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करनाल में है ऐतिहासिक शिव मंदिर, यहां पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले की थी शस्त्र पूजा

करनाल के नीलोखेड़ी के गांव पूजम में महाराभरत कालीन मंदिर है। यहां स्वयंभू शिवलिंग है। लोगों ने इसे उखाड़े की कोशिशें कीं। मगर यह टस से मस न हुआ। महाभारत शुरू होने से पहले पांडवों ने यहीं शस्त्र पूजा की थी।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 06:05 AM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 06:05 AM (IST)
करनाल में है ऐतिहासिक शिव मंदिर, यहां पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले की थी शस्त्र पूजा
इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने श्री चरण रखे थे।

संवाद सूत्र, नीलोखेड़ी। नीलोखेड़ी के गांव पूजम में महाभारत की यादें हैं। कहा जाता है कि यह वह ऐतिहासिक गांव है, जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा की थी। उनकी उसी पूजा से ही गांव का नामकरण हुआ है पूजम। इस गांव में स्थित एक मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह स्वयंभू है।

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महाभारत काल की स्मृतियों से जुड़ा होने के कारण यह शिवलिंग काफी पूजनीय माना जाता है। यहां पहले एक प्राचीन तालाब था। इसने अब आधुनिक रूप ले लिया है। आश्रम के स्वामी श्री हरिशंकर दास बड़े गर्व से बताते हैं कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने अपने अस्त्रों और शस्त्रों की पूजा की थी। मंदिर में शिवलिंग के बारे में यहां के ग्रामीण बताते हैं कि यह शिवलिंग गांव के बाहर तालाब के पास स्वयं प्रकट हुआ।  बाद में उसे उखाड़ने की अनेक लोगों ने कोशिश की। लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि प्राचीनकाल में यहां आसपास के कुम्हार लोग मिट्टी लेने आया करते थे। एक दिन मिट्टी निकालते समय यहां शिवलिंग निकला। तब किसी ने कुल्हाड़ी, कुदाल और फावड़े से शिवलिंग को काटने का प्रयास किया, किंतु सफल नहीं हुआ। आज भी उन औजारों के लगने के निशान शिवलिंग पर दिखाई देते हैं। कहते हैं, इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने श्री चरण रखे थे।

बाबा रामगिर की तपोस्थली है यहां

मंदिर के अध्यक्ष सुरजन सिंह और सेवादार मोहित शर्मा समेत अन्य भक्तों ने बताया कि इस स्थान पर कई साल पहले बाबा रामगिर आकर रहने लगे थे। बाबा रामगिर सर्दियों में तालाब में पूजा करते थे और गर्मियों में अपने चारों ओर धुना लगाकर तपस्या करते थे। बाद में गांव वालों ने इस जगह पर मंदिर बनवाया। मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन प्राचीन तालाब भी है, जिसे जीर्णोद्धार कर आधुनिक रूप दिया गया है। अब यहां बाबा रामगिर की याद में शिवरात्रि पर्व पर और अप्रैल महीने में विशाल मेला लगता है।

शिवरात्रि पर होते हैं विशेष कार्यक्रम

सेवादार मोहित शर्मा ने बताया कि शिवरात्रि पर सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है। जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं को लाइनों में लगकर लंबा इंतजार भी करना पड़ता है। जब यहां पर भंडारे का आयोजन होता है तो यहां पर लोग हिस्सा लेकर कार्यक्रम को भव्य रूप देते हैं। बताया जाता है कि जो भी श्रद्धालु यहां पर मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं उनकी मनोकामनाएं जरूर सिद्ध होती हैं।

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