी को अपनी मजबूरी बताकर जैसे-तैसे वाहनों का इंतजाम कर देते हैं। वहीं, चेकिग के दौरान रैली में शामिल हुए वाहनों को नजरअंदाज करना अधिकारियों की मजबूरी बन जाती है। वाहन में लाख कमियां होने के बावजूद अधिकारी चालान नहीं काट पाते, क्योंकि सरकारी आयोजन के समय दोबारा उन्हीं वाहन मालिकों की जरूरत पड़ने वाली है। शायद यही कारण है कि आज शहर में टैक्स डिफाल्टरों की संख्या 23108 पर पहुंच गई है। मोटर व्हीकल एक्ट के नियमों को ताक पर रखकर रसूखदार वाहन मालिक बेपरवाह अपने वाहन सड़कों पर दौड़ा रहे हैं। फिलहाल आम आदमी की सुरक्षा राम भरोसे है।