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कैसे कैटल फ्री होगा यमुनानगर... गोशाला हैं पर चारा नहीं, सड़कों पर गोवंश का बसेरा, हो रहे हादसे

3994 एकड़ जमीन होकर भी सड़कों पर भटक रहा गोवंश। शहर की हर गली-मुहल्ले में बेसहारा गोवंश के झुंड। रात के समय वाहन इनसे टकरा जाते हैं। अधिकांश गोशालाओं के हालात चिंताजनक। घास समय पर नहीं मिलती। बैठने के लिए शेड पर्याप्त नहीं है।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2021 01:50 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2021 01:50 PM (IST)
कैसे कैटल फ्री होगा यमुनानगर... गोशाला हैं पर चारा नहीं, सड़कों पर गोवंश का बसेरा, हो रहे हादसे
रात के समय बेसहारा पशुओं की संख्या बढ़ जाती है और ये हादसे का कारण बनते हैं।

पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। गोचरान की 3994 एकड़ जमीन व संरक्षण के लिए 18 गोशाला होने के बावजूद गोवंश सड़कों पर धक्के खा रहा है। खुद भी जख्मी हो रहा है और दूसरों के लिए परेशानी बन रहा है। ये हालात तब हैं, जब शहर को कैटल फ्री घोषित किया हुआ है। 

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शायद ही शहर की कोई ऐसी कालोनी होगी, जहां झुंड बनाए बेसहारा गोवंश भटकते दिखाई न दें। गली-मोहल्ले, बाजारों, सब्जी मंडी से लेकर मुख्य मार्गों तक उनका जमावड़ा देखने को मिलता है। रात के समय वाहन उनसे टकरा जाते हैं। ऐसी स्थिति में चालक ही नहीं बल्कि गोवंश भी घायल होते हैं। घायल व्यक्ति तो अस्पताल में जाकर अपना इलाज करा लेता है, लेकिन गोवंश को तड़पते छोड़ दिया जाता है। 

कहां कितनी जमीन 

यमुनानगर जिले में गोचरान की कुल 3994 एकड़ जमीन है। इस जमीन में से बिलासपुर खंड के 129 गांवों में 863 एकड़, छछरौली खंड के 113 गांवों में 1411 एकड़, जगाधरी खंड के 90 गांवों में 660 एकड़, मुस्तफाबाद खंड के 70 गांवों में 359 एकड़, रादौर खंड के 68 गांवों में 206 एकड़ व साढौरा खंड के 41 गांवों में 495 एकड़ गोचरान की जमीन है। इस जमीन पर कहीं खेती हो रही है तो कहीं अवैध कब्जे हैं।

गोशालाओं में चारा तक नहीं 

अधिकांश गोशालाओं के हालात चिंताजनक हैं। पर्याप्त बजट होने के बाद भी कामधेनु को हरा चारा तक नसीब नहीं हो रहा है। घास समय पर नहीं मिलता। बैठने के लिए शेड पर्याप्त नहीं है। जगह सीमित होने के कारण पशु एक दूसरे को पैरों से जख्मी भी कर देते हैं। ऐसी गायों की संख्या भी कम नहीं है जो सड़कों पर चोटिल हो जाती हैं। गो प्रेमी इन गायों को गोशाला में छोड़ देते हैं। आधा दर्जन से अधिक गाय ऐसी हैं जो पीड़ा से कहराती हैं। किसी की टांग टूटी है तो कोई जख्मी हो जाती हैं।

दूध पीकर निकाल लेते रस्सा

गोवंश दुर्दशा के लिए व्यवस्था ही नहीं बल्कि पशुपालक भी जिम्मेदार हैं। जब गोमाता दूध देना बंद कर देती है तो उसके गले से रस्सा निकालकर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। ये गोवंश या तो सड़कों की ओर रुख कर लेते हैं या फिर खेतों में। सड़कों पर वाहनों के साथ टकराते हैं और खेतों में मालिक की मार खाते हैं। कई बार तो कुत्तों को भी नोचते हुए देखा जा सकता है। 

हो रहे हादसे

रात के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है। हादसे का कारण बनती हैं। कन्हैया चौक के नजदीक भी गायों के झुंड दिखाई देते हैं। कमानी चौक के समीप रखे डस्टबिन के कचरे में मुंह मारती हैं। अब इन गायों के सींगों पर आरटीए व नगर निगम की टीम द्वारा रिफ्लेक्टर टेप लगाई जा रही है। ताकि वाहन की रोशनी पड़ने पर यह चमकने लगे और हादसा न हो।


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