माटी का मिजाज देख धान को बनाया Haryana का गौरव, रेत के टीलों पर लहलहा दीं फसलें Panipat News
हरियाणा के स्थापना दिवस पर आइए जानते हैं कुछ अनछुए पहलू। हरियाणा के हिस्से में 3.80 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि आई जिसमें से 3.62 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है।
पानीपत, [अरविन्द झा]। वर्ष 1966 में अलग राज्य बने हरियाणा को तब भौगोलिक परिस्थितियों और माटी के मिजाज को देखकर रेत का कटोरा कहा गया। यह दीगर बात है कि यहां के लोगों ने कृषि संसाधनों की उपलब्धता और मेहनत के दम पर चंद सालों में ही रेत के इस कटोरे को धान के कटोरे में तब्दील कर दिया। इतना ही नहीं, हरित क्रांति भी प्रदेश को इस मुकाम तक पहुंचाने में अहम रही। 1 नवंबर 2017 को केंद्रीय पूल में सर्वाधिक खाद्यान्न देने का गौरव भी हरियाणा के हिस्से में ही आया था। अब जैविक खेती के सहारे यह प्रांत कृषि क्षेत्र में नित नए मुकाम हासिल कर रहा है। प्रदेश में खेती ही 65 फीसद लोगों की जीविका का आधार भी है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 26.4 फीसद है।
पंजाब से अलग होने के बाद 3.80 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि हरियाणा के हिस्से में आई। कुल क्षेत्रफल का यह 86 फीसद था। इसमें से 3.62 मिलियन हेक्टेयर भूमि (96.2 फीसद) कृषि के लिए उपयुक्त थी। हालांकि उस समय सबसे बड़ी चुनौती कृषि कार्य के लिए जल की उपलब्धता थी। मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी सभी जिलों में एक समान नहीं थी। जीटी रोड बेल्ट के यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल के आठ जिलों से यमुना नदी लगती थी। दिल्ली-यमुना पैरलल नहर होने के बावजूद जल की पर्याप्त उपलब्धता नहीं थी। नहरी पानी दिल्ली के लिए था। तरावड़ी व नीलोखेड़ी (जिला करनाल) के आसपास बड़े पैमाने पर धान की खेती शुरू हुई।
जलदोहन से भूजल समस्या भी आई
जलदोहन से भूजल की समस्या आई, लेकिन बासमती के उत्पादन ने हरियाणा को एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। दूसरी तरफ हिसार, भिवानी, सिरसा, महेंद्रगढ़ के क्षेत्र में रेतीली मिट्टी होने से कृषि कार्य कठिन था। हांसी-बुटाना बहुद्देशीय लिंक नहर के निर्माण से पेयजल का समान वितरण होने लगा। हरित क्रांति के बाद अन्न की पैदावार में इन क्षेत्रों का योगदान भी बेहतर हो गया।
बागवानी से लेकर दुग्ध उत्पादन में तरक्की
मानसून के सीजन में यमुना नदी के अतिरिक्त पानी को काम में लेने के लिए 267 करोड़ की लागत से बने दादूपुर-शाहाबाद वाल्वी नहर ने यमुनानगर, अंबाला और कुरुक्षेत्र के 92352 हेक्टेयर में सिंचाई के साधन उपलब्ध करा दिए। फिलहाल 75 फीसद भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। सतलुज यमुना लिंक नहर को हरियाणा की जीवन रेखा माना जाता है। बिजली व ट्यूबवेल की उपलब्धता होने से अरावली के पथरीले भू-भाग गुरुग्राम व फरीदाबाद में भी गेहूं की अच्छी उपज होने लगी। 53 वर्ष के सफर में प्रदेश ने बागवानी से लेकर दुग्ध उत्पादन में भी तरक्की की।
जैविक खेती को बढ़ावा
खाद व पेस्टिसाइड के अंधाधुंध प्रयोग से बचाने के लिए हरियाणा में वर्ष 2005 के बाद जैविक खेती का प्रचलन बढ़ने लगा। किसान ढैंचा उगा कर खेत में हरित खाद बनाने लगे। केंचुए खाद के उपयोग ने कृषि उत्पादन को और समृद्ध किया।
मंडियों ने खोले समृद्धि के रास्ते
वर्ष 1966-67 में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद गेहूं की बंपर पैदावार से उसकी बिक्री के लिए मंडी प्रणाली विकसित की गई। किसान परिवारों में इससे आर्थिक समृद्धि आई। हरियाणा प्रांत के गठन के समय खाद्यान्न का उत्पादन 25.92 लाख टन था।