Gita Jayanti Mahotsav: अंगूठी से निकल जाती है ये पश्मीना शाल, कुरुक्षेत्र महोत्सव में पर्यटक हुए इसके दीवाने
कुरुक्षेत्र में गीता जयंती महोत्सव में कुल्लू की पश्मीना शाल पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। 120 ग्राम की पश्मीना शाल अंगूठी से आराम से निकल जाती है। इसके अलावा भी पश्मीना शाल की और भी खासियत होती है।
कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के सरस मेले में कुल्लू की शाल लोगों के मन को भा रही हैं। 180 ग्राम वजन वाली शाल महज आधे इंच की अंगूठी से आर-पार निकल जाती है। इसको देखने भर के लिए पर्यटकों का तांता लग जाता। वहीं किन्नौरी और अंगूरी शाल भी लोगों को पसंद आ रही है।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के स्टाल नंबर 30 पर कुल्लू की शिल्पकला को पर्यटकों के समक्ष रखने के लिए शिल्पकार हीरालाल के साथ-साथ अन्य लोग सचिन व संजू भी कुरुक्षेत्र उत्सव गीता महोत्सव में पहुंचे हैं।
डेढ़ लाख रुपये तक है कीमत
कुल्लू निवासी हीरा लाल ने बताया कि पश्मीना शाल का सबसे कम वजन 120 ग्राम हो सकता है। इसकी कीमत डेढ लाख रुपये से भी अधिक है। क्राफ्ट मेले में इस बार पश्मीना की 15 से 35 हजार रुपए तक की शाल और लोई खास लेकर आए हैं। पिछले दो दशकों से गीता महोत्सव में कुल्लू शाल व जैकेट लेकर आ रहे हैं। इस बार महिलाओं के लिए अंगूरी स्वेटर और लॉन्ग कोट लेकर आए हैं।
किन्नौरी शाल में लगते हैं 45 दिन
हीरा लाल ने बताया कि कुल्लू में पश्मीना, अंगूरी और किन्नौरी शाल को तैयार करने के लिए खड्डिया लगाई हैं। किनौरी शाल बनाने के लिए 45 दिन लगते हैं और पश्मीना शाल 10-12 दिन में तैयार कर ली जाती है। उत्सव में निरंतर आने से उनके 300 से ज्यादा ग्राहक पक्के बन गए हैं।
ऐसे बनाई जाती है पश्मीना शाल
पश्मीना शाल को मशीन और हाथों दोनों से बनाया जाता है। हाथों से बनी पश्मीना शाल को ज्यादा बेहतर होती है।चरखे की मदद से हाथों से ही ऊन को काता जाता है। इस ऊन को अनुभवी कारीगर ही कात सकता है। लेह-लद्दाख और चाइना बार्डर जैसे बर्फीले इलाके में स्नो भेड़ के बालों से पश्मीना तैयार किया जाता है। स्नो भेड़ के साल में एक बार ही बाल उतारे जाते हैं।